Shankaracharya Jayanti 2020: जानें, भगवान शिव के स्वरूप और सनातन धर्म के प्रचारक आदि शंकराचार्य से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार आदि शंकराचार्य भगवान शंकर के अवतार हैं। इन्होंने सनातन धर्म के जीर्णोद्धार हेतु अथक प्रयास किए। अतः इन्हें धर्म प्रचारक भी कहा जाता है।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Shankaracharya Jayanti 2020: हिंदी पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को भगवान शंकराचार्य का जन्म हुआ था। इनका जन्म 788 ई में केरल राज्य के कालड़ी में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इस साल 28 अप्रैल यानि कि आज शंकराचार्य जयंती देश भर में बड़े ही धूमधाम से मनाई जा रही है। सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार, आदि शंकराचार्य भगवान शंकर के अवतार हैं। इन्होंने सनातन धर्म के जीर्णोद्धार हेतु अथक प्रयास किए। अतः इन्हें धर्म प्रचारक भी कहा जाता है। इनके प्रयासों के चलते सनातन धर्म में नव चेतना जागृत हुई। ऐसा भी कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य सनातन धर्म के पुनर्जागरण काल के संस्थापक रहे हैं।
आदि शंकराचार्य की जन्म कथा
पौराणिक ग्रंथों अनुसार, शिवगुरु नामपुद्रि और उनकी पत्नी विशिष्टा देवी को शादी के कई वर्षों के पश्चात भी संतान की प्राप्ति नहीं हुई, तो उन्होंने शिव शंकर की कठिन और घोर तपस्या की। इस तप और जप से भगवान शंकर अति प्रसन्न हुए, और एक रात शिवगुरु नामपुद्रि के स्वप्न में आकर बोले- हे ब्राह्मण देव मैं आपकी भक्ति से अति प्रसन्न हूं, आप अपना इच्छित फल मांगे। उस समय नामपुद्रि ने अनंतकालीन पुत्र की कामना की। हालांकि, भगवान शिव ने उनकी यह इच्छा पूरी नहीं कर सके। इसके बदले में कोई अन्य वर मांगने की सलाह दी। इसके बाद नामपुद्रि ने भगवान शिव को पुत्र रूप में प्राप्त करने की इच्छा जताई, जिसे भगवान शिव ने स्वीकार कर ली। कालांतर में नामपुद्रि के घर पर भगवान शिव के स्वरूप आदि शंकराचार्य का जन्म हुआ। इन्होंने जन्म के साथ ही संकेत दे दिए कि वे भगवान शिव के स्वरूप ही हैं। इन्होंने महज 7 वर्ष की उम्र में समस्त वेदों का ज्ञान हासिल कर लिया। इसके पश्चात बारहवें वर्ष में शास्त्र के प्रकांड पंडित बन गए और चार साल बाद शताधिक ग्रंथों की रचना की। इन्होंने चार वेदों की भांति कालांतर में चार मठों की स्थापना की। ये पुरी मठ, श्रंगेरी, शारदा मठ और ज्योतिर्मठ हैं, जो वर्तमान में जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारिका और बद्रीनाथ में अवस्थित हैं। इन चार मठों की स्थापना के पश्चात सन 820 ई में आदि शंकराचार्य ने हिमालय में समाधि ले ली।
आदि शंकराचार्य जयंती महत्व
सनातन धर्म में आदि शंकराचार्य जयंती का विशेष महत्व है। कालांतर में इन्होंने अपने अनुयायियों में नव चेतना जागृत की। दक्षिण से लेकर उत्तर, पूर्व से लेकर पश्चिम के सभी दिशा के लोगों को एक सूत्र में बांधने का काम शंकराचार्य ने किया, सनातन धर्म की पुर्नस्थापना की। ऐसे में हिन्दू धर्म में आदि शंकराचार्य को देवत्व रूप माना गया। इस दिन मंदिरों और मठों में पूजा-अर्चना के साथ-साथ हवन की जाती है। सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। हालांकि, इस साल कोरोना वायरस महामारी के चलते लोग अपने घरों में रहकर ही आदि शंकराचार्य जयंती मना रहे हैं।