कठिन समय में आपका सबसे बड़ा हथियार है धैर्य और सकारात्मक सोच, तो इसे न डगमगाने दें
हामारी के बाद लोगों की जि़ंदगी ठहर-सी जाती है। ऐसे में वापस आने में ज़ल्दबाज़ी नहीं होनी चाहिए बल्कि एक योजनाबद्ध तैयारी बेहद जरूरी है। जिसके बारे में आज हम जानेंगे।
वर्तमान दौर में कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अप्रत्याशित तरीके से प्रभावित किया है। ऐसा माना जा रहा है कि अभी तक दुनिया की व्यवस्थाएं जिस ट्रैक पर चल रही थीं, उनमें बड़ा बदलाव आएगा। हालांकि यह कोई पहली वैश्विक महामारी नहीं है। मानव सभ्यता के इतिहास में ऐसे संकटों की लंबी फेहरिस्त है। महामारियों के कारण भयानक तबाही के मंज़र दुनिया में कई बार देखे गए हैं। इस बार बीमारी के कारण हुए लॉकडाउन से पूरी दुनिया में प्रकृति और मौसम में कई उतार-चढ़ाव अभी तक देखने को मिल रहे हैं। यह इस सदी का सबसे बड़ा संकट है, जिससे होने वाली हानि की तुलना द्वितीय विश्व युद्ध के समय हुए नुकसान से की जा रही है।
इतिहास के आईने में
अगर इतिहास के आईने में इसके प्रभाव को देखकर आकलन करें तो हम यह पाते हैं कि हर त्रासदी के बाद पुरानी व्यवस्था और मान्यताएं टूटती हैं। कुछ नई बातें सामने आती हैं। अर्थव्यवस्था और लोगों की जीवनशैली में विश्वव्यापी स्तर पर बदलाव नज़र आने लगता है। अगर हम दो हज़ार वर्ष पुरानी घटनाओं पर गौर करें तो इतिहास गवाह है कि जहां महामारी के प्रभाव से साम्राज्यवाद का विस्तार हुआ, वहीं इसी की वजह से साम्राज्यवाद का अंत भी हुआ। 430 ईपू. से 426 ईपू. तक एथेंस में अपना प्रकोप फैलाने वाले एथेनियन प्लेग और 541-542 ईस्वी के दौरान पूर्वी रोम में फैले जस्टिनियन प्लेग के बाद पूरे यूरोप में ईसाई धर्म का प्रसार हुआ था। वहीं तेरहवीं शताब्दी के मध्य, यूरोप में फैली ब्लैक डेथ महामारी के बाद लोगों ने धार्मिक कर्मकांडों को कम महत्व देना शुरू कर दिया था। इस महामारी ने दुनिया के प्रति लोगों के विचारों में मानवता का दृष्टिकोण पैदा किया। इतिहास के पन्नों में ऐसी महामारी की तमाम घटनाएं दर्ज हैं, जिन्होंने जीवन के प्रति लोगों का दृष्टिकोण पूरी तरह बदल कर रख दिया। 1918-1920 के दौरान पूरी दुनिया स्पैनिश फ्लू के संक्रमण का शिकार बनी। इसी के बाद भारत सहित अन्य देशों में बड़े स्तर पर मज़दूर आंदोलन शुरू हुए और साम्राज्यवाद के विरुद्ध लोगों ने विद्रोह करना शुरू कर दिया।
कुछ सकारात्मक प्रभाव
किसी भी प्राकृतिक आपदा से जहां बहुत कुछ नष्ट होता है, वहीं से नवसृजन की शुरुआत भी होती है। 1918 की महामारी के बाद वैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों द्वारा कई अध्ययन किए गए, जिनका निष्कर्ष यह था कि उस बड़ी महामारी के प्रकोप ने प्रभावित शहरों के लिए आर्थिक आपदा को भी जन्म दिया। फिर नेशनल पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए अध्ययनों के बाद यह पाया गया कि इसके बाद देश में उत्पादन और रोज़गार की नीतियों में नए सिरे से सुधार लाया गया। फिर कुछ वर्षों में इसके सकारात्मक परिणाम नज़र आने लगे। राहत प्रयासों के बाद लोगों की जि़ंदगी पटरी पर वापस लौटने लगी और राहत कार्य पूरा होने के बाद रोज़गार में 4 से 6 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई और यह बढ़त लंबे समय तक बनी रही।
अनुभवों से सीखें
लॉकडाउन के दौरान लोगों ने खुद यह महसूस किया कि लंबे समय तक जंक फूड से दूर रहने की वजह से पाचन-तंत्र संबंधी समस्याएं दूर हो गईं। तुलसी, अदरक और हल्दी जैसी चीज़ों को आज़माने के बाद उन्हें भी यह भरोसा हो गया, हमारी किचन में ही सेहत का खज़ाना मौज़ूद है।
डॉ. अभिलाषा द्विवेदी, लाइफ कोच से बातचीत पर आधारित
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