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Kalaripayattu: भारत के इस राज्य से हुई थी दुनिया के सबसे पुराने मार्शल आर्ट की शुरुआत, जानिए दिलचस्प कहानी

कलरीपायट्टु (Kalaripayattu) को सभी मार्शल आर्ट्स की जननी कहा जाता है। जी हां आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस कुंग फू (Kung fu) के दुनियाभर में ढेरों दीवाने हैं उसका जन्म भी इसी कला से हुआ था। आज इस आर्टिकल में आपको बताएंगे कैसे ये युद्ध कला तन मन और मस्तिष्क को तंदुरुस्त और संतुलित रखने के लिए जानी जाती है।

By Nikhil Pawar Edited By: Nikhil Pawar Published: Fri, 19 Apr 2024 08:00 PM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2024 08:10 PM (IST)
क्या है कलरीपायट्टु, जिसने रखी थी कुंग फू की नींव?

लाइफस्टाइल डेस्क, नई दिल्ली। कलरीपायट्टु (Kalaripayattu) विश्व के सबसे पुराने मार्शल आर्ट फॉर्म्स में से एक है। इसका जन्म केरल में करीब 5 हजार साल पहले हुआ था। इस प्राचीन कला से एक बेहद दिलचस्प कहानी जुड़ी हुई है। प्राचीन लोक कथाओं के मुताबिक, जब भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम ने अपनी कुल्हाड़ी को अरब सागर में फेंका, तो उसमें से धरती का एक टुकड़ा उभरा, जो कि आगे चलकर केरल बना। ऐसे में, इस धरती की रक्षा के लिए उन्होंने 21 शिष्यों को कलरीपायट्टु की शिक्षा दी। आइए जानें इससे जुड़ी बेहद दिलचस्प बातें।

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मदर ऑफ ऑल मार्शल आर्ट्स

कहा जाता है कि परशुराम ने कलरीपायट्टु की ट्रेनिंग देने के लिए 64 गुरुकुल स्थापित किए थे। कलरी का अर्थ है रणभूमि और कलरीपायट्टू असल में एक प्राचीन युद्ध कला है। इसमें कॉम्बैट एंड डिफेंस टेक्निक्स (Combat and Defence Techniques) तो हैं ही, साथ ही हैं हथियारों की ट्रेनिंग (Weapons for Training)। इसके साथ ही, इसमें योग और हीलिंग टेक्निक का बेमिसाल मेल भी है। यही वजह है कि इसे मदर ऑफ ऑल मार्शल आर्ट्स (Mother of All Martial Arts) भी कहा जाता है।

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कलरीपायट्टु के चार पड़ाव

कहा जाता है कि हमारे शरीर में 64 मर्म बिंदु हैं, जिन्हें वाइटल प्वाइंट्स भी कहते हैं। इन वाइटल प्वाइंट्स में जीवन शक्ति की ऊर्जा बसती है। कलरी में इन्हीं प्वाइंट्स को ध्यान में रखकर अटैक और डिफेंड करना सिखाया जाता है। इस कला में महारथ हासिल करने के लिए आपको चार पड़ाव पूरे करने होते हैं और हर पड़ाव को पार करने से स्टूडेंट्स को एक साल से ज्यादा का वक्त लगता है।

  • मेयपयट्टु (Meypayattu Physical Exercise): शरीर और दिमाग को शक्ति प्रदान करने की ट्रेनिंग होती है।
  • कोलथारिपयट्टु (Kolthari Payattu Wooden Weapon Training): लकड़ी के हथियारों से ट्रेनिंग।
  • अंकथारिपयट्टु (Ankathari Payattu Metal Weapon Training): धारदार हथियारों से ट्रेनिंग।
  • वेरुमकाई (Verum Kai Hand to Hand Combat): हाथों से लड़ने की कला।

कलरीपायट्टु ने ही रखी थी कुंग फू की नींव

आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनियाभर में जिस कुंग फू (Kung fu) के ढेरों दीवाने हैं, उसका जन्म भी कलरीपायट्टु से ही हुआ है। कहा जाता है कि करीब 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में दक्षिण भारत के कलरी योद्धा बोधिधर्म (Bodhidharma) चीन गए थे और वहां इन्हीं की सिखाई एक्सरसाइज ने आगे चलकर कुंग फू की नींव रखी।

कलरी सिर्फ योद्धा कला नहीं है, बल्कि तन, मन और मस्तिष्क को तंदुरुस्त और संतुलित रखने वाली कला भी है। साथ ही, यह केरल की तेय्यम (Theyyam) और कथकली (Kathakali) जैसी दूसरी कलाओं की प्रेरणा भी है।

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Picture Courtesy: keralatourism.org


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