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ज्यादा आत्मनिर्भर हुई हैं महिलाएं

कोटा से ताल्लुक रखने वाली जैस्मीन भसीन ने पहले साउथ की फिल्मों में जगह बनाई। अब टेली जगत की उदीयमान अभिनेत्री बनने की राह पर तेजी से अग्रसर हैं।

By Srishti VermaEdited By: Published: Mon, 23 Jan 2017 12:01 PM (IST)Updated: Mon, 23 Jan 2017 01:04 PM (IST)
ज्यादा आत्मनिर्भर हुई हैं महिलाएं
ज्यादा आत्मनिर्भर हुई हैं महिलाएं

जैस्मिन भसीन इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के हब कोटा से हैं। वह मध्ययवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती हैं, जहां अकादमिक क्षेत्र में ही करियर बनाने का दवाब होता है, लेकिन जैस्मिन ने अलग राह चुनी। वहां से निकल उन्होंने पहले साउथ की फिल्मों में जगह बनाई। अब टेली जगत की उदीयमान अभिनेत्री बनने की राह पर तेजी से अग्रसर हैं।

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कहानी में सरोगेसी
बहरहाल, ग्लैमर जगत में जैस्मिन भसीन का सफर दो साल पहले शुरू हुआ था। जीटीवी के भारी-भरकम बजट वाले शो 'टशन-ए-इश्क’ से। इस शो में वह पंजाबी युवती ट्विंकल तनेजा के रोल में थीं। वह बहुत जल्द कलर्स के नए शो 'दिल से दिल तक’ में आने वाली हैं। सूत्रों के मुताबिक, यह त्रिकोणीय प्रेम कथा है। कुछ-कुछ वैसी जैसी सलमान खान, रानी मुखर्जी और प्रीति जिंटा वाली 'चोरी-चोरी चुपके-चुपके’ थी। इस शो में 'बालिका वधू’ फेम सिद्धार्थ शुक्ला और 'उतरन’ फेम रश्मि देसाई भी हैं। यहां भी सरोगेट मदर यानी किराए की कोख कहानी के केंद्र में है। जैस्मिन सरोगेट मां बनती हैं। वह कहती हैं, 'शो की कहानी बड़ी इमोशनल है। प्रोमो के बैकड्रॉप में 'साथिया’ का गाना 'उड़ी-उड़ी’ बतौर कैरेक्टर है। जाहिर तौर पर इसकी कहानी प्यार, प्रतिबद्धता, भटकाव और महत्वाकांक्षाओं के टकराव की अनूठी कहानी है।

गुजराती युवतियों की है पड़ताल
मेरे किरदार का नाम टेनी है। हिंदी में जिसका मतलब छोटा साइज होता है। वह गुजराती है। यह 'टशन-ए-इश्क’ में निभाए गए ट्ंविकल तनेजा के किरदार से बिल्कुल अलग है। उससे ज्यादा ठहराव है इसकी सोच-अप्रोच में। शो का प्रोमो देख यह कतई न सोचें कि इसमें बहुत ज्यादा खुलापन है। हमने प्यारी सी कहानी कहने की कोशिश की है। हां, भावनाओं की प्रबल अभिव्यक्ति इसमें है। वह चाहे, मोहब्बत की हो या नफरत की। टेनी परिवार नामक संस्था में बहुत यकीन रखती है। उसके आने पर सिद्धार्थ शुक्ला और रश्मि देसाई के किरदारों की जिंदगी में क्या तूफान आता है, शो इस बारे में है।


दकियानूसी से दिक्कत नहीं
इस मामले में वह मेरी जैसी ही है। मैं अपने परिजनों के खिलाफ जाकर कोई भी कदम नहीं उठा सकती। भले ही लोग मुझे दकियानूस कह सकते हैं। मेरे लिए यह दकियानूसी रवैया नहीं है। मेरे पैरेंट्स ने वैसे तो मेरे सपने को साकार करने में पूरा साथ दिया। कभी नहीं सवाल किया कि ग्लैमर जगत में करियर क्यों बनाना है। सीधे लहजे में कहूं तो वे मेरे लिए कभी हानिकारक नहीं रहे। अगर वे कहते कि मेरे लिए कुछ और सही है तो मैं वह करती। मेरा मानना है कि हमें हमारे मां-बाप भी भली-भांति जानते हैं। हमारी खूबियों और कमियों को पहचानने की क्षमता उनमें होती है। वैसे भी बच्चों पर आज के जमाने में कोई अपनी सोच नहीं थोपता है। मेरा मानना है कि सही दिशा देने को थोपने का नाम न दिया जाए।

महिलावाद से है ऐतराज
आधुनिक ख्यालातों के नाम पर मैं खासतौर के 'वादे’ से भी दूर ही रहती हूं। आजकल तो हवा में आए दिन नए तरह के 'वादे’ अस्तित्व में आ रहे हैं। जैसे हमारी अधपकी सोच ने 'महिलावाद’ की बड़ी गलत अवधारणा लोगों के सामने रख दी है। इसने मर्दों के अंधे विरोध की शक्ल ले ली है। इससे मुझे ऐतराज है। हर महिला उत्पीडऩ में मर्दों का ही प्रत्यणक्ष रोल हो, यह जरूरी नहीं। उनकी सोच का सम्मान कर लेने से लड़कियों के स्वाभिमान को ठेस पहुंचेगी, इस एप्रोच को मैं सही नहीं मानती। कई मामलों में मर्द भी औरतों के जुल्म के शिकार बनते हैं, पर 'आधुनिकता’ की पट्टी लगाए 'महिलावादियों’ को वह नहीं दिखता। यह सिलसिला थमना चाहिए। ऐसे कई घर हैं, जहां पिता की बजाय ससुर के प्रोत्साहन से लड़कियां आगे बढ़ी हैं। आखिर में, हमें अपने पूर्वाग्रह दूर करने होंगे।

हर मर्ज का इलाज आत्मनिर्भरता
यह बात सही है कि पहले के मुकाबले महिलाएं अब ज्यादा आत्मनिर्भर हुई हैं। वे अपने विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकती हैं और स्वतंत्र होकर निर्णय ले सकती हैं। माता-पिता भी बच्चों को पूरी लिबर्टी देने लगे हैं। अब लोग लड़कियों को उनकी पसंद का करियर चुनने देते हैं। हालांकि गांवों व छोटे शहरों में अब भी स्थितियों में खास बदलाव नहीं आया है। इसका कारण अशिक्षा है। शिक्षा में जितनी बेहतरी आएगी, लोगों की सोच उतनी विकसित होगी। लोग आत्मनिर्भरता की अहमियत से वाकिफ होंगे। महिलाओं में घरेलू हिंसा पर पलटवार करने की ताकत विकसित होगी।

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