Dussehra 2019: थाईलैंड में सालभर चलती है रामलीला, वहीं कंबोडिया की राजकुमारी बनती हैं सीता
थाईलैंड में पूरे साल कहीं भी कोई भी पारिश्रमिक देकर विवाह जन्मदिन या किसी अन्य आयोजन पर भी मंडली बुलाकर रामलीला करवा सकता है। जानेंगे विदेशों में होने वाली रामलीला के बारे में।
थाईलैंड में रामलीला को 'रामकेयन' नाम से जाना जाता है। यहां यह केवल शारदीय नवरात्र का आयोजन न होकर किसी भी विशेष अवसर पर मतलब पूरे साल कहीं भी कोई भी पारिश्रमिक देकर विवाह, जन्मदिन या किसी अन्य आयोजन पर भी मंडली बुलाकर रामलीला करवा सकता है। यह रामलीला विभिन्न दृश्यों में बंटी न होकर एक ही नृत्य-नाटिका की तरह होती है। यहां रामकेयन की कहानी तो रामायण वाली ही रहती है लेकिन वेशभूषा व पात्रों के नामों में कुछ बदलाव होता है। चमचमाते, आकर्षक वस्त्रों व आभूषणों के अलावा हर पात्र का मुकुट एक निर्धारित आकार का रहता है, जिसे देखते ही स्थानीय लोग पात्र पहचान लेते हैं।
जहां संस्कृति है रामायण
90 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले इंडोनेशिया में रामायण को रामायण ककविन (काव्य) कहा जाता है। यहां भी पूरे साल रामलीला का मंचन किया जाता है, किसी एक समय विशेष पर नहीं। रामायण के चरित्रों का इस्तेमाल वे स्कूलों में शिक्षा देने के लिए भी करते हैं। इस बाबत इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति सुकर्णो का एक कथन प्रसिद्ध है। 'इस्लाम हमारा धर्म है और रामायण हमारी संस्कृति।' ये शब्द उन्होंने पाकिस्तान के एक प्रतिनिधिमंडल को कहे थे जो हैरान थे कि एक इस्लामी गणतंत्र में रामलीला का मंचन क्यों होता है!
राजकुमारी बनी सीता
कंबोडिया में भी रामलीला के अभिनय का ज्ञान राष्ट्रीय निधि माना जाता है। सामाजिक उत्सवों के दौरान इस लोकप्रिय महाकाव्य का मंचन किया जाता है। वहां ऊंचे कुल के सदस्य भी रामलीला के पात्रों की भूमिका करने को लालायित रहते हैं। इसका एक उदाहरण है नरेश नरोत्तम सिंहानुक की पुत्री राजकुमारी फुप्फा (पुष्पा) द्वारा माता सीता का अभिनय करना। रत्नजडि़त आभूषण तथा रेशम के अति सुंदर वस्त्र पहनकर जब वह मंच पर आती थीं तो दर्शक मंत्रमुग्ध हो जाते थे। रामायण के प्रति उनकी श्रद्धा ने ही उन्हें इतना लोकप्रिय बना दिया कि कलाकार माता सीता के रूप में फुप्फा के चित्र ही बनाने लगे थे।
अवधी रामलीला का मंचन
रामलीला का मंचन विदेश में स्थानीय भाषाओं में तो होता ही है लेकिन पिछले कुछ सालों से अयोध्या शोध संस्थान की मंडली विदेश में अवधी शैली की रामलीला की प्रस्तुति भी दे रही है। संस्थान के निदेशक डॉ. वाई.पी. सिंह के अनुसार, इस मंडली ने 2017 में फिजी, 2018 में तीन कैरेबियाई देशों त्रिनिदाद, सूरीनाम तथा गोआना में तथा अगस्त 2019 में मॉरिशस में रामलीला का प्रदर्शन किया। इस दौरान मंडली ने विदेश की रामलीला भी देखी। हालांकि रामलीला की कथा तो एक ही रहती है लेकिन उनकी शैली में भिन्नता है। वे चौपाइयों के अनुसार मंच पर अभिनय नहीं करते बल्कि एक नृत्य नाटिका की तरह मंचित करते हैं। उल्लेखनीय है कि दक्षिण एशियाई देशों में रामलीला में क्षेत्र के अनुसार कथा में पात्रों को प्राथमिकता दी जाती है। जैसे मॉरिशस का नाम 'मारीच' के कारण पड़ा तो वहां मारीच के प्रसंग को अधिक विस्तार से दर्शाया जाता है। इसी प्रकार बाली द्वीप पर सुग्रीव व बाली का प्रसंग अहम रहता है। डॉ. वाई.पी. सिंह बताते हैं, 'हमारी टीम से उन्होंने विशेष मेकअप की तकनीक सीखी। साथ ही मंच पर इस्तेमाल किए जाने वाले पर्दे, जिन पर राम कथा के चित्र अंकित रहते हैं, उन्हें बनाने की विधि में भी उन्होंने विशेष रूचि दिखाई। भारतीय सांस्कृतिक परिषद द्वारा भारत में भी रामायण महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इस साल इसमें मॉरिशस, त्रिनिदाद, इंडोनेशिया, थाईलैंड आदि देशों के कलाकारों ने भारत आकर रामलीला का मंचन किया है।'