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नज़ारे ही नहीं अनोखे तालमेल से तैयार जायके भी हिमाचल प्रदेश को बनाते हैं खास

हिमाचल के खाने की बात ही कुछ और है। तीखा कम चटपटा ज्यादा और हल्के मीठे पकवानों का स्वाद हर किसी को भाता है। हिमाचल में कहीं भी जाएं हर जगह इन डिशेज़ को चखा जा सकता है।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Mon, 25 Mar 2019 11:58 AM (IST)Updated: Mon, 25 Mar 2019 11:58 AM (IST)
नज़ारे ही नहीं अनोखे तालमेल से तैयार जायके भी हिमाचल प्रदेश को बनाते हैं खास
नज़ारे ही नहीं अनोखे तालमेल से तैयार जायके भी हिमाचल प्रदेश को बनाते हैं खास

चाहे नवाबों के यहां बनने वाले व्यंजन हों या आम घरों में बनने वाले आंचलिक पकवान, समय के साथ स्वाद में भी काफी कुछ बदलाव हुए हैं लेकिन एक बात, जो आज भी बरकरार है वो यह कि, क्षेत्रीय पकवानों का जो स्वाद उस जगह चखा जा सकता है वो दूसरी जगह मिल पाना लगभग नामुमकिन सा होता है। तो आज हिमाचली जायके के बारे में करेंगे जिसका अनोखा स्वाद हर किसी को भाता है।

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हिमाचली पारंपरिक धाम क्यूज़ीन में तकरीबन 10-11 व्यंजन होते हैं, जिसे थाली या बरगद के सूखे पत्तों से बने दोने पर परोसा जाता है। इन पत्तलों को बांस की पतली पट्टियों से बुना जाता है, जिसे पेटल्स भी कहा जाता है।

धाम यानि 11 व्यंजन

शुरुआत में धाम को केवल मंदिरों में प्रसाद के रूप में परोसा जाता था। काफी समय पहले ब्राह्मण रसोइया ही इसे बनाता था। धाम में बूंदी या मीठा कच्चा पपीता, मूंग की धुली दाल, तेलिया माह की दाल, चना माद्रा, कढ़ी पकौड़ा, राजमा, औरिया चना दाल, मानि यानि काले चने का खट्टा और औरिया कद्दू आदि व्यंजन आते हैं जो पूरी तरह सात्विक हैं। इसमें प्याज, लहसुन या अदरक का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। हालांकि समय के साथ धाम को हर अवसरों जैसे विवाह, पारिवारिक व धार्मिक कार्यक्रमों में अपने-अपने स्टाइल से बनाया जाने लगा है।

अकतोरी

हिमाचल प्रदेश की अकतोरी एक ऐसी स्वीट डिश है जिसे पहले तो लोग हर खास मौकों या हर त्यौहार पर बनाते थे लेकिन आजकल इसका स्वाद सभी लोग भूल चुके हैं। यह कुट्टू और गेहूं के आटे से बना एक तरह का पैनकेक है।

कुछ इस तरह बनाते हैं इसे

अकतोरी बनाने के लिए कुट्टू, गेहूं का आटा, दूध, पानी, बेकिंग सोडा और चीनी मिलाकर गाढ़ा घोल तैयार किया जाता है। फिर इसे तवे पर सेंका जाता है और गरमा-गरम सर्व करते हैं।

बदला हुआ रूप

इस रेसिपी ने अब पैनकेक का रूप ले लिया है। फ्रूट्स की स्टफिंग्स के साथ इसे बनाया जाता है। सर्विंग केले, स्ट्रॉबेरीज़ और शहद के साथ की जाती है।

बबरू

हिमाचल की एक खास परंपरा है कि जब कोई पर्व या घर में किसी का जन्मदिन या घर में किसी का जन्मदिन या किसी के घर न्यौता लेकर जाते हैं तो बबरू जरूर बनाए जाते हैं।

कुछ इस तरह बनाते हैं इसे

बबरू बनाने के लिए गुड़ के पानी को आटे में मिलाकर गूंथा जाता है, हालांकि कुछ लोग इसे कचौड़ी यानि नमकीन रूप में भी बनाते हैं। छोटी-छोटी पूरियां बेलकर इन्हें डीप फ्राई करते हैं। प्लेट में निकालकर तुरंत सर्व किया जाता है।

बदला हुआ रूप

बबरू को भटरूरू भी कहते हैं। इसे नार्थ इंडिया में स्टफ्ड कचौड़ी कहा जाता है तो कहीं-कहीं इसे मीठी पूरियां भी कहते हैं। हेल्थ कॉन्शियस लोग इसे तलने के बजाय शैलो फ्राई, एयर फ्रायर या बेक्ड कर सर्व करते हैं। इसकी कुकीज़ भी बनाई जा सकती है। न्यौता देने के लिए अब बबरू की जगह मिठाईयों ने ले ली है।

हिमाचली मानी, मणि (माद्रा) या खट्टा

खट्टा यानि मानी की रेसिपी हिमाचल के सबसे लोकप्रिय व्यंजनों में से एक है। इस पहाड़ी व्यंजन को पारंपरिक समारोहों में तैयार किया जाता है, जिसे धाम क्यूज़ीन की मेन डिश के तौर पर परोसा जाता है। यह स्वाद में मीठा और बेहद खट्टा है। आमतौर पर हिमाचल में इसे स्टीम्ड राइस के साथ परोसा जाता है। इसे खाने से डाइजेशन सही रहता है। वहीं अब इसकी जगह डिप्स और तरह-तरह की चटनियों ने ले ली है।

कुछ इस तरह बनाते हैं इसे

गुड़, बेसन, हींग, हल्दी, धनिया पाउडर, गरम मसाला, अमचूर, लाल मिर्च, नमक, दही और चने को एक साथ मिक्स करते हैं। कड़ाही में तेल गर्म कर राई व जीरे से छौंक लगाकर इस मिश्रण को डालकर पकाया जाता है।

एक डिश, कई नाम

इसे हिमाचल में कहीं माद्र तो कहीं मादा, मानी, मदराह या मणि जैसे नामों से पुकारा जाता है। कुछ जगह इसे खट्टा भी कहा जाता है। हिमाचल खट्टा इसलिए कहते हैं कि काले व काबुली चने को दही में धीमी आंच पर पकाया जाता है जिसमें लगभग 20 मसाले डाले जाते हैं। इसकी तैयारी रात भर पहले से शुरू की जाती है, जो कि आज के समय में मुमकिन नहीं इसलिए यह खट्टी चटनी में बदल गया। 


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