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Plastic Ban: ये हैं हमारे युवा पर्यावरण प्रहरी, चला रहे हैं प्‍लास्‍टिक फ्री धरती बनाने की मुहिम

सिंगल यूज प्लास्टिक से होने वाले नुकसान को देखते हुए इस पर प्रतिबंध लग चुका है। आज दुनियाभर में मनाया जा रहा है इंटरनेशनल प्लास्टिक फ्री डे। प्लास्टिक से धरती और हवा को होने वाले नुकसान को समझ रहे हैं हमारे देश के किशोर-युवा..

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 01 Jul 2022 01:44 PM (IST)Updated: Fri, 01 Jul 2022 01:58 PM (IST)
Plastic Ban: ये हैं हमारे युवा पर्यावरण प्रहरी, चला रहे हैं प्‍लास्‍टिक फ्री धरती बनाने की मुहिम
पर्यावरण प्रहरी बन संकल्प के साथ प्लास्टिक के विरुद्ध जंग लड़ रहे हैं.

सीमा झा। लालगंज (मीरजापुर, उप्र) के भारतीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाचार्य राजेश द्विवेदी को छह साल पुरानी वह घटना आज भी याद है। लंच ब्रेक हुआ था और बच्चे बाहर खेलने में व्यस्त थे। उन्होंने देखा कि एक पेड़ के नीचे कुछ बच्चे समूह बनाकर बैठे हैं। वह पास गए तो देखा, आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली शिल्पी पांडेय बच्चों को पालीथिन के नुकसान के बारे में बता रही थी। वह उन्हें प्रेरित कर रही थी कि पालीथिन के बजाय घर के झोले या कागज के पैकेट का इस्तेमाल किया करें। बच्चों ने शिल्पी की अगुआई में विद्यालय परिसर में इधर-उधर बिखरा पालीथिन का पूरा कचरा साफ कर दिया था। राजेश के लिए वह अनुभव खुशी के साथ हैरान करने वाला भी था। उन्होंने शिल्पी से पूछा कि उसे कैसे पता कि पालीथिन हानिकारक होती है। शिल्पी ने बताया कि कुछ दिनों पहले वह कुछ सामान लेने दुकान पर गई थी। दुकानदार ने अखबार के टुकड़े में लपेट कर सामान दे दिया। घर पर मां ने सामान लेकर अखबार के उस टुकड़े को फेंक दिया।

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शिल्पी ने वह टुकड़ा उठाया तो उसमें एक खबर थी-पालीथिन सेहत के लिए खतरनाक। खबर के अंत का अंश तो गायब था, लेकिन शिल्पी को यह समझ में आ गया कि पालीथिन खतरनाक है। इसके बाद से वह अपने मित्रों को पालीथिन के दुष्प्रभाव के बारे में बताने लगी। शिल्पी की बातों ने राजेश द्विवेदी को काफी प्रभावित किया। वह तब से स्कूल के बच्चों को पालीथिन के घातक गुणों के बारे में बताते हैं-जैसे यह कभी नष्ट नहीं होता। सिर्फ इसका भौतिक स्वरूप बदलता है। इसमें मौजूद सीसा, कैडियम व पारा सीधे इंसान के संपर्क में आते हैं। इससे प्रतिरोधक क्षमता तो घटती ही है, कैंसर का खतरा काफी बढ़ जाता है। राजेश आज भी परिसर के उसी पेड़ के नीचे विद्यार्थियों और अध्यापकों को पालीथिन का इस्तेमाल नहीं करने की शपथ दिलाते हैं, जहां कभी शिल्पी बैठती थी। बीटीसी करने के बाद टेट की परीक्षा पास कर चुकी शिल्पी आज भी अपने आस-पास के लोगों, मित्रों, रिश्तेदारों को पालीथिन के दुष्प्रभावों के बारे में बताकर जागरूक करती हैं। वह कहती हैं, पालीथिन का इस्तेमाल धरती के प्रत्येक जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों के लिए घातक है। इस पर प्रतिबंध लगाया जाना सभी के हित में है।

