Baisakhi 2019: बैसाखी पर्व और अलग-अलग लोगों के लिए क्या है इसका महत्व
When is baisakhi 2019 जानें कब है बैसाखी पर्व और अलग-अलग लोगों के लिए क्या है इसका महत्व और कैसे मनाया जाता है इसे। बैसाखी के दिन चारों ओर अलग ही रौनक देखने को मिलती है।
बैसाखी किसानों का खास पर्व होता है जब वो अपनी अच्छी फसल के लिए भगवान को धन्यवाद देते हैं। इस दिन को को वो नए साल के रूप में मनाते हैं। किसानों के अलावा ये पर्व सिखों के लिए भी बहुत अहमियत रखता है। इस दिन उनके दसवें गुरु ने खालसा पंथ की नींव रखी थी। पारंपरिक रूप से कई जगह मेले का भी आयोजन होता है।
कब - 14 अप्रैल 2019
दिन- रविवार
ज्योतिषों में बैसाखी का महत्व
वैसे तो बैसाखी का त्योहार हर साल 13 अप्रैल को मनाया जाता है लेकिन 36 सालों में एक बार ऐसा संयोग बनता है जब 14 अप्रैल को ये पर्व मनाया जाता है। बैसाखी को मेष संक्राति के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। भारत में ज्यादातर जगहों पर बैसाखी की धूम देखने को मिलती है। हर एक जगह इसके अलग-अलग नाम है और मनाने का तरीका भी। असम में बीहू, बंगाल में नब बर्षा, तमिल नाडू में पुथांडू, केरल में पूरन विशु और बिहार में वैसाख के नाम से इसे जाना जाता है।
किसानों के लिए बैसाखी का महत्व
पंजाब और हरियाणा में बैसाखी का पर्व कृषि से जोड़कर देखा जाता है। जब फसलें पककर तैयार हो चुकी होती हैं और इनकी कटाई होती है। सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर, नए कपड़े पहनकर मंदिरों और गुरुद्वारों में लोग भगवान के दर्शन करते हैं। हर घर पकवानों की खुशबू से महक रहा होता है। ढोल-नगाड़ों की थाप पर भांगड़ा गिद्धा करते हुए लोग अपनी खुशियां जाहिर करते हैं।
सिख समुदाय में बैसाखी का महत्व
सिख समुदाय के लिए तो बैसाखी बहुत ही बड़ा पर्व है। सन् 1699 में बैसाखी के ही दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी जिसके बाद सिखों की दुनियाभर में एक अलग पहचान कायम हुई। इस दिन गुरुद्वारे में खास प्रार्थना का आयोजन होता है। इसके बाद लंगर की व्यवस्था होती है।
हिंदू में बैसाखी का महत्व
हिंदुओं में बैसाखी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सन् 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की थी। वहीं बौद्ध समुदाय के लोगों का मानना है कि इसी दिन भगवान बुद्ध को ज्ञान की भी प्रॉप्ति हुई थी।