Parenting tips: बच्चों के बेहतर विकास के लिए सख्ती से नहीं बल्कि समझदारी भरा उठाएं कदम
कोई व्यक्ति दूसरों के दर्द को समझता है या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि बचपन में उसे कैसी परवरिश मिली है। इसीलिए शुरू से ही बच्चों को यह सिखाना ज़रूरी है कि उन्हें सबके साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए।
बच्चे हैं तो शरारत करेंगे ही, परवरिश के मामले में ज्यादातर पेरेंट्स ऐसा ही सोचते हैं। इसी वजह से वे अपने बच्चों की ऐसी आदतों को कंट्रोल करने की कोशिश नहीं करते। इससे धीरे-धीरे उनके व्यवहार में अनुशासनहीनता आने लगती है। खासतौर पर जैसे ही कोई बच्चा स्कूल जाना शुरू करता है, उसके समाजीकरण की प्रक्रिया तेज़ हो जाती है। घर से बाहर उसे दोस्तों, टीचर्स और अन्य लोगों के साथ बातचीत करने का अवसर मिलता है। इस दौरान वह दूसरों के सामने अपनी बात रखना, अपने हितों को पहचानना और अपनी मनपसंद वस्तु को पाने के लिए संघर्ष करना सीखता है। यह उसके विकास की प्रक्रिया का स्वाभाविक हिस्सा है, लेकिन उसके हर व्यवहार पर पेरेंट्स को पूरी नज़र रखनी चाहिए, अन्यथा बच्चों की आदतें बिगडऩे लगती हैं और कुछ समय के बाद उनके गलत व्यवहार को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है।
सामाजिक व्यवहार की सीख
यही वह उम्र है, जब बच्चे दूसरों के साथ सामाजिक व्यवहार सीख रहे होते हैं। कुछ पेरेंट्स यह सोचकर बहुत खुश होते हैं कि मेरा बच्चा बहुत बोल्ड और स्मार्ट है। दोस्तों से जब भी लड़ाई होती है, हमेशा उन्हें पीट कर घर लौट आता है, इसलिए कोई भी दूसरा बच्चा उससे झगडऩे की हिम्मत नहीं जुटा पाता। ऐसा सोचने वाले पेरेंट्स अनजाने में अपने बच्चे को गलत रास्ते की ओर धकेल रहे होते हैं। बाल-सुलभ शरारतों और अनुशासनहीन व्यवहार में बारीक फर्क होता है, जिसे समझना बहुत ज़रूरी है। चाहे घर हो या बाहर, अगर कोई बच्चा अपने भाई-बहन या दोस्तों के साथ मारपीट जैसा हिंसक व्यवहार करता नज़र आए तो पहली बार ही उसे ऐसा करने से रोकना बहुत ज़रूरी है, अन्यथा भविष्य में यह आदत उसके लिए बहुत नुकसानदेह साबित होगी।
सही-गलत की पहचान
चार साल की उम्र के बाद जब बच्चे स्कूल जाना शुरू करते हैं तो उन्हें सामाजिक संबंधों से जुड़े विभिन्न पहलुओं को समझने का अवसर मिलता है। क्या करना चाहिए और क्या नहीं, इस उम्र में बच्चों को यह सिखाने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है। कई बार वे जबरन अपने दोस्तों से उनके खिलौने छीनने की कोशिश करते हैं और मना करने पर रोने लगते हैं। ऐसे में उन्हें यह समझाना बहुत ज़रूरी है कि अगर कोई दूसरा बच्चा तुम्हारे साथ भी ऐसा ही व्यवहार करे तो तुम्हें कैसा लगेगा? इससे उसे यह समझाना आसान हो जाएगा कि हमें दूसरों के साथ बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए। जब भी वह कोई गलत व्यवहार कर रहा हो तो उसे उसी वक्त रोकना चाहिए, वरना वह आपकी बातों को गंभीरता से नहीं लेगा।
पेरेंट्स होते हैं रोल मॉडल
बच्चे अपने पेरेंट्स से ही सीखते हैं, इसलिए आपको भी अपने व्यवहार में शालीनता बरतनी चाहिए। कई बार पेरेंट्स किसी दूसरी वजह से परेशान होते हैं तो अपना सारा गुस्सा बच्चों पर उतार देते हैं। अगर कभी आपके साथ भी ऐसा होता है तो बच्चे से सॉरी बोलने में संकोच न बरतें। आपस में झगडने वाले दंपतियों के बच्चों का व्यवहार भी आक्रामक हो जाता है और उनमें एंग्ज़ायटी जैसी मनोवैज्ञानिक समस्याओं के लक्षण नज़र आते हैं। इसलिए चाहे आप कितने भी तनावग्रस्त क्यों न हों, बच्चों के सामने अपना व्यवहार संयत रखने की कोशिश करें।
शेयरिंग का साथ
भाई-बहनों या दोस्तों के साथ चीज़ें शेयर करने की आदत बच्चे में शुरू से ही विकसित करनी चाहिए। इससे न केवल रिश्तों में मज़बूती आती है, बल्कि वह दूसरों की भावनाओं और ज़रूरतों का खयाल रखना भी सीखता है। अपने रोज़मर्रा के व्यवहार से उसे यह एहसास दिलाना ज़रूरी है कि कोई भी चीज़ केवल तुम्हारे लिए ही नहीं है। दोस्तों को भी खिलौने से खेलने की इच्छा होती है, इसलिए तुम अपने साथ उन्हें भी खेलने का मौका दो। अगर परिवार में एक ही बच्चा है तो कभी-कभी आप जानबूझकर उससे चॉकलेट का छोटा टुकड़ा मांगें, कभी उसके साथ कोई इंडोर गेम खेलें। इससे उसे दूसरों की अहमियत का एहसास होगा और वह शेयरिंग भी सीख पाएगा।
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