इंटरनेशनल प्लास्टिक बैग फ्री डे: यह यूरोप की जीरो वेस्‍ट संस्‍था द्वारा प्लास्टिक प्रदूषण से संपूर्ण मुक्ति के उद्देश्य से दुनियाभर में मनाया जाता है। इस दिवस को पहली बार वर्ष 2008 में मनाया गया था।

कचरे को बना लिया अवसर: आजमगढ़ (उप्र) की बीए की छात्रा श्रेया राय सड़क पर इधर-उधर बिखरी प्लास्टिक की बोतलों को देखती तो अफसोस करके रह जातीं। चार साल पहले एक दिन उन्होंने प्लास्टिक की बोतल के कारण बाइक सवार को दुर्घटना का शिकार होते देखा तो कुछ करने की ठान ली। उन्होंने कचरे को एक बड़े अवसर में बदल दिया और इसमें साथ दिया उसकी तीन दोस्त प्रिया, अंकिता और ज्योति ने। उनके इस अनूठे सोच में रंग भरा समाजसेवी डा. संतोष ने। श्रेया और उनकी दोस्तों ने प्लास्टिक की बोतलों से सजावटी समान बनाना शुरू किया। कूड़े के ढेर से उठाई गईं इन बोतलों से बने सजावटी सामानों की मार्केटिंग शुरुआत में आसान नहीं थी। लेकिन इंटरनेट मीडिया फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम के माध्यम से उनके बनाए उत्पाद लोगों तक अपनी पहुंच बनाने लगे। उनकी बनाई सुंदर मूर्तियों व सजावटी सामान की मांग माल, होटलों, दुकानों व घरों से आने लगी। इरादे नेक थे तो श्रेया का विचार युवाओं को पसंद आया और देखते ही देखते ही उनकी टीम के सदस्यों की संख्या 30 तक पहुंच गई। आज श्रेया और उनकी टीम हर महीने प्लास्टिक की 450-500 बोतलें इस्तेमाल करती है। ये बोतलें परिचित और आस-पड़ोस के स्वयं दे जाते हैं। जरूरत पड़ने पर और बोतलें वे कूड़ा बीनने वालों से दो-तीन रुपये में खरीद लेती हैं। उत्पादों को आकर्षक आकार देने के लिए कागज की लुग्दी उपयोग में लाती है। श्रेया कहती हैं, 'धरती को प्लास्टिक मुक्त बनाने के लिए हमारा छोटा-सा प्रयास है। हमारे बनाए उत्पाद होटल, माल और घरों में सजावट के लिए खरीदे जा रहे हैं। यह बताता है कि लोग पर्यावरण के लिए चिंतित हैं। हम अपने उत्पाद के साथ यह संदेश भी देते हैं कि प्लास्टिक का उपयोग बंद करें। फिलहाल एक लाख रुपये महीना तक आय हो रही है।'

बुलंद हैं इरादे: मध्य प्रदेश के धार जिले की ख्वाहिश अग्रवाल 12वीं की छात्रा हैं। वह दो साल से भोज जागरूक महिला मंडल सोसायटी के साथ मिलकर सिंगल यूज प्लास्टिक को लेकर जनता को जागरूक करने का कार्य कर रही हैं। इसे पूर्ण प्रतिबंधित करने के लिए जगह-जगह बैनर-पोस्टर लगाए जाते हैं। लोगों को नुक्कड़ नाटक, रैली और छोटी सभा के माध्यम से भी जागरूक कर रही हैं। संस्था के सदस्य कागज के लिफाफे बनाते हैं। इन लिफाफों के माध्यम से दुकान-दुकान जाकर व्यापारियों को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया जाता है। बाजार में इन्हें सभी ठेले वालों को निश्शुल्क वितरित किया जाता है ताकि प्लास्टिक के विकल्प के रूप में वे इसका उपयोग कर सकें। इसी तरह, 10वीं के छात्र मयंक अग्रवाल ने बताया, 'हम संस्था के सदस्यों द्वारा तैयार की गई थैलियों को व्यापारियों को ले जाकर दिखाते हैं और उन्हें बताते हैं कि जिस दाम में आप पालीथिन खरीदेंगे, उससे कम में ही ये थैलियां संस्था द्वारा आपको उपलब्ध करा दी जाएंगी।

