बेहद खास होती है बनारस की देव दीपावली
दीपावली के लगभग 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा को मनायी जाती है देव दीपावली। मौका लगे तो देख आयें वाराणसी में यह उत्सव क्योंकि यहां ये होती है खास।
अदभुद होता है नजारा
देवदीवाली कार्तिक माह की पूर्णिमा को दीपावली के पंद्रह दिन बाद मनाया जाता है। इस उत्सव का सबसे ज्यादा महत्व और आनंद उत्तर प्रदेश के शहर वाराणसी में आता है। ये प्राचीन शहर काशी की विशेष संस्कृति और परम्परा है। इस अवसर पर गंगा नदी के किनारे रविदास घाट से लेकर राजघाट तक सैंकड़ों दिये जलाकर गंगा नदी की पूजा की जाती है। कहते हैं देव दीवाली की परम्परा सबसे पहले पंचगंगा घाट पर 1915 में हजारो दिये जलाकर शुरु की गयी थी। बाद में इस प्राचीन परम्परा काशी के लोगों ने आपसी सहयोग से इसे महोत्सव में बदल कर विश्वप्रसिद्ध कर दिया। इस मौके पर असंख्य दीपकों और झालरों की रोशनी से रविदास घाट से लेकर आदि केशव घाट और वरुणा नदी के घाटों पर बने सारे देवालय, महल, भवन, मठ-आश्रम जगमगा उठते हैं। इस अदभुद नजारे को देख कर लगता है कि मानो पूरी आकाश गंगा ही जमीन पर उतर आयी हो।
ये है इस उत्सव की कहानी
ये तो सभी जानते हैं कि काशी यानि बनारस और वाराणसी को शिव की नगरी कहा जाता है। यहां ये उत्सव मनाने के पीछे शिव से जुड़ी एक कथा ही प्रचलित है। बताते हैं कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवतागण दिवाली मनाते हैं क्योंकि इसी दिन देवताओं का काशी में प्रवेश हुआ था। पौराणिक ख्कथा के अनुसार पहले तीनों लोकों में त्रिपुराशूर राक्षस का राज चलता था देवतागणों ने भगवान शिव के समक्ष त्रिपुराशूर राक्षस से उद्धार की विनती की। भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन राक्षस का वध कर उसके अत्याचारों से सभी को मुक्त कराया और त्रिपुरारि कहलाये। इससे प्रसन्न हो कर ही देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया था और तभी से कार्तिक पूर्णिमा को देवदीवाली मनायी जाने लगी।
इस बार कब है देव दीपावली
दीवाली की धूमधाम और मस्ती से उबर कर पूरा आराम कर लें और तब वाराणसी जाने की योजना बनायें। आप के पास तैयारी का पूरा समय होगा क्योंकि इस साल देव दीपावली 21 नवंबर को पड़ रही है। इस दिन ही कार्तिक माह की पूर्णिमा होगी। जाहिर है तब तक गुलाबी ठंड पड़ने लगेगी और गरमी का असर खत्म हो जायेगा। यानि मौसम शानदार होगा और आप इस अलौकिक दृश्य का पूरा आनेद ले सकेंगे।