किसी भी तरह के दुखद अनुभव के बाद बढ़ जाती है पोस्टट्रैमेटिक डिसॉर्डर की समस्या, जानें इसके बारे में
वर्तमान दौर में पूरा विश्व कोरोना संकट से जूझ रहा है ऐसे में पोस्टट्रेमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर (पीटीएसडी) जैसी मनोवैज्ञानिक समस्या की आशंका बढ़ जाती है। जानेंगे इसके बारे में...
आमतौर पर गंभीर बीमारी, दुघर्टना, आर्थिक नुकसान या किसी भी तरह के दुखद अनुभव के बाद लोगों में पोस्टट्रेमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर (पीटीएसडी) जैसी मनोवैज्ञानिक समस्या की आशंका बढ़ जाती है। वर्तमान दौर में पूरा विश्व कोरोना संकट से जूझ रहा है, ऐसे में इस बात की आशंका बढ़ गई है कि आने वाले कुछ महीनों में लोगों को ऐसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
क्या है समस्या
मुश्किलें सभी के जीवन में आती हैं, पर उनसे उबरने के लिए हर व्यक्ति अपने ढंग से कोई न कोई रास्ता ढूंढ़ लेता है, लेकिन जो लोग कमज़ोर दिल के होते हैं या जिन्हें परिवार का सपोर्ट नहीं मिलता, उनमें इसकी आशंका बढ़ जाती है। किसी भी दुखद घटना के बाद व्यक्ति का उदास या चिंतित होना स्वाभाविक है। अब सवाल यह उठता है कि सामान्य उदासी और पीटीएसडी में क्या अंतर है? आमतौर जब कोई व्यक्ति दुख या तनाव में होता है, तब भी वह इस नकारात्मक मनोदशा को अपने ऊपर हावी नहीं होने देता। जबकि पीटीएसडी होने पर व्यक्ति की नियमित दिनचर्या प्रभावित होने लगती है और उसका पूरा जीवन अस्त-व्ययस्त हो जाता है।
प्रमुख लक्षण
आमतौर पर इसके लक्षणों को 4 श्रेणियों में बांटा जाता है :
1. बुरी स्मृतियों की पुनरावृत्ति
2. बुरे अनुभव से संबंधित छोटी-छोटी बातों से बचने की कोशिश
3. मनोदशा में नकारात्मक बदलाव
4. उग्र शारीरिक और भावनात्मक प्रतिक्रिया।
इसके अलावा इस समस्या के अन्य लक्षण इस प्रकार हैं :
अचानक किसी दुखद घटना का दृश्य आंखों के आगे फिल्म की तरह घूम जाना
अनिद्रा या डरावने सपने आना
लोगों के बीच भी अकेला महसूस करना
बातचीत से कतराना
अधिक गुस्सा आना
वैसी वस्तु या दृश्य को देखकर बेचैन हो जाना, जिसका उसके जीवन में घटित दुर्घटना से सीधा या परोक्ष संबंध हो। इसके अलावा गंभीर स्थिति में स्वयं को नुकसान पहुंचाने वाला व्यवहार करना, मसलन तेज ड्राइविंग, एल्कोहॉल या ड्रग्स लेना जैसे लक्षण भी नज़र आते है। इसकी वजह से व्यक्ति को डिप्रेशन भी हो सकता है।
कैसे करें बचाव
1. सोशल मीडिया से दूरी बनाकर रखें, क्योंकि अफवाहों और नकारात्मक खबरों से मन अशांत हो सकता है।
2. फोन पर करीबी लोगों से बातचीत करें। दूसरों की मदद करें, इससे आत्मविश्वास बढ़ता है। अगर बात करने की इच्छा न हो तो अपनी समस्या के बारे में डायरी में लिखें।
3. पर्याप्त नींद लें, अपनी रुचि से जुड़े कार्यों में व्यस्त रहने की कोशिश करें।
क्या है उपचार
इसके उपचार के लिए कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी अपनाई जाती है। अगर कोई व्यक्ति किसी दुर्घटना के लिए स्वयं को दोषी मानता है तो किसी उदाहरण द्वारा उसे यह समझाने की कोशिश की जाती है कि ऐसा किसी के भी साथ हो सकता है और इसमें उसकी कोई गलती नहीं है। इसके अलावा एक्सपोज़र थेरेपी द्वारा मरीज़ को धीरे-धीरे वैसी स्थितियों या वस्तुओं का सामना करना सिखाया जाता है, जिनसे उसे घबराहट होती है। मसलन अगर किसी हादसे के बाद किसी को कार या ट्रेन से डर लगता है, तो पहले उसे इनकी तसवीरें या वीडियो दिखाई जाती है। जब डर घटने लगता है तो एक्सपर्ट अपनी निगरानी में उस व्यक्ति को थोड़ी देर के लिए गाड़ी में लेकर जाते हैं। आमतौर पर तीन महीने तक सप्ताह में एक बार लगभग एक-डेढ़ घंटे की काउंसलिंग दी जाती है। चौथे महीने से मरीज़ के व्यवहार में सकारात्मक बदलाव नज़र आने लगता है।
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