Mirza Ghalib : मिर्ज़ा ग़ालिब की सबसे बेहतरीन शेर व गज़लें
Mirza Ghalib उन्होंने अपने जीवन में उर्दू और फ़ारसी भाषा में अनेकों शेर-शायरी और कविताएं लिखीं। जो वर्तमान समय में भी प्रासंगिक हैं।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Mirza Ghalib:उर्दू और फ़ारसी भाषा के महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब अपनी बहुमुखी प्रतिभा के लिए जाने जाते थे। उन्होंने महज़ 11 साल की आयु में ही फ़ारसी और उर्दू भाषा में लिखने की महारत हासिल कर ली थी। उनकी कई रचनाएं प्रकाशित नहीं हो पाई थीं, जो आज उर्दू भाषा की प्रमुख शैली है।
उन्हें ये प्रतिभा विरासत में नहीं मिली, बल्कि उन्होंने अपनी रुचि और प्रतिभा से दुनिया भर में अपनी ख़ास पहचान बनाई। जब ग़ालिब महज 5 वर्ष के थे तो उनके पिता और चाचा (दोनों सेना में थे) युद्ध में मारे गए थे।
उन्होंने अपने जीवन में उर्दू और फ़ारसी भाषा में अनेकों शेर-शायरी और कविताएं लिखीं। जो वर्तमान समय में भी प्रासंगिक हैं। उनकी रचनाओं को ग़ज़ल सम्राट और ग़ज़ल गायक दिवंगत जगजीत सिंह ने भी कई बार लोगों के सामने प्रस्तुत किया है। ऐसे में आज हम आपको मिर्ज़ा ग़ालिब की प्रमुख ग़ज़लों के बारे में बताने पेश करने जा रहे हैं, आइए जानते हैं।
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक
दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार
या इलाही ये माजरा क्या है
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूं जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूं दम-ब-दम निकले
कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती
मौत का एक दिन मुअय्यन है
नींद क्यूँ रात भर नहीं आती
मिर्ज़ा ग़ालिब की रचनाओं को आज भी महफिलों में सुनाया और गुनगुनाया जाता है। उनके जीवन पर कई टीवी सीरीज़ और फ़िल्में हिंदी और उर्दू में बन चुकी हैं। जिसमें 1954 में बनी मिर्ज़ा ग़ालिब प्रमुख है। इस फिल्म में तत्कालीन महान अभिनेत्री सुरैया ने अहम भूमिका निभाई थी। इस फिल्म को 1955 में राष्ट्रीय फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था।