मेरी मां ने मेरे 17वें जन्मदिन पर एक शॉक सा दिया : पूजा बेदी
माडल व अभिनेत्री पूजा बेदी कहती हैं कि शायद विधाता ने कुछ सोच-समझकर ही स्त्री को बनाया होगा। हर स्त्री मां तो बन सकती है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि हर मां आदर्श हो। मेरी मां प्रोतिमा बेदी ने मुझे आत्मनिर्भर बनाया...
मातृत्व करता है सम्पूर्ण
मातृत्व दुनिया की लगभग हर स्त्री चाहती है, जो महिलाएं करियर में, उच्च शिक्षा में व्यस्त हो जाती हैं, उनके दिल में भी कुछ समय बाद मां बनने की आरजू जगती है। बच्चे के जन्म के बाद मां का भी पुनर्जन्म होता है। बच्चे की परवरिश में खुद का अस्तित्व तक भूल जाती हैं मांएं। जैसे वक्त आगे बढ़ता जा रहा है, मां उसके बच्चे की परवरिश, पालन-पोषण की परिभाषा... सब कुछ बदलती जा रही है। अब अधिकतर महिलाएं करियर ओरिएंटेड होती हैं, लेकिन बच्चे को संभालना, उसकी परवरिश करना जैसी सारी जिम्मेदारियां मां पर ही होती हैं। आज भी मां बनना किसी चुनौती से कम नहीं है।
मेरी मां मेरी स्टार
यदि मैं अपने बारे में कहूं तो मैंने अपने बच्चों की परवरिश वैसे ही की, जैसे मेरी मां (प्रोतिमा बेदी) ने मेरे भाई सिद्धार्थ और मेरी की थी। मेरी मां भी सिंगल मदर थीं और मैं भी सिंगल मदर हूं। मां बनने में असीम सुख है, जिसे परिभाषित नहीं किया जा सकता, लेकिन इसकी चुनौतियों के बारे में, इसके फायदे और नुकसान के बारे भी जितनी बातें करें, उतना ही कम होगा। मेरी मां कहा करती थीं, बच्चों का स्कूल जाना निहायत जरूरी है, लेकिन जीवन के अनुभव, जिंदगी की पाठशाला हर इंसान को बेहतर और सच्चे अनुभवों से रूबरू कराती है। वह कहती थीं प्रकृति के साथ वक्त बिताया करो। प्रकृति बिना किसी उम्मीद के हम इंसानों पर कितना कुछ न्योछावर कर देती है। यह गुण हमें भी अपनाना होगा।
आई लव माई मां
बच्चों को अपनी जिंदगी मानने वाली मेरी मां ने मेरे सत्रहवें जन्मदिन पर एक शॉक सा दिया। बेटा, आई एम लीविंग यू... आई एम लीविंग होम। मां हमें और घर छोड़कर जाना चाह रही थीं। मैंने मां को उनके अटल इरादे से रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन उन्होंने निर्णय ले लिया था। मां का जवाब था, पूजा तुम 17 साल की हो गयी हो। यही वक्त है तुम अपने जीवन और कॅरियर को सही दिशा में मोड़ लो। जीवन के किसी भी पल तुम्हें मेरी या मेरे मार्गदर्शन की जरूरत पड़े तो मैं उपलब्ध रहूंगी।
मेरी मां में है हर हुनर
मां मुझे और सिद्धार्थ को छोड़कर उड़ीसा चली गईं। उड़ीसा जाने के बाद मां विश्वस्तर की ओडिसी नृत्यांगना बनीं। दो बच्चों की मां होकर भी उन्होंने जो मेहनत, संघर्ष किया और खुद को ओडिसी डांसर के रूप में स्थापित किया वह आसान बात नहीं थी। मैं बड़ी हो रही थी। अभिनय, लेखन, एकंरिंग, मॉडलिंग जैसे हर क्षेत्र में खुद को आजमाया मैंने और अपने बलबूते पर कामयाब हुई। मां जब भी मिलतीं मेरी कामयाबी देखकर कहतीं, यदि मैं साथ होती तो तुम आत्मनिर्भर न बन पाती। मुझे तुम्हारी कामयाबी पर नाज है। मां द्वारा दिए मूल्यों के कारण ही मैं जीवन में सही और गलत के बीच भेद जान सकी। उनके पढ़ाए पाठ कभी नहीं भूल सकते।
मातृत्व का एहसास होता है सबसे खास
सन् 1994 में मेरी शादी फरहान फर्नीचरवाला के साथ हुई। 1997 में सुंदर सी बेटी (आलिया) की मां बनी और 2000 में बेटे (ओमर) को जन्म दिया। मेरे दोनों बच्चे बड़े हो गए हैं, लेकिन फरहान और मैं तब अलग हुए थे, जब मेरा बेटा चार साल का था। अपने बच्चों के साथ मेरा खूबसूरत रिश्ता है। हम हर मुद्दे पर बात करते हैं। अपने बच्चों को स्कूली शिक्षा हर अभिभावक देते हैं, लेकिन बिना कुछ कहे अपने बच्चों को जीवन मंत्रा देना हर मां का फर्ज है। लिविंग लाइफ टू द फुलेस्ट, यह मेरी जिंदगी का फलसफा है। यही प्रतिबिंब मेरे बच्चों में आप पाएंगे। कहता हूं जिंदगी जीने का ढंग और जिंदगी दोनों अम्मी की देन हैं। जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया, पढ़ाई के लिए मुझे विदेश भेजा गया, लेकिन बच्चों की बढ़ती उम्र में लगाम कब थामनी है और कब छोडऩी है, यह कोई अम्मी से सीखे। अम्मी ने सभी रिश्तों की गर्माहट कायम रखी और हमेशा अपनी गरिमा कायम रखी। मैं, सोहा और सबा किसी के निजी निर्णयों में अम्मी की दखंलदाजी कभी नहीं रही। मेरा और सोहा का अभिनय से जुडऩा अम्मी का ही प्रभाव है। अम्मी ने ऑन स्क्रीन ग्लैमर गर्ल और भारतीय लड़की दोनों किरदारों को एक गहराई दी।
मां ने परिवार को सहेज कर रखा
अम्मी ने जिस सजीवता से परिवार को जिंदगी दी, शायद ही कोई देगा। अब्बा के जाने के बाद अम्मी ने खुद को रीडिंग और गार्डनिंग में व्यस्त रखा है। इस समय सोहा और कुणाल (खेमू ) के आने वाले बच्चे को लेकर अम्मा खुश हैं। नानी जो बनने वाली हैं अम्मी। अगर अम्मी अभिनय में नहीं होतीं तो किसी भी फील्ड में जातीं तो भी कामयाब होतीं।