Stay Home Stay Empowered: कोरोना के इस दौर में भी जीवन में रंग और जज्बा भर रहे हैं थियेटर
देश में अनलॉक-2 लागू हो चुका है और ज्यादातर चीजें अब खुल चुकी हैं। लेकिन थियेटर मार्च के मध्य से ही बंद हैं। तीन महीने से पर्दा गिरा हुआ है लेकिन मंचन चालू है।
नई दिल्ली, जेएनएन। देश में अनलॉक-2 लागू हो चुका है और ज्यादातर चीजें अब खुल चुकी हैं। लेकिन थियेटर मार्च के मध्य से ही बंद हैं। तीन महीने से पर्दा गिरा हुआ है, लेकिन मंचन चालू है। थियेटर कलाकारों और थियेटर ग्रुप्स का कहना है कि वे भी महामारी के इस दौर में अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। वे लोगों की मदद भी कर रहे हैं और लोगों का मनोरंजन भी कर रहे हैं। कहीं नाटकों का ऑनलाइन मंचन हो रहा है, तो कहीं स्ट्रीट प्ले के जरिए लोगों में संघर्ष करने का जज्बा पैदा करने की कोशिश की जा रही है।
अस्मिता थिटेयर ग्रुप के अरविंद गौर ने बताया कि उनका थियेटर 20 मार्च से ही क्वारंटाइन थियेटर फेस्टिवल का आयोजन कर रहा है। यह फेस्टिवल पिछले 100 दिनों से जारी है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर कई नाटकों जैसे, कोर्ट मार्शल, मामूली आदमी आदि के वीडियो अपलोड किए जा रहे हैं, ताकि दर्शकों का मनोरंजन होता रहे। वहीं, 40 कॉलेजों के साथ मिलकर कॉलेज फेस्टिवल भी किए गए हैं। नए छात्रों के लिए थियेटर की ऑनलाइन माध्यमों के जरिए क्लास भी चलाई जा रही है। सामाजिक जिम्मेदारी निभाते हुए मुंबई के एक कम्युनिटी किचेन में स्वयंसेवा भी की जा रही है। अरविंद गौर ने कहा कि वे हर वैसी कोशिश कर रहे हैं, जो संभव है। लॉकडाउन के दौरान घट रही कहानियों पर छोटे-छोटे प्ले बनाकर अपलोड किया जा रहा है।
बेगूसराय फैक्ट रंग मंडल के नाटककार और लेखक सुधांशु फिरदौस कहते हैं कि लॉकडाउन के चलते उनके थियेटर ग्रुप के लोग आपस में मिल नहीं पा रहे हैं। पर कॉल और वीडियो कॉल के जरिए सभी एक-दूसरे से जुड़े हैं। सुधांशु फिरदौस के मुताबिक, इस वक्त मंचन संभव नहीं है। इसलिए कहानी लिखने और विचार-विमर्श पर ही सबका जोर है।
इन दिनों कहानियां भी खूब हैं। कोई दोस्त से मिलने गया और लॉकडाउन में वहीं फंस गया और वह दोस्त के परिवार की हर बात से वाकिफ हो गया। तो कोई ट्रक ड्राइवर बीवी से मिलने चुपके से गांव गया और बीवी उससे ही लड़ने लगी, क्योंकि उसे संक्रमण का डर था। पड़ोसियों ने शोर सुना और ट्रक ड्राइवर क्वारंटाइन हो गया। श्रमिकों के दर्द की तो सैकड़ों कहानियां हैं। देश की हर सड़क पर उनके पैरों की छाप है। अब बस इन कहानियों को लिख रहे हैं। सुधांशु फिरदौस के मुताबिक, वे दर्द को भी कॉमेडी स्टाइल में लिख रहे हैं, क्योंकि दर्द पहले ही काफी महसूस हो चुका है। इस लॉकडाउन में और इसके बाद भी लोग हंसना चाहेंगे।
कलाकार ऑनलाइन काम करें तो बेहतर रहेगा
काम न मिलने के चलते यह अभिनेताओं के लिए बुरा वक्त है। उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में कई टीवी कलाकारों को खुदकुशी करते देखा गया है। थियेटर कर्मी भी मुश्किल में हैं। सुधांशु फिरदौस भी मानते हैं कि ऊर्जा से भरे थियेटरकर्मी आज खुद को अकेला महूसस कर रहे हैं।
अरविंद गौर के मुताबिक, वह दूसरे कलाकारों को भी प्रेरित कर रहे हैं कि वे ऑनलाइन माध्यमों से छात्रों को थियेटर सीखा सकते हैं और इस मुश्किल वक्त में गुजर-बसर कर सकते हैं। दूसरों के भरोसे न रहें। कोई कब तक आपकी मदद कर सकता है। इसलिए कलाकार खुद कुछ करें। मोबाइल से वीडियो बनाएं और शेयर करें। नए छात्रों को क्लास दें।
दूसरे देशों में थियेटर क्या कर रहे हैं
जर्मनी के थियेटर द बर्लाइनर ऑनसांबल ने अपने थियेटर की सीटें दूर-दूर करके लॉकडाउन हटने के बाद की तैयारी शुरू कर दी है। थियेटर के निर्देशक ओलिवर रीज ने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि सरकार जल्द कलाकारों को स्टेज पर आने की अनुमति देगी। वहीं, कैलिफोर्निया के नापा वैली में रात में घर के बाहर सड़क पर करीब सात लोग साथ बैठे। और बिल्कुल स्ट्रीट प्ले के अंदाज में अपनी कहानियां साझा कीं और वह भी एक दूसरे से कई मीटर की दूरी बनाते हुए। इन कोशिशों से उम्मीद बंधती है कि फिर थियेटर सजेंगे। पर दुनिया भर के रंगकर्मी और दर्शक सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर कब तक सबकुछ पहले की तरह सामान्य हो जाएंगे।