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मम्मी और मैं दोनों लियो हैं, लायनेस होने से हम दोनों की पसंद और नापसंद एक : हुमा कुरैशी

अभिनेत्री हुमा कुरैशी कहती हैं कि दुनिया की हर मां प्यारी होती है, लेकिन ऐसी मांएं कम होती हैं, जो हर हाल में संघर्षकर जिंदगी में कुछ पाने की कोशिश में लगी रहती हैं। सच्चाई की डगर पर वे थक जाती हैं, पर हार नहीं मानतीं। मेरी मम्मी भी ऐसी ही एक स्ट्रांग मां हैं। मुझे अपनी मां (अमीना कुरैशी) पर गुरूर है... मम्मी और मैं हम दोनों लियो (सिंह राशि) के हैं। लायनेस होने से हम दोनों की पसंद और नापसंद एक है। दरअसल मैं अपनी मां की खूबियों के बारे में इतना कुछ जानती हूं कि उसे अल्फाजों में बयां करना मेरे बस

By prabhapunj.mishraEdited By: Published: Fri, 12 May 2017 06:47 PM (IST)Updated: Sun, 14 May 2017 10:46 PM (IST)
मम्मी और मैं दोनों लियो हैं, लायनेस होने से हम दोनों की पसंद और नापसंद एक : हुमा कुरैशी
मम्मी और मैं दोनों लियो हैं, लायनेस होने से हम दोनों की पसंद और नापसंद एक : हुमा कुरैशी

मेरी अम्‍मी मेरी आदर्श हैं

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मेरी अम्मी, मेरा क्या किसी का भी आदर्श हो सकती हैं। एक मुस्लिम परिवार, वह भी कश्मीर के एक छोटे से गांव में, वहां के रूढि़वादी परिवार में उनका जन्म-परवरिश हुई। यहां आज भी महिलाओं को ज्यादा बोलने तक की आजादी नहीं है। ऐसे माहौल में वह पली -बढ़ीं। पढ़ाई खत्म होते-होते उनकी मुलाकात मेरे डैड से हुई। डैड मुस्लिम तो हैं, लेकिन उनके ख्यालात अलग हैं। खैर, शादी हुई और वो शादी के बाद दिल्ली आ गईं। कश्मीर से दिल्ली, उनके लिए जगह, संस्कृति, भाषा, खानपान सब कुछ अलग और नया था। मेरे तीन भाई हैं और मैं इकलौती बहन।  हम सभी की परवरिश मम्मी ने बहुत प्यार, लेकिन उतने ही अनुशासन से की।  मेरे पिताजी ने दिल्ली में एक छोटा होटल शुरू किया। मां की पाक कला पर डैड को पूरा भरोसा था। क्या आप यकीन करेंगी कि कई किलो मसाले मम्मी हाथ से पीसा करती थीं। उनके हाथों पिसे मसाले हमारे सलीम्स होटल में जाते थे। हमारे होटल का खाना बहुत कम समय में मशहूर हो गया और दिल्ली में सलीम्स होटल की चेन बन गयी। इसके पीछे मेरी मम्मी का बहुत बड़ा नहीं सबसे बड़ा योगदान है। यह बात शायद ही कोई जानता हो। 

काम छोड़ अम्‍मी की बाहों में खो जाऊं

होटल को विस्तार देने के चक्कर में डैड बिजी होते गए। समय के साथ मेरे भाई बड़े हुए। एक भाई (साकिब सलीम) तो अब मेरे साथ ही फिल्म व्हाइट भी कर रहा है। बाकी दोनों होटल में हाथ बटा रहे हैं। मम्मी अब अकेलापन महसूस करती हैं। कभी-कभी सोचती हूं कि अपना काम छोड़-छाड़कर मम्मी के पास दिल्ली चली जाऊं। हालांकि मम्मी का हमेशा कहना रहा, बी रिस्पांसिबल व्हाट यू डू इन योर लाइफ। मम्मी ने मुझे कभी लेट नाइट पार्टियों में जाना एलाउड नहीं किया। उनके अनुशासन के कारण ही परिवार में प्यार, वक्त की पाबंदी और समय की अहमियत रही। 

मेरी मां ने मुझे स्‍टार बना दिया

मैंने जब उनसे कहा कि मैं मुंबई जाकर अभिनय में हाथ आजमाना चाहती हूं तो पहले उन्होंने मना किया, लेकिन जब मैंने उनसे अपने कॅरियर के बारे में बात की तो वह मान गईं। दिल्ली का घर, डैडी, भाई सभी को छोड़कर उनका मुंबई आना और मेरे साथ रहना संभव नहीं, लेकिन वह मेरी फिक्र करती हैं। कभी-कभी व्यस्तता के कारण मैं दो-चार दिन मां से बात नहीं कर पाती तो वह खुद ही फोन करती हैं और कहती हैं, बात करने के लिए न सही, कम से कम मेरे साथ झगड़ा करने के लिए ही फोन किया कर। मुझे बहुत फिक्र रहती है। बहुत हो गया तुम्हारा अभिनय, अब वापस आ जाओ। मुझे अक्सर महसूस होता है कि अगर मुझे भविष्य में पुरस्कार भी मिले तो वे पुरस्कार मेरी मां के प्यार के आगे कुछ भी नहीं। मां का साथ होना किसी भी बेटी के लिए इतना अहम है, जिसकी तुलना नहीं हो सकती। बहुत कुछ सीखना है अभी मम्मी से। उनमें जितने गुण हैं, उनकी तुलना में दस प्रतिशत भी आत्मसात कर पाई तो खुद को धन्य मानूंगी। 


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