गंगा सेवकों की पहल: सात साल पूर्व प्रयागराज (उप्र) में फाफामऊ स्थित गंगा तट पर बैठे थे बाबा बालक दास। पालीथिन के रूप में फैली गंदगी देखी तो भारी मन से कहा, 'घाट मर गया। गंगा पर पालीथिन का ग्रहण लग रहा है। मिट्टी की भी सांस फूल रही है। देखो न रेती में थैली (पालिथिन के पैकेट) उतराई है।' कुछ दूर खड़े अरुण शुक्ल ने इसे सुना। बोले तो कुछ नहीं, लेकिन मन ही मन संकल्प ले लिया। यह संकल्प था पालीथिन का प्रयोग नहीं करने तथा नदी तट की सफाई की। तय किया कि कोई साथ दे अथवा नहीं अकेले भी जो बन पड़ेगा, करेंगे। इसके बाद हर रोज वह नदी तट पर पालीथिन साफ करने लगे। अब उनकी पहचान गंगा सेवक के रूप में है। उन्होंने अपने साथ स्कूल-कालेज के कई छात्रों को भी जोड़ लिया है। लगभग 50 युवाओं की टोली है उनके साथ। फाफामऊ स्थित गंगा तट पर प्रत्येक रविवार अरुण गंगा भक्तों के साथ प्रात: छह बजे से आठ बजे तक पालीथिन बीनते हैं।

तट पर फैली अन्य गंदगी को भी समेट कर किनारे ही नहीं करते बल्कि उसे दूर ले जाकर निस्तारित कराते हैं। कोई श्रद्धालु यदि पालीथिन का प्रयोग करता हुआ दिखता है तो हाथ जोड़कर मना करते हैं। उनकी पहल का असर यह है कि जिस घाट पर गंदगी थी, हर तरफ पालीथिन दिखती थी, वह अब स्वच्छ है। तट पर रहने वाले पुरोहित, मल्लाह, माली भी पालीथिन के खिलाफ उठ खड़े हुए हैं। नदी के तट पर ही नहीं स्थानीय बाजार में भी यह टोली घूमकर पालीथिन का प्रयोग रोकने में जुटी है। अरुण के साथ फिलहाल 16 से 25 साल आयुवर्ग वाले स्वयंसेवक हैं। वे सभी पालीथिन का प्रयोग रोकने के प्रति जागरूकता बढ़ा रहे हैं। सोरांव के अनुराग पांडेय, अजय मिश्रा, शैलेश प्रजापति, अनुरोध शुक्ला, विपुल मिश्रा, अमित मिश्रा, ललित दुबे को क्षेत्र में गंगा सेवक कहा जाता है। उन्हें देखकर स्वत: ही लोग आसपास से पालीथिन हटा देते हैं। यह अभियान फाफामऊ घाट के साथ रसूलाबाद, श्रृंगवेरपुर घाट, अरैल तट के साथ दुर्वासा घाट पर भी चल रहा है।

टीम चंबा के कारनामे: पर्यावरण को प्लास्टिक मुक्त करने के लिए चंबा (हिमाचल) के युवाओं ने सराहनीय पहल की है। लगभग दो महीने यह पहल तीन युवाओं भुवन्यु शर्मा, भार्गव शर्मा तथा दमन सिंह नरयाल ने मिलकर शुरू की थी। प्लास्टिक कचरे के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए इनकी चंबा वैली संस्थान की ओर से अभी तक चंबा शहर, सूही मंदिर परिसर, पर्यटन स्थल जोत तथा खजियार में अभियान चला कर करीब एक क्विंटल प्लास्टिक कचरा एकत्रित किया है। संस्था का आगामी लक्ष्य गांव-गांव तक अपनी पहुंच बनाना तथा पर्यटन स्थलों पर अभियान चलाने के साथ लोगों व पर्यटकों को जागरूक करने की दिशा में कार्य करना है। तीन युवाओं से शुरू हुई इस संस्था के साथ आज 50 युवाओं की टीम तैयार हो गई है। उनके मुताबिक स्वयं काम करके कचरा एकत्रित करना तो आसान है, लेकिन लोगों को इस दिशा में जागरूक करना काफी मुश्किल है। यदि लोग अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन अच्छे से करेंगे तथा प्लास्टिक कचरे सहित सामान्य कचरे तो खुले में फेंकने के बजाय कूड़ेदान में डालेंगे, तभी यह अभियान पूरी तरह से सफल हो पाएगा।

