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कैसे महकेंगे आपके किचन में मसाले!

खाना इंडियन हो, इटैलियन, मैक्सिकन या फिर थाई, इसे जायकेदार बनाने का काम तो मसाले ही करते हैं। अलग-अलग स्वाद वाले ये मसालों आएं कहां से और कब पहली बार हुआ इनका इस्तेमाल, जानना नहीं चाहेंगे?

By Priyanka SinghEdited By: Published: Wed, 28 Nov 2018 04:52 PM (IST)Updated: Fri, 30 Nov 2018 06:00 AM (IST)
कैसे महकेंगे आपके किचन में मसाले!
कैसे महकेंगे आपके किचन में मसाले!

पुष्पेश पंत

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कभी हमारे यहां रसोई में काम करने वाले बावर्ची का सहायक 'मसालची' कहलाता था। अक्सर बावर्ची बनने की पहली सीढ़ी मसालची के रूप में शागिर्दी का प्रशिक्षण-काल पूरा करना होता था। मसालची न केवल उस्ताद-मदारी का हरफनमौला जमूरा होता, बल्कि सूखे-गीले मसालों को कूटने-पीसने के साथ-साथ वह उनकी तथा अन्य खाद्य पदाथरें की गुणवत्ता, उनको ठीक से संभाल कर रखने की जिम्मेदारी निभाता था।

यह याद दिलाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए कि लाल मिर्च पुर्तगालियों के साथ ही 16वीं सदी में भारत पहुंची, अत: इसका उपयोग हमारे पारंपरिक भोजन में इसके बाद ही होना शुरू हुआ। खास से आम बनते और देशभर में फैलते कम से कम एक सदी बीती। आज भी गांव-देहात में साधनहीन परिवार के भोजन में 'जीरा' जैसे मसाले विशेष अवसरों पर बहुत थोड़ी मात्रा में काम लाए जाते हैं। अजवाइन की पहचान पेट की गड़बड़ी को दूर करने वाली घरेलू दवाई के रूप में है। अर्थात रूखे-सूखे भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए स्थानीय ताजा या सूखी वनस्पतियों का ही चलन आम था। आज यह मसाले लुप्त हो चुके हैं। कभी-कभार बड़े होटलों के फूड फेस्टिवल में इनकी खोज का विज्ञापन किया जाता है। पान की जड़, खस की घास, पत्थर फूल, कबाब चीनी आदि की नुमाइश सजती है, फिर हम इन्हें भुला देते हैं।

भारत के विभिन्न क्षेत्रों के मसालों के मिश्रण यही दर्शाते हैं कि उनके खानों की पहचान उनके मसालों के साथ अभिन्न रूप से जुड़ी है- मसलन चेट्टिनाड मसाला, कोल्हापुरी मसाला, ईस्ट इंडियन बॉटल मसाला, पठारे प्रभु मसाला, पारसी धानसाक मसाला और कश्मीरी बड़ी मसाला, अवधी लज्जत ताम आदि। निश्चय ही हमें अपनी इस संपन्न मसाला विरासत का आनंद लेना चाहिए, किंतु हमारा मानना है कि खुद अपने किसी मनपसंद एक मसाले के अनेक रूप (और प्रभाव) से परिचित होना व उसे ठीक से बरतना रोजमर्रा के खाने के रसास्वाद को कई गुना बढ़ा देता है। किसी एक सब्जी या दाल में बदल-बदलकर एक मसाले को प्रमुखता दें, फिर देखें क्या निराला राग सजता है। हींग-जीरे के सात्विक आलू लोकप्रिय हैं। कभी तिल और सरसों के आलू बना कर देखें। सूखे पुदीने और करी पत्ते के साथ छोटे आलुओं की जुगलबंदी जायकेदार होती है। अजवायनी अरबी का सांचा भी इसी तरह बदला जा सकता है। हमारे मित्र पुनीत शुक्ला, जो इलेक्ट्रॉनिक पत्रकार हैं, वे जावित्री-जायफल की चुटकियों से ही कमाल कर दिखाते हैं।

जो बात ध्यान देने कि है, वह यह कि सूखे और गीले मसालों को अलग-अलग तरह से बरतने के नियमों की है। पिसे, गीले मसाले ठीक से भुनने चाहिए, जब तक यह चिकनाई न छोड़ दें, अन्यथा कच्चापन खटकेगा। ऊपर से छिड़के जाने वाले मसालों के चूर्ण सीले नहीं, वे ताजा भुने और पिसे होने पर ही अपना जादू दिखाते हैं। अक्सर हम रेडीमेड चाट या तंदूरी मसाले पर निर्भर रहते हैं। एक बार घर पर उसी वक्त की जरूरत भर कूट-पीसकर तो देखें। तभी आप को गुलदार लौंग और कानी (तेल निछोड़ी, खोखली) छोटी या बड़ी इलायची का अंतर समझ आ सकता है। मसाले सूखे हों या गीले, ऊपर से छिड़के जाने वाले हों या तड़के के काम के गुणवत्ता के मामले में समझौता न करें। न ही कीमत से घबराएं। कितना भी महंगा हो, हर मसाला खाने में बहुत थोड़ी मात्रा में ही इस्तेमाल किया जाता है! हल्दी का आभार मानें, पर उसकी तथा धनिए की प्यारी बेडि़यों को तोड़ने की कोशिश बीच-बीच में करें। नमक का उपयोग कम करें, तभी किसी मसाले का मजा आप उठा सकेंगे।  


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