अपने नटखट की क्रिएटिविटी को संवारने के लिए यहां दिए जा रहे टिप्स पर दें ध्यान
बच्चों के किएटिव दिमाग को संवारने के लिए उन्हें रोकने-टोकने के बजाय उनका साथ दें। साथ देने का मतलब उन्हें उनकी पसंद की चीज़ें दिलाएं और साथ ही उनके द्वारा बनाई चीज़ों की खुलकर तारीफ भी करें। इससे वे आगे बढ़ेंगे।
छोटे उम्र में बच्चों को टोकने के बजाय उन्हें मन मुताबिक काम करने देना चाहिए। टोकने से वे घबरा जाते हैं। उन्हें लगता है कि उनसे कोई गलती हुई है, अगर दोबारा वे वही काम करेंगे तो पेरेंट्स नाराज हो जाएंगे। मन में बैठा यह डर उनकी रचनात्मकता को बाहर नहीं आने देता, जिसका खामियाज़ा आगे भुगतना पड़ता है। इसलिए पेरेंट्स को भले ही दीवार दोबारा पेंट कराने में कुछ पैसे खर्च करने पड़ें, लेकिन बच्चों को मनपसंद काम करने से रोकना नहीं चाहिए। बच्चों की क्रिएटिविटी निखारने के लिए यहां दिए गए टिप्स आएंगे काम।
मनपसंद चीज़ें दिलाएं
सुंदर कपड़ें और खिलौनों की तरह उन्हें अच्छी किताबें, तरह-तरह के कलर्स, क्ले क्राफ्ट, ब्लॉक्स, पैन-पेंसिल, ड्राइंगबुक आदि दिलाएं। साथ ही, इनके मनमाफिक इस्तेमाल की छूट भी दें। फिर भले ही वे रंगों को फर्श पर फैला दें या पेंसिल से दीवारों पर चित्रकारी करें। इससे, एक तो उनकी रुचियां समझने में मदद मिलेगी, दूसरी उनकी समझ बढ़ेगी।
गाइड न करें
कुछ पेरेंट्स बच्चों की बनाई चीज़ों की तारीफ करने के बजाय उन्हें और बेहतर करने के टिप्स देने लगते हैं। इससे बच्चे मायूस हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि उन्होंने अपना काम ठीक से नहीं किया। अगली बार वे अपना दिमाग लगाने के बजाय पेरेंट्स से मदद की अपेक्षा करते हैं। इससे उनका रचनात्मक विकास और निर्णय क्षमता प्रभावित होती है।
स्वीकृति दें
बच्चों की बनाई चीज़ों की खुलकर तारीफ करें। संभव हो तो उन्हें फ्रेम कराकर घर में लगाएं। इससे उनका हौसला बढ़ेगा। अपने काम को स्वीकृति मिलती देखकर अगली बार वे ज्यादा उत्साह से नई चीज़ें बनाने की कोशिश करेंगे।
इन पर भी ध्यान दें
- उन्हें थोड़ा-सा फ्री टाइम भी दें। इससे उन्हें आसपास की चीज़ें देखने-समझने का मौका मिलेगा।
- घर में एक जगह तय करें, वहां वे अपने खिलौनों और अन्य चीज़ों को अपनी मर्जी के मुताबिक रख सकें।
- छुट्टी वाले दिन उनके साथ नए-नए गेम्स खेलें, लेकिन हर बार गेम के रूल्स उन्हें ही बनाने दें। इससे वे नया सोचने को मजबूर होंगे।
- समय-समय पर जू, म्यूज़ियम आदि घुमाने लेकर जाएं। इससे उनकी जानकारियां बढ़ेंगी। कभी-कभी अपने बचपन के किस्से भी सुनाएं। वे उस दौर की चीज़ों से रूबरू होंगे।
पी बग्गा (चाइल्ड काउंसलर से बातचीत पर आधारित)
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