प्लास्टिक मुक्त बन रहा इंदौर: इंदौर में नगर निगम द्वारा स्वसहायता समूहों के माध्यम से तो इस दिशा में प्रयास किया ही जा रहा है लेकिन शहर के युवा भी इस दिशा में सार्थक पहल कर रहे हैं। शहर में तीन माह में एक लाख से ज्यादा झोले तैयार कर फल, सब्जी बाजार व मंडियों में वितरित किए गए, ताकि सब्जी विक्रेता प्लास्टिक के बजाय कपड़े के झोलों का उपयोग बढ़ाएं। वहीं शहर के अधिकांश होटल व कुछ रेस्टोरेंट्स ने प्लास्टिक व थर्माकोल के स्थान पर गन्ने की सूखी बगास व मकई के स्टार्च से बने कप, प्लेट व गिलास का उपयोग शुरू किया है। उप्र व महाराष्ट्र के स्टार्टअप द्वारा तैयार किए गए इन उत्पादों को शहर के एनजीओ ह्यूमन मेट्रिक्स द्वारा उपलब्ध करवाया जा रहा है। गौरव खंडेलवाल ने चार साल पहले एमबीए मार्केटिंग करने के बाद से ही इको फ्रेंडली उत्पादों के लिये काम शुरू किया। वह कहते हैं कि देश भर में बन रहे ईको फ्रेंडली उत्पादों को इंदौर में लाने का प्रयास कर रहा हूं, ताकि आम लोग और प्रतिष्ठानों के संचालक प्लास्टिक के विकल्प वाली चीजों का उपयोग कर सकें। इस प्रयास में वे युवाओं को वे जोड़ रहे हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक ये संदेश पहुंच सके। इसी तरह, मयंक श्रीवास्तव भी ईको मार्ट के माध्यम से शहरवासियों को प्लास्टिक वेस्ट के विकल्प के रूप में तैयार उत्पाद उपलब्ध करवा रहे हैं।

रोजगार सृजन की है तैयारी: गोमती नगर, लखनऊ के विमलेश निगम प्लास्टिक की रोकथाम के लिए उत्तर प्रदेश के 18 जनपदों में अभियान चला चुके हैं। अपनी टीम के साथ एक दिन में एक लाख 20 हजार पौधारोपण का रिकार्ड भी बना चुके हैं। विमलेश बताते हैं कि जब मैं 11 वर्ष का था तो छुट्टियों में गांव गया हुआ था। वहां पर आम खाते हुए मां ने कहा कि आम की गुठलियों को कहीं रोपोगे तो वहां पेड़ उगेगा और बहुत सारे आम खाने को मिलेंगे। इसके बाद गुठली से पेड़ बनने की कहानी सुनकर पौधारोपण और पर्यावरण संरक्षण की ओर काम करने के बारे में सोच लिया। विमलेश बताते हैं कि अक्सर ऐसा होता कि पौधारोपण के लिए कहीं गड्ढा बनाते तो जमीन में नीचे प्लास्टिक की पालीथिन मिलने लगती। ऐसे में पर्यावरण संरक्षण के साथ प्लास्टिक की रोकथाम पर भी काम करना शुरू कर दिया। प्लास्टिक के उपयोग की रोकथाम के लिए उत्तर प्रदेश के 18 जनपदों में 40 हजार कपड़े के थैलियों का वितरण किया। इसके अलावा, 2014 से ही प्लास्टिक और कचरा बीनने वाले 100 बच्चों की पढ़ाई में वह मदद कर रहे हैं। विमलेश का उद्देश्य हर एक बच्चे और युवा में प्लास्टिक के कचरे के निस्तारण और पर्यावरण के प्रति बेहतर सोच विकसित करना है। उनका यह अभियान उत्तर प्रदेश के 156 स्कूलों में प्लास्टिक मुक्त परिसर घोषित करने के साथ आगे बढ़ रहा है। उनकी योजना है कि भविष्य में प्लास्टिक के कचरे से रोजगार मिलने पर काम किया जाए ताकि प्लास्टिक के कचरे को अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनाकर सड़कों, गलियों और कचरे से प्लास्टिक को खत्म किया जा सके।

