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जानें, अमर शहीद राम प्रसाद 'बिस्मिल' के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

बिस्मिल महान स्वतंत्रता सेनानी योद्धा वीर शायर कवि और बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इनकी वीरता की कहानी आज भी सुनाई और पढ़ाई जाती है।

By Umanath SinghEdited By: Published: Thu, 11 Jun 2020 11:21 AM (IST)Updated: Thu, 11 Jun 2020 11:21 AM (IST)
जानें, अमर शहीद राम प्रसाद 'बिस्मिल' के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
जानें, अमर शहीद राम प्रसाद 'बिस्मिल' के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। आज अमर शहीद राम प्रसाद 'बिस्मिल' की जयंती है। इनका जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर जिले के मोहल्ला खिरनीबाग में हुआ था। जिस दिन इनका जन्म हुआ, उस दिन निर्जला एकादशी थी। जबकि 'बिस्मिल' की शहादत के दिन सफला एकादशी थी। इनको 30 साल की उम्र में अंग्रेजी हूकुमत ने 19 दिसम्बर 1927 को गोरखपुर की जेल में फांसी पर लटका दिया था। 'बिस्मिल' महान स्वतंत्रता सेनानी, योद्धा, वीर, शायर, कवि और बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इनकी वीरता की कहानी आज भी सुनाई और पढ़ाई जाती है। इनके रोम-रोम में वीरता बसी थी। इस बात की जानकारी उनके शायरी और आत्मकथा से मिलती है। जब उन्हें फांसी पर लटकाया जा रहा था, उस समय उन्होंने यह शेर गुनगुनाया था।

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'अब न अह्ले-वल्वले हैं और न अरमानों की भीड़,

एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है!'

राम प्रसाद 'बिस्मिल' का जीवन परिचय'

बिस्मिल' का जन्म उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर जिले के मोहल्ला खिरनीबाग में राजपूत परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम मुरलीधर था और माता का नाम मूलमती था। बचपन में इन्हें पढ़ने में कोई रुचि नहीं थी। इसके लिए कई बार पिटाई भी खा चुके थे। इस वजह से पिता ने इनका दाखिला उर्दू स्कूल में करा दिया। उर्दू मिडिल स्कूल से इन्होंने प्रारंभिक पढ़ाई पूरी की। इसी समय इनका संपर्क पड़ोस के एक पुजारी से हुआ, जिनसे 'बिस्मिल' बहुत प्रभावित हो गए। इससे इनके जीवन की दशा और दिशा दोनों बदल गईं।

इसी दौरान मुंशी इन्द्रजीत से मिले, जिन्होंने'बिस्मिल' स्वामी सोमदेव का सेवक बनाया। उनके संसर्ग में रहने के कारण 'बिस्मिल' में देशभक्ति की ज्वाला धधक उठी और जब इनके बडे़ भाई परमानन्द को 1915 में फांसी दे दी गई, तब इनकी देशभक्ति को और बल मिला।

उन्हीं दिनों 'बिस्मिल' ने 6 अन्य साथियों के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम दिया। इस वारदात को अंजाम देने में उनके साथ राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, अशफाक उल्ला खां, शचीन्द्र नाथ सान्याल, भूपेन्द्र नाथ सान्याल व बनवारी लाल थे। काकोरी कांड में इन लोगों को अभियुक्त बनाया गया और 19 दिसम्बर 1927 को गोरखपुर की जेल में 'बिस्मिल' को फांसी दे दी गई।


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