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सुरक्षित दूध बिना रेफ्रिजरेशन या प्रिजर्वेटिव्स के कैसे पहुंच रहा है दूरदराज के इलाकों तक

Tetra Pak की UHT और Aseptic टेक्नोलॉजी की मदद से उन इलाकों में दूध पहुंच रहा है जहां दूध मिलना है मुश्किल

By Rajat SinghEdited By: Published: Tue, 23 Jun 2020 09:45 AM (IST)Updated: Tue, 23 Jun 2020 12:49 PM (IST)
सुरक्षित दूध बिना रेफ्रिजरेशन या प्रिजर्वेटिव्स के कैसे पहुंच रहा है दूरदराज के इलाकों तक
सुरक्षित दूध बिना रेफ्रिजरेशन या प्रिजर्वेटिव्स के कैसे पहुंच रहा है दूरदराज के इलाकों तक

खाद्य पदार्थों की स्वच्छता, गुणवत्ता और सुरक्षा ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिसका सामना हर एक ग्राहक को करना पड़ता है। उसके लिए उसकी सेहत से बढ़कर कुछ नहीं है। अब दूध को ही ले लीजिए। यह पेय पदार्थ हमारे जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण है, एक मां से बेहतर और कोई नहीं जान सकता, जो पूरे दिन एक गिलास दूध पिलाने के लिए अपने बच्चे के पीछे भागती रहती है। वो दूध की पौष्टिकता से परिचित है, वो जानती है कि अगर उसका बच्चा दूध पिएगा तो उसकी सेहत हमेशा दुरुस्त रहेगी। 

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भारत जितना बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है, उतनी ही बड़ी संख्या में यहां दूध की खपत भी होती है। गांव हो या शहर हर जगह इसकी मांग रहती है। लेकिन सवाल यहां यह है कि क्या फ्रेश दूध हर किसी के लिए सुलभ है? देश के बहुत से हिस्सों में दूध की पूर्ति तो आसानी से हो रही है, लेकिन कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां दूध की कमी है या यूं कहें वहां दूध का उत्पादन नहीं होता। उन तक फ्रेश दूध तभी पहुंचाया जा सकता है जब हमारे पास सही टेक्नोलॉजी हो।  

दरअसल दूध का उत्पादन और खपत रोज का है, ऐसे में सही समय पर इसकी डिलीवरी, खासकर दूरदराज के इलाकों तक नहीं हुई तो यह खराब हो सकता है या फिर उसकी गुणवत्ता में कमी आ सकती है। वो न तो डेयरी किसान के काम आता है और न ही उपभोक्ता के। दूसरी ओर देश के एक बड़े हिस्से में अभी भी दूध की पहुंच नहीं है।

UHT और एसेप्टिक पैकेजिंग तकनीक 

ऐसे में Tetra Pak की Ultra High Temperature (UHT) और एसेप्टिक पैकेजिंग तकनीक पिछले तीन दशकों से बहुत मददगार साबित हुई है। प्राकृतिक प्रक्रिया पर आधारित UHT तकनीक दूध के हानिकारक सूक्ष्मजीवों को निष्क्रिय करने के लिए हीट या गर्मी का उपयोग करती है। इसमें दूध को उच्च तापमान पर गर्म करके तुरंत ठंडा किया जाता है, जिससे हानिकारक सूक्ष्मजीव निष्क्रिय हो जाते हैं और उसमें पोषक तत्व भी बरकरार रहता है। इससे दूध 6 महीनों तक सुरक्षित रहता है, वो भी बिना प्रिजर्वेटिव्स के, और उसके नेचर में भी बदलाव नहीं आता। इस पूरी प्रक्रिया में मानव का सम्पर्क नहीं होता और दूध के संक्रमित होने का खतरा भी नहीं रहता।    

वहीं, एसेप्टिक पैकेजिंग एक सड़न रोकनेवाली पैकेजिंग तकनीक है, जो अंदर के प्रोडक्ट को नमी, प्रकाश, हवा आदि से बचाती है, जिससे कि प्रोडक्ट एकदम सुरक्षित रहता है। इस तकनीक की मदद से हम दूध को कई दिनों तक बिना किसी कोल्ड चेन के रख सकते हैं और एक इलाके से दूसरे इलाके तक आसानी से पहुंचा सकते हैं। चाहे गुजरात से उत्तर-पूर्व जाना हो या कर्नाटक से जम्मू कश्मीर, लोगों तक फ्रेश दूध पहुंचे इसके लिए जरूरत है कि उसकी प्रोसेसिंग और पैकेजिंग अच्छी हो।

 

