कविताएं
जिस तरह विलुप्त हो रही है गौरैया क्या उसी तरह गुम हो जाएगा डाकिया एक दिन
चिट्ठियां
इन दिनों मेरे घर डाकिया नहीं आता
जबकि पहले रोज आता था और
लाता था खूब सारी चिट्ठियां
जादुई झोले में भरकर
मैं अब सोचना नहीं चाहता हूं कि
आखिर उसका क्या हुआ होगा
फिर भी याद आता है वह
आंगन में रोज फुदकने वाली गौरैया की तरह
जिस तरह विलुप्त हो रही है गौरैया
क्या उसी तरह गुम हो जाएगा डाकिया एक दिन
जिसके आने भर से चेहरे पर चमक आ जाती थी
वह भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा!
पतंग
यह नीला आसमान
तोप, बम और मिसाईल के लिए तुम जो नाप रहे हो
जरा उस पतंग के बारे में भी सोचना
जिसका हिस्सा हड़प रहे हो तुम
उस पक्षी के बारे में भी सोचना
और फैसला करना
नहीं तो नाराज होकर तुम पर ही टूटेगा आसमान
जिसका आंगन उजाड़ रहे हो तुम।
(चर्चित युवा कवि)
क्रांति भवन, कृष्णा नगर, खगरिया, बिहार-851204
शंकरानंद