बारिश में क्या खाएं और किन चीजों से करें परहेज, जानें एक्सपर्ट की राय
हर मौसम में कुछ खाद्य पदार्थों को खाने की सलाह दी जाती है तो कुछ से परहेज किया जाता है।बारीश में खाने की सूची लंबी होती है। जानेंगे न्यूट्रिशनिस्ट नमामि अग्रवाल से।
बारिश आती है तो सब कुछ धुला और हरा-भरा नजर आने लगता है। गर्मागर्म चाय और पकौड़ों का स्वाद इसी मौसम में आता है....लेकिन यह मौसम अपने साथ कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी लाता है। इस मौसम में कई तरह के संक्रमण और एलर्जी हो सकती है। खासतौर पर भोजन और पानी-जनित बीमारियां इस समय बहुत होती हैं। अगर ध्यान न दिया जाए तो पाचन तंत्र पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।
इस मौसम में क्या खाया जाए और क्या नहीं, इसे लेकर आयुर्वेद में काफी कुछ कहा गया है। शास्त्रों में खासतौर पर सावन-भादो के महीने में खानपान संबंधी कई प्रतिबंध बताए गए हैं। बड़े-बुजुर्ग भी ऐसे कई प्रतिबंधित भोजन के बारे में बात करते हैं। इस संबंध में कई तरह की धारणाएं भी प्रचलित हैं, वे क्यों बनाई गईं और उनमें कितनी सच्चाई है, जानें यहां।
सच्चाई : पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, बथुआ और सरसों का सेवन इस मौसम में नहीं करना चाहिए। इसकी मुख्य वजह यह है कि इस मौसम में साग में सबसे ज्यादा कीड़े और बैक्टीरिया पनपते हैं। खासतौर पर सैलेड या कच्ची सब्जियां इस मौसम में बिलकुल नहीं खानी चाहिए। अगर साग खाना जरूरी ही हो तो पहले इसे अच्छी तरह धो लें। इसी तरह पत्तागोभी में कई लेयर्स होती हैं। इससे कीड़ों और बैक्टीरिया को छिपने की जगह आसानी से मिल जाती है। इसलिए बरसात में पत्तागोभी खाने से मना किया जाता है। कच्ची सब्जियां और सैलेड्स तो इस मौसम में बिलकुल न खाएं क्योंकि वे जल्दी खराब होते हैं। फलों को काटने के तुरंत बाद खा लें। इन्हें काट कर देर तक न रखें। सब्जियों को भी देर तक काट कर न रखें।
सच्चाई: बरसात में बैंगन में जैसे ही फूल और फल आने लगता है, इसमें कीड़ा भी लगने लगता है। ये कीड़े इस तरह पौधे पर हमला बोलते हैं कि लगभग 70 प्रतिशत तक बैंगन नष्ट हो जाता है। इसीलिए बरसात के मौसम में बैंगन खाने को मना किया जाता है।
सच्चाई: टमाटर या शिमला मिर्च में कुछ क्षारीय तत्व पाए जाते हैं। दरअसल यह केमिकल कंपाउंड्स का ग्रुप है, जिसे एल्कालॉयड्स कहा जाता है। ये टॉक्सिक केमिकल्स होते हैं, जिनका निर्माण पौधे खुद को कीट-पतंगों से बचाने के लिए करते हैं। चूंकि बारिश के मौसम में कीड़े बहुत ऐक्टिव होते हैं, इसलिए इन सब्जियों को खाने की मनाही होती है या इनका सेवन कम से कम करने को कहा जाता है। एल्कालॉयड एलर्जी से त्वचा में खुजली, नॉजिया, स्किन रैशेज हो सकते हैं। हालांकि इन सब्जियों से एलर्जी के लक्षण व्यक्ति में कम उम्र से ही पनपने लगते हैं, बाद में ऐसे लक्षण कभी-कभार ही देखने को मिले हैं। अगर किसी को ऐसी एलर्जी नहीं है तो वह इन सब्जियों को पका कर सीमित मात्रा में खा सकता है। इन्हें कच्चा या सैलेड में काट कर खाने से इस सीजन बचना चाहिए।
सच्चाई: मानसून में पाचन क्षमता कमजोर होती है। दूसरी ओर वातावरण गर्म और उमस भरा होता है, जिस कारण डेयरी प्रोडक्ट्स में बैक्टीरिया पैदा होने की संभावना अधिक होती है। इस मौसम में कोल्ड-कफ भी होता है, चूंकि दही की तासीर ठंडी होती है, इसलिए गले और पेट संबंधी तकलीफों से बचने के लिए दही, छाछ या लस्सी का सेवन कम करने की सलाह दी जाती है। अगर दूध पीते हों तो ध्यान दें कि वह गर्म और ताजा हो। इसमें थोड़ी सी कच्ची हल्दी मिला कर पीने से पेट को राहत रहती है क्योंकि हल्दी में एंटी-इन्फ्लेमेटरी तत्व पाए जाते हैं।
सच्चाई: इस मौसम में पाचन तंत्र धीमा हो जाता है। इसीलिए फर्मेंटेड फूड जैसे इडली, दोसा, जलेबी, दही-बड़ा जैसी चीजें खाने से मना किया जाता है। अगर कभी-कभार खाएं भी तो साथ में प्रोबायोटिक जरूर लें, जिससे शरीर में अच्छे बैक्टीरिया पनप सकेें। तली-भुनी चीजें भी इस मौसम में खाने से परहेज करना चाहिए क्योंकि ये भी पाचन तंत्र पर जयादा दबाव डालती हैं।
सच्चाई: कुछ खास किस्म की फिश या प्रॉन्स में यह मौसम ब्रीडिंग का होता है, जिससे उनके स्वाद पर प्रभाव पड़ता है। बरसात में मछली भी तेजी से खराब होती है। फिश या कोई भी नॉन-वेजटेरियन फूड के जल्दी खराब होने के कारण ही इस मौसम में इन्हें न खाने की सलाह दी जाती है।