बन गए पर्यावरण सखा: रामगढ़ (झारखंड) के विकास कुमार को लोग 'पर्यावरण सखा' के नाम से जानते हैं। वह देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्लास्टिक कचरा मुक्त भारत बनाने के आह्वान के बाद से इतने प्रेरित हो गए कि इसे मुहिम बनाकर अकेला चलने लगे। सबसे पहले उन्होंने इस मुहिम के तहत अपने जिले में साल भर में एक लाख टन प्लास्टिक कचरा एकत्रित करने की ठानी है। वह अकेले निकले थे, लेकिन कारवां बनता गया। उनकी मुहिम में कई संगठनों के स्वयंसेवक साथ हो गए हैं। पहले दौर में शहर के चौक-चौराहे, सार्वजनिक स्थल, पर्यटक स्थल, मंदिर, गली, मोहल्ले आदि में प्लास्टिक कचरा एकत्रित करना शुरू किया। दूसरे दौर में वे प्लास्टिक सामान एवं कचरे को घर-घर जाकर एकत्रित करने में जुट गए हैं। इनके कार्य से प्रभावित होकर राष्ट्रीय सेवा योजना, नेहरू युवा केंद्र एवं आरवाइएफ संस्था के स्वयंसेवकों सहित अन्य सामाजिक संगठनों के लोगों का साथ मिलना शुरू हो गया है। उनके द्वारा एकत्रित प्लास्टिक कचरे को रिसाइक्लिंग के लिए भेजा जाएगा। इससे एक तरफ प्लास्टिक का कचरा भी साफ हो जाएगा और दूसरी तरफ शहर में कई विकास कार्य हो सकेंगे। विकास घरों से कचरा उठाने के दौरान परिवार के लोगों से मिलकर बताते हैं कि इंसान ही नहीं, पशु-पक्षी सभी के लिए घातक है। जमीन की उर्वरा शक्ति खत्म करता है तो जलस्रोतों को बंद कर देता है। इसलिए इसके उपयोग से बचें और दूसरों को भी बचाएं। विकास ने एक मुहिम चलाया, प्लास्टिक दो पौधे लो। इससे लोग प्लास्टिक का कचरा कम करने के लिए प्रेरित होंगे और हरियाली के प्रति जागरूक होंगे।

अर्चित की संकल्प शक्ति: बहराइच (उप्र) के अर्चित मिश्र अंधाधुंध विकास के लिए पेड़ों की कटाई से बहुत दुखी रहते थे। वह पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने प्लास्टिक से मुक्ति पाने का अभियान चुना। उनकी संकल्प शक्ति को देखते हुए वहां की नगरपालिका ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध की दिशा में कार्य के लिए चुना है। अर्चित ने ईको टूरिज्म व पर्यटन प्रबंधन का कोर्स किया है और यूएन (संयुक्त राष्ट्र) की एनवायरमेंट शाखा से जुड़े हैं। वर्ष 2018 में विश्व हरित समूह (ग्लोबल ग्रीन ग्रुप-थ्रीजी) के जिला संयोजक व 2020 में प्रबंध निदेशक बने। महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर उन्होंने प्लास्टिक के दुष्प्रभाव व जागरूकता कार्यक्रम शुरू किया। इस अभियान से वह लगभग 30 हजार लोगों को जोड़ चुके हैं।

