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Durga Puja 2020: जानें क्यों होता है दुर्गा की मूर्ति में तवायफों के आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल

Durga Puja Celebration 2020 उत्तर और पूर्व भारत में नवरात्रि नौ दिनों का त्यौहार होता है जबकि पश्चिम बंगाल में नवरात्रि के आखिरी चार दिन दुर्गा पूजा की जाती है और यही उनका सबसे बड़ा पर्व होता है।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Sat, 17 Oct 2020 08:00 PM (IST)Updated: Sat, 17 Oct 2020 08:00 PM (IST)
Durga Puja 2020: जानें क्यों होता है दुर्गा की मूर्ति में तवायफों के आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल
इस साल कोरोना वायरस महामारी की वजह से पंडाल हर बार की तरह रौनक नहीं रहेगी।

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Durga Puja 2020: हर साल दुर्गा पूजा को लेकर  पूरे देश में  हर तरफ धूम मची रहती है। हालांकि, इस साल कोरोना वायरस महामारी की वजह से पंडाल हर बार की तरह रौनक नहीं रहेगी। हर साल पंडालों में इन दिनों मां दुर्गा की भव्य मूर्तियां स्थापित हो जाती थी। सभी जानते हैं कि दुर्गा पूजा में मां दुर्गा की भव्य मूर्तियों का एक खास महत्व होता है। लेकिन इस पावन पर्व की बात कोलकाता की दुर्गा-पूजा के बिना अधूरी है। पूरे भारत में लोकप्रिय इस पूजा के लिए यहां विशेष मिट्टी से माता की मूर्तियों का निर्माण होता है और उस मिट्टी का नाम है 'निषिद्धो पाली'।

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उत्तर और पूर्व भारत में नवरात्रि नौ दिनों का त्यौहार होता है जबकि पश्चिम बंगाल में नवरात्रि के आखिरी चार दिन दुर्गा पूजा की जाती है और यही उनका सबसे बड़ा पर्व होता है। दुर्गा पूजा के दौरान देवी मां की मूर्ति बनाई जाती है, जिसके लिए मिट्टी तवायफों के आंगन  से लाई जाती है।

क्यों किया जाता है ऐसी परंपरा का पालन?

मान्यता है कि जब एक महिला या कोई अन्‍य व्यक्ति वेश्यालय के द्वार पर खड़ा होता है तो अंदर जाने से पहले अपनी सारी पवित्रता और अच्छाई को वहीं छोड़कर प्रवेश करता है, इसी कारण यहां की मिट्टी पवित्र मानी जाती है। यही कारण है कि वेश्यालय के बाहर की मिट्टी को मूर्ति में लगाया जाता है।

कुछ पौराणिक कहानियों में जिक्र है कि प्राचीन काल में एक वेश्या मां दुर्गा की अन्नय भक्त थी उसे तिरस्कार से बचाने के लिए मां ने स्वयं आदेश देकर उसके आंगन की मिट्टी से अपनी मूर्ति स्थापित करवाने की परंपरा शुरू करवाई। उसे वरदान दिया था कि उसके यहां की मिट्टी के उपयोग के बिना प्रतिमाएं पूरी नहीं होंगी।

चार मान्यताएं

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार दुर्गा पूजा के लिए मां की जो मूर्ति बनती है उसके लिए 4 चीज़ें बहुत ज़रूरी होती हैं। पहली गंगा तट की मिट्टी, गौमूत्र, गोबर और वेश्यालय की मिट्टी या किसी ऐसे स्थान की मिट्टी जहां जाना निषेध हो। इन सभी को मिलाकर बनाई गई मूर्ति ही पूर्ण मानी जाती है। ये रिवाज दशकों से चला आ रहा है।

पहली मान्यता

जब कोई व्यक्ति वेश्यालय में जाता है तो वह अपनी पवित्रता द्वार पर ही छोड़ जाता है। प्रवेश करने से पहले उसके अच्छे कर्म और शुद्धियां बाहर रह जाती हैं, इसका अर्थ यह हुआ कि वेश्यालय के आंगन की मिट्टी सबसे पवित्र हुई, इसलिए उसका प्रयोग दुर्गा मूर्ति के लिए किया जाता है।

दूसरी मान्यता

दुर्गा को महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है, दूसरी मान्यता के अनुसार महिषासुर ने देवी दुर्गा के सम्मान के साथ खिलवाड़ किया था, उसने उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाई थी, उसके अभद्र व्यवहार के कारण ही मां दुर्गा को क्रोध आया और अंतत: उन्होंने उसका वध कर दिया। इस कारण से वेश्यावृति करने वाली स्त्रियों, जिन्हें समाज में सबसे निकृष्ट दर्जा दिया गया है, के घर की मिट्टी को पवित्र माना जाता है और उसका उपयोग मूर्ति के लिए किया जाता है।

तीसरी मान्यता

वेश्याओं ने अपने लिए जो ज़िंदगी चुनी है वो उनका सबसे बड़ा अपराध है। वेश्याओं को इन बुरे कर्मों से मुक्ति दिलवाने के लिए उनके घर की मिट्टी का उपयोग होता है, मंत्रजाप के जरिए उनके कर्मों को शुद्ध करने का प्रयास किया जाता है।

चौथी मान्यता

वेश्याओं को सामाजिक रूप से काट दिया जाता है, लेकिन इस त्यौहार के सबसे मुख्य काम में उनकी ये बड़ी भूमिका उन्हें मुख्य धारा में शामिल करने का एक जरिया है।


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