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होली के रंग...जानिए क्‍या कहते हैं टीवी के सितारे

सितारों के लिए भी खास है रंगों का पर्व होली। इससे जुड़ी अपनी दिलचस्प यादें साझा करने के साथ ही वे बता रहे हैं कि इस बार कैसे मनाएंगे होली।

By Srishti VermaEdited By: Published: Thu, 09 Mar 2017 11:19 AM (IST)Updated: Thu, 09 Mar 2017 01:06 PM (IST)
होली के रंग...जानिए क्‍या कहते हैं टीवी के सितारे
होली के रंग...जानिए क्‍या कहते हैं टीवी के सितारे

रंग नहीं फूलों की होली :  दिलीप जोशी

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पिछले आठ सालों से मैं होली ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ के सेट पर ही खेल लेता हूं। मैं इको फ्रेंडली होली खेलने में यकीन रखता हूं। इस बार भी हमारी होली सेट पर ही मनेगी। यह अच्छा भी लगने लगा है। वह इसलिए कि हमारा ज्यादा वक्त तो रील लाइफ वाले परिवार के साथ ही बीतता है। सब दिल के बेहद अच्छे हैं। साथ ही सेट पर ही ढेर सारे लोग होते हैं। लिहाजा हमारा सेट सोसायटी में तब्दील हो जाता है होली पर। बाकी मैं पिछले कई सालों से अलग तरह की होली खेल रहा हूं। सेट पर होली खेलने के बाद मैं अपने गृहनगर स्थित स्वामी नारायण मंदिर जाता हूं। वहां रंगों के बजाय फूलों से होली खेलता हूं।


 

एक रात पहले से सो नहीं पाती थी : ऐश्वर्या सखूजा

इस त्योहार की खास बात है मासूमियत। यह सभी को एक सूत्र में पिरोता है। इसकी मुझे बड़ी खुशी होती है। काफी उत्साह और रोमांच रहता है। होली से ठीक पहले वाली रात मैं सो नहीं पाती थी। सारी रात योजना बनाने में बीतती थी कि कैसे व किस-किस को रंग लगाना है। होली की सुबह दरवाजे की ओट में घात लगाकर बैठी रहती थी। इस इंतजार में कि ज्यों ही कोई गुजरे उसे रंगों से सराबोर कर देना है। गली से गुजरने वाले हर एक शख्स को मैं रंग लगाती थी। आज भी मुझे गुझिया खाना भाता है। अब जानने वालों के माथे पर टीका लगाती हूं। पहले परिवार के साथ होली खेलती हूं। फिर दोस्तों संग। होली में सफलता का सांकेतिक सार है। वह यह कि सबको साथ लेकर चलना। अपने चाहने वाले साथ हैं तो ही हम सफल हैं। वे ही हमारी पूंजी है।

हर आते-जाते को रंग देता था : परम सिंह

बचपन में हमारी पलटन मोहल्ले में हुड़दंग के लिए कुख्यात थी। हम अपने पड़ोस के बच्चों के संग होली पर खूब धमाल करते थे। मैं बहुत शरारती था। हर आते-जाते व्यक्ति पर रंग भरे बैलून फेंका करता। जो दोस्त देर से होली खेलने आते, उन्हें सजा के तौर पर हम टब में डाल देते। बड़े होने पर होली का जश्न मनाने कई बार गोवा गया। इस बार भी कोशिश है कि करीबियों के संग गोवा जाऊं और वहां होली खेलूं। इसकी खातिर शूटिंग से चार दिन की छुट्टी ले ली है। होली के मौके पर हम सब खुले में होलिका दहन करते हैं। फिर उसके चारों तरफ नाचते- गाते हैं। अगले दिन सुबह का आगाज मां के चरणस्पर्श से होता है। उनका आशीर्वाद लेकर व उनके हाथों की बनी गुझिया खाकर ही होली सेीलिब्रेट करना शुरू करता हूं।

होली मिलन और दहन पसंद है : अर्जुन बिजलानी

मुझे होली का त्योहार बहुत पसंद है। बचपन में मैं अपनी बिल्डिंग वाले दोस्तों के संग खेला करता था। बड़े होने पर जब मेरा एक्टिंग का सपना साकार हुआ तो पहली होली मैंने अपने परिवार वालों और दोस्तों के साथ खेली। तब नेहा और मैंने शादी नहीं की थी, पर हम एक-दूसरे के बहुत करीब थे। हम बहुत खुश थे। चेहरे पर लगे रंगों से वह खुशी और चमकदार हो गई थी। मुझे होलिका दहन का रिवाज बहुत अच्छा लगता है। इसका मतलब है बुराइयों को जला दो। होली के मौके पर ठंडाई पीना-पिलाना भी पसंद है।

कमरे में बंद हो जाती थी : सौम्या टंडन
धारावाहिक भाबी जी घर पर हैं में मेरा किरदार अनीता होली खेलने के लिए उत्साहित है, पर रियल लाइफ में मैं रंगों से दूर भागती थी। घर पर जो रंग-गुलाल व मिठाइयां बच जाती थीं, उन्हें बांट देती थी। मैं तो खुद को कमरे में लॉक कर लेती थी। फिर भी मेरे शरारती दोस्त कमरे में घुस जाते तो मैं उसका भी इंतजाम रखती थी। मैं बेड के नीचे घुस जाती थी या खुद को आलमारी में बंद कर लेती। क्या बताऊं, खुद को बचाने के लिए मैंने क्या-क्या नहीं किया।

दोस्तों के यहां व्यंजन उड़ाती थी : अनिता हसनन्दानी

होली से मुझे बचपन से ही बड़ा प्यार रहा है। आज भी यह त्योहार मेरा फेवरेट है। इससे जुड़ी हर रवायत निभाने में मुझे मजा आता है। लिहाजा मैं हर बारीकी का ख्याल रखती हूं। न रंग-गुलाल की कमी रखती हूं, न जलेबी, समोसों और मिठाइयों की। बचपन में मैं अपनेपड़ोसियों के यहां होली खेलती थी और वे मेरे लिए ढेरों पकवान बनाते थे। होली के मौके पर उन सभी दोस्तों के घर जाती थी, जिनके यहां लजीज व्यंजन बनते थे। यह त्योहार सामाजिक समरसता का सार समेटे हुए है, यह बात मुझे आनंदित करती है। कॉलेज के दिनों में ‘रंग बरसे...’ खूब गाती थी।

चुड़ैल बनाने की होती थी साजिश : शालिनी सहूता

बचपन में मैं भाई-बहनों और दोस्तों की टारगेट हुआ करती थी। होली के दिन मेरा स्वागत रंग-गुलाल से होता था। अलगअलग तरह के रंग पहले से खरीदकर घर में जमा कर लिए जाते थे। सबकी कोशिश मुझे रंग से पूरी तरह से पोत देने की होती थी। इतनी कि मैं ‘चुड़ैल’ सी दिखने लगूं। अब तो हालात बदल गए हैं। रंग-गुलाल से खेलने की जगह लजीज पकवानों के साथ मेहमानों की आवभगत में ज्यादा वक्त चला जाता है। एक चीज बचपन से लेकर आज भी बरकरार है। वह है होलिका दहन की परंपरा।

-जेएनएन

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