तोल मोल के बोल
यह बोले गए शब्दों का जादू है कि कोई झट से दोस्त बन जाता है, जबकि बिना सोचे-समझे बोलने वाले से लोग किनारा कर लेते हैं। फिर क्यों न बोलें तोल-मोल कर..
कुछ लोग कभी भी, कुछ भी बोल देते हैं। उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि उनकी बोली से सामने वाले को कितनी चोट पहुंचेगी। यह बोले गए शब्दों का जादू है कि कोई झट से दोस्त बन जाता है, जबकि बिना सोचे-समझे बोलने वाले से लोग किनारा कर लेते हैं। फिर क्यों न बोलें तोल-मोल कर..
चिराग 12वीं की परीक्षा खत्म होते ही क्रिकेट एकेडमी में दाखिला लेने की योजना बना रहा था। पर पापा से कैसे कहूं? यह सोचकर परेशान रहता था। दिन नजदीक आया, तो उसने मौका मिलते ही पूछ लिया, ‘पापा, मेरे सभी दोस्त कहते हैं कि मैं अच्छा क्रिकेट खेलता हूं। मेरी परीक्षा खत्म हो गई है। क्या अब अपने स्कूल की क्रिकेट एकेडमी में दाखिला ले सकता हूं?’ पर पापा ने जो जवाब दिया, उसे सुनकर उसकी सारी झिझक खत्म हो गई। दोस्तो, वह खुद को एक चैंपियन क्रिकेटर के रूप में देखने लगा। चिराग से पापा ने कहा था, ‘केवल तुम्हारे दोस्त तुम्हें अच्छा क्रिकेटर मानते हैं या तुम्हें भी ऐसा लगता है। तुम पहले ही बढ़िया क्रिकेटर हो। तुम्हें केवल अपनी तकनीकी गलतियों को सुधारना है और इसके लिए कोच की जरूरत है!’
दोस्तो, हमारी रोजाना की बातचीत हमारे मन को प्रभावित करती है। कोई बातचीत हताश कर देती है, तो कभी छोटी-सी बात हमें इतना खुश कर देती है कि हम उस खास पल को ताउम्र नहीं भूल पाते। क्या आपने कभी सोचा है कि यदि शब्द न होते, तो हमारी बातचीत में असर कैसे पैदा होता? आपने खुद महसूस किया होगा कि सुंदर और प्रभावी शब्दों के कारण ही कोई किताब रोचक लगती है और कोई अनजान व्यक्ति भी महज अपने शब्दों और लहजे के कारण हमें झट से प्रभावित कर लेता है।
समाजशास्त्री रितु सारस्वत के मुताबिक, ‘बात भले छोटी लगे, पर है यह एक बड़ी और गंभीर बात। हमें समझना होगा कि शब्दों में हमारी सोच लिपटी होती है और यही हमारी पहचान बनाती है, इसलिए शब्दों के प्रयोग में सजगता बरतनी चाहिए।’
आदत पर जोर नहीं!
‘अरे यार, जब देखो एक ही बात रिपीट करते रहते हो, क्या और बातें नहीं हैं तुम्हारे पास...अचानक तुम्हारे मूड को क्या हो गया, कहीं किसी से झगड़ा-वगड़ा तो नहीं हो गया... छोड़ो उसे, उसके भेजे में ये बात नहीं आने वाली।’अपने दोस्तों के बीच ऐसी बातचीत करते समय आपको अंदाजा नहीं होगा कि इसमें अच्छा-बुरा क्या है? बोलचाल का यह तरीका हमारी आदत में शुमार हो जाता है, इसलिए हम सजग नहीं हो पाते। ध्यान तब जाता है, जब हमें कोई टोकता है। आपने देखा होगा कि जिन शब्दों का प्रयोग हम अनजाने ही करते हैं, वे प्राय: घर पर भी कर देते हैं और उन्हें सुनते ही जब बड़े-बुजुर्गों से डांट मिलती है, तब आप चौंकते हैं कि आखिर क्या गलत हो गया। मनोवैज्ञानिक गीतिका कपूर कहती हैं, ‘यह बोलने वाले की गलती कम, परिवेश की ज्यादा होती है। हम उन्हीं चीजों को ज्यादा सीखते हैं, जिनसे हमारा रोजाना वास्ता पड़ता है।’ उनके मुताबिक, टेलीविजन, इंटरनेट और सिनेमा जगत में देखे-सुने जाने वाले शब्द जुबान पर चढ़ जाते हैं और इसके कारण बोलने का लहजा भी बदल जाता है।
ताकत शब्दों की
हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, अगर सकारात्मक शब्दों से भरे संदेश दिमाग को दिए जाएं, तो हम बड़े से बड़े दर्द से निपट सकते हैं। वास्तव में इस तरह के प्रयोग हो भी हो रहे हैं। कहते हैं जो कुछ हम शेयर करते हैं या कहते हैं, उसका प्रभाव सबसे पहले खुद पर पड़ता है। समाजशास्त्री रितु सारस्वत कहती हैं, ‘इतिहास गवाह है कि शब्दों ने बड़े से बड़े युद्ध को अंजाम दिया है। यदि द्रौपदी अंधे का पुत्र अंधा न कहतीं, तो आज महाभारत न हुआ होता।’ बुरे से बुरा और अच्छा से अच्छा प्रभाव और परिणाम पैदा कर सकते हैं शब्द। उनके मुताबिक,‘जब हम शब्दों का अर्थ समझेंगे, तो हमारा लहजा भी खूबसूरत होगा। ’ यहां पर फारसी साहित्य के महान कवि और लेखक रूमी की बात सटीक लगती है, ‘बारिश की रुनझुन-सी कोमल आवाजों को सुनकर खिलते हैं फूल,आंधी-तूफान-सी कड़कती- गरजती मन को डराती आवाजें ऐसा नहीं कर सकतीं।’ इसलिए अपने शब्दों को मधुर और प्रभावी बनाने का प्रयास करें। कोरी तीखी-तेज आवाजों से नहीं बन सकती कोई बात।
ऐसे बनें शब्दों के धनी
शब्द अप्रिय लगें, तो माफ किए जा सकते हैं, पर ऐसे शब्दों और ऐसा कहने वाले को भुलाना नामुमकिन होता है। यह बहुत अफसोसजनक है कि मीठा बोलने वालों को शक की निगाह से देखते हैं लोग। उन्हें स्मार्ट या चालाक मान लिया जाता है। बातों-बातों में यह भी कह दिया जाता है कि अपना काम निकलवाने के लिए मीठा बोलते हैं लोग। यह भी अजीब ट्रेंड है कि धौंस जमाकर बात करने वाला ताकतवर माना जाता है और गालियां देकर बात करने में कुछ लोगों को गर्व की अनुभूति होती है। पर वास्तव में ये बातें सच नहीं। दोस्तो,आपने महसूस किया होगा कि अच्छे शब्दों का धनी होना और अच्छा वक्ता होना आसान नहीं। रातोंरात कुछ संभव नहीं और असंभव कुछ भी नहीं है। इस बारे में अपने जमाने के मशहूर रेडियो जॉकी अमीन सयानी कहते हैं, ‘बेहतरीन शब्दों का चुनाव वही कर सकते हैं, जो अच्छी किताबों और अच्छे परिवेश का चयन कर पाते हैं। आप जितना ज्यादा पढ़ेंगे, जितनी दोस्तों, पैरेंट्स और टीचर्स से चर्चा करेंगे और अपने सर्किलमें बढ़िया लोगों को शामिल करेंगे, उतना ही आप शब्दों से ताकतवर बनेंगे। इसी से लोकप्रिय होंगे और आपका व्यक्तित्व भी निखरता जाएगा।’
सीख कर बनें समृद्ध
मैं महाराष्ट्र से हूं। स्वाभाविक रूप से मराठी भाषी हूं। ऐसे में हिंदी टीवी इंडस्ट्री में काम करना आसान नहीं था। हिंदी भाषी बनने के लिए मुझे खूब मेहनत करनी पड़ी। घर पर सबको इस काम में लगा दिया था। जब कुछ शब्दों को समझती नहीं थी, तो सबसे पूछती रहती। फीडबैक लेती। आज बहुत कंफर्टेबल हूं। आप जितनी कोशिश करेंगे, नया सीखना चाहेंगे, शब्दों के मामले में उतने ही समृद्घ भी होंगे। अलग-अलग शब्दों के बारे में जानकारी होगी, तो आपके ज्ञान में भी इजाफा होगा। इन सबके लिए जरूरी है कि सीखे गए नए शब्दों को सजग होकर अपनी बोलचाल में शामिल करें।
एरिका फर्नांडिस, टीवी आर्टिस्ट
कुशल वक्ता की पहचान
-स्पष्ट और सरल-सहज शब्दों का प्रयोग।
-शब्दों पर पकड़ और सही जगह उनके प्रयोग की जानकारी।
-कठोर या अत्यधिक कोमल आवाज नहीं हो।
-शब्दों और बॉडीलैंग्वेज का तालमेल भी संतुलित हो।
-सीमा झा
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