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तमिलनाडु में बने इस मंदिर की सीढियों पर गूंजते हैं संगीत के सुर

ऐरावतेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। तमिलनाडु के इस मंदिर की सीढियों पर पैरों के हल्के प्रहार से संगीत की मधुर ध्वनियां सुन सकते हैं।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Thu, 28 Mar 2019 03:50 PM (IST)Updated: Thu, 28 Mar 2019 03:50 PM (IST)
तमिलनाडु में बने इस मंदिर की सीढियों पर गूंजते हैं संगीत के सुर
तमिलनाडु में बने इस मंदिर की सीढियों पर गूंजते हैं संगीत के सुर

तमिलनाड़ु राज्य में कुंभकोणम के पास दारासुरम में स्थित है 'एरावतेश्वर मंदिर'। यह मंदिर यूनेस्को द्वारा वैश्विक धरोहर घोषित है। यह हिंदू मंदिर है जिसे दक्षिणी भारत के 12वीं सदी में राजराजा चोल द्वितीय द्वारा बनवाया गया था।

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ऐरावतेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। भगवान शिव को यहां ऐरावतेश्वर के रूप में जाना जाता है क्योंकि इस मंदिर में देवताओं के राजा इंद्र के सफेद हाथी एरावत द्वारा भगवान शिव की पूजा की गई थी।

मंदिर की बनावट

मंदिर की हर एक चीज़ इतनी खूबसूरत और आकर्षक है कि इसे देखने के लिए वक्त के साथ ही समझ भी चाहिए। पत्थरों पर की गई नक्काशी बहुत ही शानदार है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर को मनोरंजन के लिए बनाया गया था। मंदिर के स्तंभ 80 फीट ऊंचे हैं। सामने के मंडपम का दक्षिणी भाग पत्थर के बड़े पहियों वाले विशाल रथ के रूप में है जिसे घोड़े खींच रहे हैं। आंगन के पूर्व में नक्काशीदार इमारतों का समूह है। जिनमें से एक बलिपीट कहा जाता है मतलब बलि देने का स्थान। बलीपीट की कुर्सी पर एक छोटा मंदिर है जिसमें गणेश जी की छवि है। चौकी के दक्षिणी तरफ शानदार नक्काशियों वाली 3 सीढियों का समूह है। यही वो सीढ़ियां हैं जिनपर पैर से हल्का सी भी ठोकर लगने से संगीत की ध्वनियां निकलती हैं। मंदिर के आंगन के दक्षिण पश्चिमी कोने में 4 तीर्थ वाला एक मंडपम है। जिनमें से एक पर यम की छवि बनी है।

मंदिर का इतिहास

मान्याता है कि ऐरावत हाथी सफेद था लेकिन ऋषि दुर्वासा के शाप के कारण हाथी का रंग बदल जाने से बहुत दुःखी था, उसने इस मंदिर के पवित्र जल में स्नान करके अपना सफेद रंग पुनः प्राप्त किया। मंदिर में कई शिलालेख हैं। इन लेखों में एक में कुलोतुंगा चोल तृतीय द्वारा मंदिरों का नवीकरण कराए जाने के बारे में जानकारी मिलती है। गोपुरा के पास एक अन्य शिलालेख से पता चलता है कि एक आकृति कल्याणी से लाई गई, जिसे बाद में राजाधिराज चोल प्रथम द्वारा कल्याणपुरा नाम दिया गया, पश्चिमी चालुक्य राजा सोमेश्वर प्रथम से उसकी हार के बाद उनके पुत्र विक्रमादित्य षष्ठम और सोमेश्नर द्वितीय ने चालुक्यों की राजधानी पर कब्जा कर लिया। एरावतेश्वर मंदिर को वर्ष 2004 में महान चोल जीवंत मंदिरों की यूनेस्को वैश्विक धरोहर स्थल सूची में शामिल किया गया।

महान चोल जीवंत मंदिरों की सूची में तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर, गांगेयकोंडा चोलापुरम का गांगेयकोंडाचोलीश्वरम मंदिर और दारासुरम का ऐरावतेश्वर मंदिर शामिल हैं। इन सभी मंदिरों को 10 वीं और 12 वीं सदी के बीच चोलों द्वारा बनाया गया था।  


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