कभी सोचा है क्यों एयरलाइन्स हिमालय या प्रशांत महासागर के ऊपर से नहीं उड़तीं?
अगर नहीं जानते हैं तो आज हम आपको इसके बारे में बताने जा रहे हैं कि क्यों हवाई जहाज़ को उड़ाने वाले पायलट अन्य मार्गों को चुनते हैं।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। अक्सर ऐसा देखा गया है कि एयरलाइन्स माउंट एवरेस्ट और प्रशांत महासागर के रास्ते दूरी तय नहीं करती हैं बल्कि इन रास्तों के बजाय अन्य वैकल्पिक रास्ते को चुनती हैं। भले ही इसके लिए हवाई जहाज़ को लंबी दूरी क्यों नहीं तय करनी पड़े। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर ऐसा क्यों होता है, क्यों हवाई जहाज़ माउंट एवरेस्ट और प्रशांत महासागर के रास्ते नहीं उड़ती हैं? अगर नहीं जानते हैं, तो आज हम आपको इसके बारे में बताने जा रहे हैं कि क्यों हवाई जहाज़ को उड़ाने वाले पायलट अन्य मार्गों को चुनते हैं।
मौसम संबंधी घटनाएं
अधिकांश कमर्शियल एयरलाइन्स हिमालय या प्रशांत महासागर के रास्तों से हवाई उड़ान भरने से बचती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि मौसम संबंधी सारी घटनाएं क्षोभमंडल में घटती है और इसकी ऊंचाई स्थलमंडल से 20 किलोमीटर ऊपर तक है। इस मंडल में हवाई उड़ान भरने के लिए आदर्श मौसम नहीं होता है क्योंकि मौसम संबंधी घटनाओं से हवाई जहाज़ की उड़ानों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, और अप्रिय घटना की संभावना बनी रहती है। इसलिए वाणिज्यिक एयरलाइनें हिमालय या प्रशांत महासागर के रास्तों से बचती है।
20 हज़ार फ़ीट ऊंचा है हिमालय
वहीं, बात करें हिमालय या प्रशांत महासागर की तो हिमालय की सभी चोटियों की ऊंचाई 20 हज़ार फ़ीट से ऊंची हैं जो हवाई उड़ान भरने के लिए आदर्श नहीं है क्योंकि हवाई जहाज़ मौसम संबंधी सारी घटनाओं से बचने के लिए 30,000 फ़ीट ऊपर उड़ते हैं जिसका केंद्र समताप मंडल होता है। इस मंडल में मौसम संबंधी कोई घटनाएं नहीं घटती हैं और इस मंडल में वायुयान के उड़ान भरने के लिए आदर्श दशाएं हैं।
ऑक्सीजन की कमी
अगर पायलट हिमालय या प्रशांत महासागर के रास्तों को चुनती है तो उन्हें मौसम संबंधी घटनाओं से गुज़रना पड़ता है, जहां ऑक्सीजन की भी कमी है। साथ ही हिमालय की चोटियों पर वायु गति भी असमान्य रहती है। जिससे एयरलाइनों की गति पर बुरा असर पड़ सकता है। वहीं, यात्रियों को भी यात्रा में असहजता हो सकती है।
नेविगेशन रडार सर्विस
वहीं, हिमालय के क्षेत्रों में कम जनसंख्या होने के कारण नेविगेशन रडार सर्विस भी न के बराबर है। जिससे पायलट को ज़मीन से सम्पर्क साधने में बहुत कठिनाई हो सकती है, और आपातकाल स्थिति में पायलट को कोई मदद भी नहीं मिल पाएगी। इसलिए हिमालय या पैसिफिक महासागर के ऊपर से उड़ने की जगह उड़ानें घूम के जाना बेहतर समझती हैं।