सब्जी के रूप में ही नहीं, मेथी के दानों ने मसालों के रूप में भी जीत रखी है स्वाद की दुनिया
दीवाली पर मठरी और इसके बाद शुरू होने वाली गुलाबी ठंड में जायका बढ़ाते पराठे। सर्दियों की हरी सब्जी में अगर सोया के साथ मेथी दिव्य व्यंजन है तो वहीं मेथी के दाने भी मसालों में खास।
पुष्पेश पंत
मेथी की प्रमुख पहचान सब्जी के रूप में है पर इसकी मसालेवाली भूमिका को कतई नजरंदाज नहीं किया जा सकता। भले ही ऐतिहासिक मसाला व्यापार में इसे काली मिर्च, लवंग, दालचीनी, इलायची के समकक्ष अनमोल रत्न न समझा जाता रहा हो, यह मध्य पूर्व तथा दक्षिण एशिया की रसोई में सदियों से भरोसेमंद मित्र मसाला रहा है। यूरोप वाले इसकी सूखी पत्तियों को 'हर्ब' अर्थात् बूटियों की सूची मे शामिल करते रहे हैं।
यह घास है खास
मेथी का अंग्रेजी नाम 'फेनुग्रीक' है जिसका अनुवाद प्राचीन काल में 'यूनान की सूखी घास' के रूप में किया जाता था। इससे यह संकेत मिलता है कि शुरू में इसका उपयोग पालतू मवेशियों के चारे के रूप में किया जाता था। वनस्पति शास्ति्रयों के अनुसार इसकी जन्मभूमि मध्य पूर्व है और इसका प्रयोग कांस्य युग में आरंभ हो चुका था। मिस्त्र के पिरामिडों में तथा ईराक में मेथी दाने मिले हैं जिनको कार्बन डेटिंग द्वारा तकरीबन 4000 वर्ष ईस्वी पूर्व का प्रमाणित किया गया है। ईसा के जन्म के बाद पहली सदी में रोमवासी मदिरा का जायका निखारने के लिए मेथी का प्रयोग करने लगे थे और कुछ भूमध्यसागरीय देशों में यह रोजमर्रा के आहार में शामिल की जा चुकी थी। मिस्त्र में मेथी दाने को पीसकर रोटियों में मिलाया जाता है तो तुर्की में काली मिर्च तथा जीरे के साथ इसकी चटनी पीसी जाती है। ईरान में जो गौरमेह सब्जी पकाई जाती है उसमें मेथी का ही प्रयोग होता है। यमनी यहूदी मेथी को हल्दी और नींबू के रस के साथ मिला अचार बनाते हैं तो जॉर्जिया में नीली मेथी का प्रचलन है।कहीं कड़वी तो कहीं नमकीन
भारत में मेथी का इस्तेमाल हरी सब्जी के रूप में किया जाता है और मसाले के रूप में भी। इसकी फसल आम तौर पर बंजर भूमि पर उगाई जाती है। मेथी का कुदरती स्वाद जरा कड़वा होता है जिसका स्वादिष्ट आकर्षण कम नहीं होता। षडरस भोजन में कटु याने कड़वे जायका का पुट देने वाले पदार्थो में करेले और नीम का साथ मेथी बखूबी देती है। महाराष्ट्र- गुजरात के सागरटतवर्ती क्षेत्र में मत्स्यगंधा जंगली समुद्री मेथी उगती है जिसका जन्मजात स्वाद नमकीन होता है।
देशभर में फैले स्वाद के दाने
राजस्थान में सूखे मेथीदानों को दूध में रात भर भिंगोकर उनकी कड़वाहट कम कर उन्हें फुलाने के बाद किशमिश मिला एक मजेदार सब्जी तैयार की जाती है तो गुजरात में मेथी के पत्तों को आटे में गूंथ कर थेपले चाव से खाए जाते हैं। उत्तर भारत में आलू-मेथी की सूखी सब्जी लोकप्रिय है, तो वहीं पंजाब में मेथी के पराठे लोकप्रिय हैं और मेथी गाजर की सूखी सब्जी का चलन है। दिल्ली और उत्तर भारत में बेडमी पूरी की जुगलबंदी मेथी की चटनी के साथ धता है। दक्षिण भारत में मेथीदाने की प्रमुख उपयोगिता तड़के के समय नजर आती है। बंगाल के पांच फोड़न मसाला मिश्रण में भी इसका प्रमुख स्थान रहता है। उत्तर हो या दक्षिण, पूरब या पश्चिम अचारी मसालों में इसका स्थान सुनिश्चित है।नाम में भी विभिन्नतायदि ताजी मेथी सुलभ न हो तो इसके सूखे पत्ते काम में लाए जाते हैं। सुवासित कसूरी मेथी तो सूखे अवतार में ही प्रकट होती है। कुछ लोगों की मान्यता है कि इसका नामकरण इसके मूल स्थान पर किया गया है- अविभाजित भारत में पश्चिमी पंजाब का कसूर प्रदेश तो दूसरों का कहना है कस्तूरी की तरह इसकी महक के कारण यह कस्तूरी मेथी कहलाई और कसूरी उसी का अपभ्रंश है। बहरहाल सिर्फ शाकाहारी नहीं मांसाहारी व्यंजनों का कायाकल्प मेथी करती है- मसलन मेथी मुर्ग, कीमा मेथी और मेथीवाली मछली।
ठंडे मौसम का साथी
मेथी की तासीर गर्म होती है इसीलिए जाड़े के मौसम में इसका प्रयोग पारंपरिक रहा है। कुछ समय पहले तक मेथी के लड्डू जाड़े की सौगात थे। आजकल मेथी के बारे में लोगों की दिलचस्पी इस कारण भी बढ़ी है कि उन्हें लगता है कि मधुमेह याने डायबिटीज के नियंत्रण में यह उपयोगी है। मेथी के औषधीय गुण भले ही निर्विवाद रूप से प्रमाणित नहीं कहे जा सकते इसके चूर्ण या अंकुरित मेथी दाने के नियमित प्रयोग की सलाह कई चिकित्सक देते हैं। अनेक पश्चिमी देशों में आजकल अंकुरित मेथी का प्रयोग 'माइक्रोग्रीन' बिरादरी की चमत्कारी हरियाली के रूप में सलादों में भी किया जाने लगा है। मसाला मिश्रणों में-जैसे गरम मसाले या सांबार पाउडर में- अदृश्य रहने पर भी मेथी अपनी उपस्थिति अनायास दर्ज कराती है और अपने औषधीय गुणों का लाभ हमें पहुंचाती रहती है।