उत्तर पूर्व - दूध की कमी वाला क्षेत्र  

पूर्वोत्तर राज्यों जैसे असम, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश आदि में दूध का उत्पादान नहीं होता है और लोजिस्टिकल चुनौतियों के चलते देश के इस हिस्से में ताजा दूध पहुंचाना एक जटिल कार्य है। इसके अलावा, कई ऐसे दूरदराज के क्षेत्र हैं, जहां तक दूध पहुंचाना बहुत ही कठिन कार्य है। क्योंकि वहां तक कोल्ड चेन की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में एसेप्टिक प्रोसेसिंग और पैकेजिंग टेक्नोलॉजी इन इलाकों तक सुरक्षित दूध पहुंचाने में सालों से मदद करती आई है। शायद हमारे और आपके लिए यह समस्या इतनी बड़ी न लगे, पर उत्तर पूर्व के उपभोक्ता एक उदाहरण हैं, जहां इस टेक्नोलॉजी की पावर अनोखी है। 

दुर्गम इलाकों में तैनात जवानों की सेवा 

कश्मीर या सियाचिन जैसे बेहद ऊंचे और दुर्गम स्थानों में तैनात भारतीय सैनिकों का जीवन चुनौतियों से भरा होता है। विपरीत भौगोलिक परिस्थितियों और बर्फीले मौसम में ये वीर सैनिक देश की सीमा की रक्षा करते हैं। ऐसे में हमारा फर्ज बनता है कि हम उनकी सेहत का ख्याल रखें और उन्हें फ्रेश दूध और दूसरे खाद्य पदार्थ पहुंचायें, जो ज्यादा दिनों तक टिक सके। दरअसल यहां तक दूध पहुंचाने के लिए कोल्ड चेन और बुनियादी ढांचे की जरूरत होती है, जिनका खर्चा बहुत ज्यादा है। और इतनी लंबी कोल्ड चेन खड़ी करने का पर्यावरण पर क्या असर होता है, यह तो आप समझ ही सकते हैं। हर साल लगभग 5 करोड़ लीटर दूध सेना तक इस टेक्नोलॉजी की मदद से पहुंचाया जाता है।  

मछुआरों की जरूरतों को पूरा करे 

एक तरफ जहां Tetra Pak की पैकेजिंग वाला दूध दूरदराज और दुर्गम स्थानों पर रहने वाले लोगों और जवानों की जरूरतों पूरा करता है, तो वहीं दूसरी तरफ यह उन मछुआरों की पौष्टिक जरूरतों को भी पूरा करता है, जो पूरे दिन समुद्र में बोट पर रहते हैं। दरअसल दक्षिण भारत में समुद्र तट पर हजारों ऐसे मछुआरे रहते हैं, जो अपनी अजीविका के लिए मछली पर निर्भर हैं। उन्हें रोजाना मछली पकड़ने के लिए समुद्र में जाना ही पड़ता है। उन्हें अक्सर कई दिनों तक समुद्र में रहना पड़ता है। इस दौरान पोषण के लिए उनके पास ज्यादा साधन नहीं होते हैं।  

इस समस्या को Karnataka Milk Federation जैसी कंपनियों ने अच्छी तरह से समझा है और Tetra Pak की मदद से मछुआरों के लिए ऐसे पैकेज लेकर आए, जिसे मछुआरे न केवल आसानी से कई दिनों तक सुरक्षित रख सकते हैं, बल्कि जरूरी पोषण भी प्राप्त कर सकते हैं। 

महामारी में हर घर तक सुरक्षित पहुंचे दूध

जिस महामारी का आज हम सामना कर रहे हैं, आइए उसका एक उदाहरण लेते हैं। देश जहां महामारी की समस्या से जूझ रहा है, वहीं दूध जैसे आवश्यक पेय पदार्थ को गांवों और शहरों में पहुंचाकर लोगों के पोषण का ध्यान भी रखा जा रहा है। इस दौरन Nestle व Keventer जैसी निजी कंपनिया और Amul, Verka, Mother Dairy, Karnataka Milk Federation जैसी सहकारी कंपनियां दिन रात एक करके हर घर तक सुरक्षित दूध पहुंचा रही हैं। यहां भी Tetra Pak की टेक्नोलॉजी को सराहा गया। जिसके चलते लोग हफ्ते भर की जरूरतों को पूरा करने के लिए दूध अपने घर में स्टोर कर पाए, ताकि वो बार-बार बाहर न जा सकें। साथ ही कंपनियों ने भी यह सुनिश्चित किया कि दूरदराज के इलाकों में भी दूध की पूर्ति होती रहे।   

क्या बच्चा, क्या जवान और क्या बूढ़ा दूध हर किसी की जरूरत है। भारत जैसे देश में तो लोग दिन की शुरुआत ही दूध से करते हैं और उनके लिए दिन का आखिरी आहार भी दूध ही होता है। ऐसे में लोगों की दूध की जरूरतों को पूरा करना बहुत ही जरूरी है। इन सब जरूरतों के चलते UHT टेक्नोलॉजी की ताकत को नकारा नहीं जा सकता, और न ही इसके फायदों को।  

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