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भारत के सबसे ताकतवर और बेजोड़ वास्तुकला का नायाब नमूना है दौलताबाद किला

औरंगाबाद में बना दौलताबाद किला भारत के सबसे ताकतवर किलों में से एक है। जिसके बारे में कहा जाता है कि इस किले को ताकत से जीत पाना असंभव था। हर बार इसे छल-कपट द्वारा ही जीता गया।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Tue, 25 Sep 2018 01:44 PM (IST)Updated: Tue, 25 Sep 2018 01:44 PM (IST)
भारत के सबसे ताकतवर और बेजोड़ वास्तुकला का नायाब नमूना है दौलताबाद किला
भारत के सबसे ताकतवर और बेजोड़ वास्तुकला का नायाब नमूना है दौलताबाद किला

वैसे तो औरंगाबाद खासतौर से अपने अजंता और ऐलोरा गुफाओं के लिए जाना जाता है लेकिन ऐतिहासिक दृष्टि से भी ये जगह बहुत ही खास है। क्योंकि यहां है चट्टानों को काटकर बनाया गया अद्भुत दौलताबाद किला। जो उस वक्त के उत्तम वास्तुकला का नायाब नूमना है। इतना ही नहीं ये भारत के सबसे विशाल और मजबूत किलों में से भी एक है। किले के अंदर और भी कई दूसरे स्मारक जैसे भारत माता मंदिर, चंद मीनार, जलाशय, चीनी महल, हाथी टैंक, बाजार, बने हुए हैं।

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किले की बनावट

दौलताबाद किला 200 मीटर ऊंचे शंकुकार पहाड़ी पर बना है। इतनी ऊंचाई पर बने होने की वजह से ही दुश्मन सेना का यहां तक पहुंच पाना मुश्किल होता था। इस किले की दूसरी खासियत है कि ये जिस पहाड़ी पर बना है उसके चारों ओर गई खाईयां हैं। 95 हेक्टेयर एरिया में फैले इस किले की सुरक्षा के लिए 3 ऊंची दीवारें हैं, जिन्हें कोट कहते हैं। मुख्य किले तक पहुंचने के लिए तीन अभेद दीवारों, एक जलशय, अंधेरे और टेढ़े मेढ़े मार्ग से लगभग 400 सीढ़ियों से होकर गुजरना पड़ता है। किले में बने सात द्वार और उसकी दीवारों पर तोप रखे हुए हैं जिनमें से आखिरी द्वार पर रखे 16 फीट लंबे तोप को आज भी देखा जा सकता है। किले के अंदर भारत माता को समर्पित मंदिर है। किले में एक और बहुत रोमांचकारी जगह हाथी हौड़ पानी की टंकी है। जहां तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं।

किले का इतिहास

भीलम नामक राजा ने 11वीं सदी में इस किले की खोज की थी। तब इस शहर को देवगिरि (देवताओं वाले पहाड़) के नाम से जाना जाता था। काफी समय बाद मुहम्मद बिन तुगलक ने दौलताबाद का इस्तेमाल अपने राज्य का विस्तार करने में किया। मोहम्मद बिन तुगलक के बाद भी कई शासक हुए। ऐसा माना जाता है कि मुगल बादशाह अकबर के समय इस किले को मुगलों ने जीत लिया और इसे मुगल साम्राज्य में शामिल कर लिया गया। 1707 ईस्वी में औरंगजेब की मौत तक इस किले पर मुगल शासन का ही अधिकार रहा, जब तक ये हैदराबाद के निजाम के कब्जे में नहीं आया।

कैसे पहुंचे

हवाई मार्ग- औरंगाबाद यहां का सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट है। जहां तक के लिए सभी बड़े शहरों से रोजाना फ्लाइट्स अवेलेबल हैं।

रेल मार्ग- औरंगाबाद रेलवे स्टेशन पहुंचकर यहां तक पहुंचना आसान है। मुंबई से चलने वाली औरंगाबाद जन शताब्दी एक्सप्रेस अच्छी ट्रेन है।

सड़क मार्ग- औरंगाबाद से दौलताबाद की दूरी 16 किमी है। जहां तक के लिए रिक्शा और टैक्सी की सुविधा अवेलेबल है। औरंगाबाद का रास्ता NH 211 से होकर गुजरता है इसलिए यहां बसों की सुविधा भी मौजूद है।


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