मथुरा प्रोजेक्ट ग्रुप: मथुरा (उप्र) में हर रविवार एक टोली किसी न किसी गली-मोहल्ले में नजर आती है। यह टोली साफ-सफाई करने के साथ ही लोगों को नो प्लास्टिक के प्रति जागरूक भी करती है। मथुरा प्रोजेक्ट ग्रुप की इस टोली में शहर के व्यवसायियों के साथ-साथ स्कूल-कालेज के छात्र भी शामिल हैं। ग्रुप के मुखिया केशव देशवानी बताते हैं, 'एक दिन हमने इंस्टाग्राम पर सूरत में चल रहे इस तरह के प्रोजेक्ट के बारे में देखा। हमने सोचा कि क्यों न इसे मथुरा में भी शुरू कराया जाए। अपने मित्रमंडली में चर्चा की। सबके सहमत होने पर ग्रुप बनाया और इसी अप्रैल से मैदान में उतर गए।' अब ये हर सप्ताह किसी मोहल्ले को चुन कर रविवार सुबह वहां पूरी तैयारी के साथ पहुंच जाते हैं। पूरे क्षेत्र में साफ-सफाई करते और कराते हैं। अब तो क्षेत्रीय लोग भी उनके साथ सहभागिता करने लगे हैं। उनके अभियान को संसाधन के रूप में नगर निगम का सहयोग भी मिलने लगा है।

यह मेज है अनमोल: धनबाद झारखंड की अनीता निशब्द अपने नाम के अनुरूप काम रही हैं। जहां से गुजरती हैं वहां पड़े प्लास्टिक की बोतलें, चाकलेट के रैपर आदि उठाकर सहेज लेती हैं। वह उन्हें कूड़ेदान में नहीं फेंकतीं बल्कि उनसे आकर्षक मेज तैयार करती हैं। बढ़ई की मदद से कबाड़ की लकडिय़ों का प्रयोग कर बनाई गई उनकी मेज की मांग खूब होती है। अनीता के मताबिक, यह अनमोल मेज है। इस कार्य से युवाओं को रोजगार भी मिल रहा है।

ग्लोब आफ होप: आगरा में यातायात की लाइफ लाइन कहे जाने वाले महात्मा गांधी मार्ग पर सूरसदन तिराहे पर एक आकर्षक ग्लोब नजर आता है। इस ग्लोब आफ होप की ऊंचाई लगभग 16 फीट है। इसका व्यास 12 फीट का है। प्लास्टिक की बोतलों से बनी ये आकृति ग्लोब आफ होप है। इसे आगरा की संस्था अनफोल्ड फाउंउेशन ने तैयार की है। इसमें करीब चार हजार प्लास्टिक की बोतलों का प्रयोग किया गया है। दोस्तों के दोस्तों से, रिश्तेदारों से, होटलों और रेस्टोरेंट्स से बोतलें मंगाई गईं। इसे बनाने में लगभग तीन महीने का समय लगा है। इसके लिए बोतलें एकत्र करने में कई महीने लगे हैं। इससे पहले संस्था ने प्लास्टिक की बोतलों से इको ब्रिक बनाने का कार्य शुरू कराया। इको ब्रिक बनाने के लिए प्लास्टिक की खाली बोतलों में प्लास्टिक की थैलियां भरी जाती हैं। शहर के तमाम प्रबुद्ध लोग इससे जुडे हैं और युवाओं ने भी इसमें सहभागिता की है। संस्था की डा. मीता कुलश्रेष्ठ बताती हैं कि इस तरह के कार्यकलाप कर हम लोगों को संदेश दे रहे हैं कि सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रयोग बंद करना है।

[इनपुट सहयोग: लखनऊ से मुकेश पांडेय व रामांशी मिश्रा, धनबाद से आशीष सिंह, चंबा से मिथुन ठाकुर, मीरजापुर से मिलन गुप्ता एवं प्रयागराज से अमलेंदु त्रिपाठी]


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