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बच्चे का फोकस पढ़ाई और करियर पर रहे, इसके लिए छोटी उम्र से ही सिखाएं ये जरूरी घरेलू काम

अपने लाडलों में छोटी उम्र से ही अपने काम खुद करने की आदत विकसित करना बेहद जरूरी है जो उनके आने वाली जिंदगी में बहुत काम आता है। तो 8 से 12 साल के बच्चों को कौन-से काम जरूर सिखाएं जानिए यहां।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Wed, 03 Feb 2021 12:07 PM (IST)Updated: Wed, 03 Feb 2021 12:07 PM (IST)
बच्चे का फोकस पढ़ाई और करियर पर रहे, इसके लिए छोटी उम्र से ही सिखाएं ये जरूरी घरेलू काम
किचन में सैलेड बनाते और खेलती हुई मां और बेटी

अगर पेरेंट्स चाहते हैं कि बच्चे का फोकस पढ़ाई और करियर पर हो तो उनमें छोटी उम्र से ही अपने काम खुद करने का आदत विकसित करें। आठ-नौ साल की उम्र से उन्हें यहां बताए जा रहे घरेलू काम सिखाए जा सकते है। जो उनमें एक अच्छा और जिम्मेदार व्यक्तित्व डेवलप करती है।

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खुद जागना

छोटी उम्र से ही बच्चों की दिनचर्या ऐसी रखें कि वे सही समय पर सोने-जागने के अभ्यस्त हो जाएं। यह आदत पूरी जिंदगी काम आएगी। चाहे कॉलेज हो या प्रोफेशनल लाइफ उन्हें कहीं टाइम पर पहुंचने में दिक्कत नहीं होगी।

रसोई के काम

रसोई के छोटे-छोटे काम जैसे ब्रेड पर बटर-जैम लगाना, सिंपल सैंडविच बनाना, अपना टिफिन साफ करना, अपनी पानी की बोतल भरना आदि भी 8-9 साल की उम्र से बच्चों को सिखाएं। इससे जरूरत पड़ने पर वे अपने लिए खाने की व्यवस्था कर सकेंगे।

कपड़े धोना

8 साल की उम्र से ही बच्चों को अपने कपड़े खुद धोना सिखाएं। शुरुआत रूमाल से करें। इसके लिए कपड़े धोते समय उन्हें अपने पास बैठाएं और कपड़ों पर साबुन लगाना और पानी में निकालना सिखाएं। इसके बाद सबसे पहले उन्हें अपना रूमाल खुद धोने के लिए कहें। जब रुमाल साफ करना सीख जाएं तो अंडरगॉर्मेंट्स धोना सिखाएं। इसके बाद उन्हें वॉशिंग मशीन के बारे में बताएं।

अपनी चीज़ें संभालना

ज्यादातर माएं बच्चों की जरूरी चीज़ें अपनी अलमारी में रखती हैं या फिर उनकी अलमारी खुद अरेंज करती हैं। शुरुआती सालों में तो ऐसा करना जरूरी होता है लेकिन आठ-नौ साल की उम्र से उन्हें अपनी चीज़ें खुद व्यवस्थित करना सिखाना चाहिए। इसके लिए उन्हें अलग से अलमारी दें और उसमें अपने कपड़े, फुटवेयर, एक्सेसरीज़ आदि अलग-अलग रखना सिखाएं।

अपनी पैरवी खुद करना

अक्सर बच्चे पड़ोंस के दोस्तों से लड़ाई-झगड़ा होने पर पेरेंट्स को बीच-बचाव के लिए बुलाते हैं। पेरेंट्स को उनके मसलों में दखल देने की बजाय उनसे अपने मसले खुद सुलझाने के लिए कहना चाहिए। यही नहीं, क्लासमेट से मनमुटाव होने पर भी आपसे कहने के बजाय टीचर के सामने अपना पक्ष रखने की सलाह दें। रोज़-रोज़ की छोटी बातों को खुद सुलझाने से वे अपनी सड़ाई खुद लड़ना सीखेंगे।

Pic credit- freepik


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