जापानी वाबी-साबी के अनुसार अधूरेपन और खालीपन में भी बसती है खूबसूरती, जानें क्या है ये
जापान का वाबी-साबी कॉन्सेप्ट जीवन और वस्तुओं को देखने का अलग नजरिया देता है। इसके अनुसार अधूरेपन और खालीपन में भी खूबसूरती है। यह जापानी दर्शन जीवन के हर स्तर पर लागू होता है।
जापानी सौंदर्य-बोध में वाबी-साबी का अर्थ है- अधूरेपन को स्वीकारना क्योंकि जीवन ऐसा ही है, अनिश्चित, अस्थायी, अपूर्ण...। इस कला में एसिमिट्री, सादगी, रुखेपन और प्रकृति के प्रति सम्मान की भावना झलकती है। वाबी मतलब जीवन और वस्तुओं को देखने का नजरिया जबकि साबी का मतलब है, क्षणभंगुरता, अस्थिरता यानी जीवन को उसकी नश्वरता में स्वीकार करना।
यह जापानी कॉन्सेप्ट बौद्ध दर्शन से लिया गया है, जिसे वहां की लाइफस्टाइल में देखा जा सकता है। वहां की कला-स्थापत्य और जीवनशैली में यह धारणा परिलक्षित होती है।
जीवन हो या घर, कोई भी कभी पूरी तरह क्लटर-फ्री नहीं हो पाता। दादा जी की एंटीक दीवार घड़ी, नानी का चांदी का सरौता, दादी के जमाने वाले पीतल-तांबे के बड़े-बड़े भगोने या चित्रकारी वाले लोहे के बक्से, बच्चे का पहला खिलौना, पापा का हैट कलेक्शन या मां के मायके से आया विंटेज फर्नीचर... हर घर में कुछ ऐसी वस्तुएं होती हैं, जिनसे घर के किसी न किसी सदस्य की भावनाएं जुड़ी होती हैं। उन्हें यादों का क्लटर कहें या भावनाओं का सम्मान लेकिन हर नया समय अपने साथ कुछ पुरानी यादें बटोरता चलता है। थोड़ी सी कलात्मकता के साथ पुराने को सहेजा जा सकता है।
मगर ध्यान रहे कि महज सादगी और पुराने को बचाने के लिए घर भरना मकसद न हो। यह कॉन्सेप्ट एक मिनिमलिस्टिक अप्रोच को भी प्राथमिकता देता है। दरअसल यह कला है घर में शांति और अपनापन महसूस करने की, जिसमें अनुशासन और व्यवस्था भी शामिल है। प्रिय वस्तुओं को नए सौंदर्य-बोध के साथ घर में कुछ इस तरह संजोया जा सकता है।
नेचुरल मटीरियल्स और कलर्स
वाबी-साबी का एक उद्देश्य प्रकृति का सम्मान करना भी है। इसलिए इसमें प्योर वुडन फर्नीचर, ताजे फूल और प्लांट्स को अहमियत दी जाती है। यानी घर में प्लास्टिक कम करें और ग्लास, मार्बल, वुड, स्टोन, मेटल, सिरेमिक्स, वूल, क्ले, बैंबू और टैरा कोटा का इस्तेमाल अधिक करें। इस कॉन्सेप्ट के मुताबिक पहाड़, समुद्र, रेगिस्तान में जो रंग सर्वाधिक नजर आते हैं, वही घर के रंग हों, यानी न्यूट्रल कलर्स।
क्लटर-फ्री और व्यवस्थित
जरूरी नहीं कि हर कपड़े, बर्तन, खिलौनों या किताबों को सिर्फ इसलिए संजोया जाए कि उनसे किसी की यादें जुड़ी हैं। हर चीज सहेजना असंभव है। समय के साथ हर वस्तु पुरानी होती है और उसकी उपयोगिता घटती है। इसलिए यादों में बसी कलात्मक वस्तुओं को संजोने की भी सीमा होती है, उसका ध्यान रखना जरूरी है। कम में खुश रहना कला भी है-मानसिकता भी।
प्रकृति के करीब
प्रकृति की झलक वासेज में लगी स्टिक्स, पॉट में लगे फूलों, नेचुरल मेटल के क्राफ्ट आइटम्स, मिट्टी या सिरेमिक की सजावटी वस्तुओं के जरिए मिल सकती है। इनमें मनचाही आकृतियां, रंग, सिमिट्री की परवाह न करें, पसंद है तो घर में रखें लेकिन ध्यान रखें कि ओवरडू न हो।
घर की खुशबू
आज के समय में एयरकंडिशंड घर आमतौर पर बंद रहते हैं। मौसम कैसा भी हो, सुबह-शाम घर के खिड़की-दरवाजे खोलें, पल भर में ही घर की रंगत बदल जाएगी। बाहर की हवा से घर भी सांस लेने लगता है। इसके अलावा सुबह-शाम अरोमा कैंडल्स, डिफ्यूजर्स, रीअल फ्लॉवर्स से भी घर में ताजगी का एहसास होता है। इससे मन प्रसन्न रहता है और मूड स्विंग्स कम होते हैं। नैचरल मटीरियल के बने रस्टिक होल्डर इस्तेमाल करें।
थोड़ा सा नॉस्टैल्जिया बुरा नहीं
घर में उन चीज़ों को रखें, जो नॉस्टैल्जिया, सौंदर्य और उपयोगिता को बढ़ाती हों। जैसे पंचधातु, कांसे या पीतल का कलछा, कलश या बड़े भगौने संयुक्त परिवारों की याद दिलाते हैं, जब पुराने समय में संयुक्त परिवार हुआ करते थे। बुनी हुई कुर्सियां, टोकरियां, बड़े पत्थरों से बनी आकृतियां भी अपनी जड़ों का एहसास दिलाती हैं।