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बदलते मौसम में बॉडी क्लॉक बिगड़ने की वजह से हो सकता है सीज़नल अफेक्टिव डिसॉर्डर, जानें कैसे बचें इससे

सीज़नल अफेक्टिव डिसॉर्डर (सैड) की एक स्थिति है। सैड मूड डिसॉर्डर का एक स्वरूप है जो मौसम के साथ पनपता और खत्म हो जाता है। सर्दियों के कोहरे व धुंध भरे दिनों में इसका प्रभाव ज़्यादा देखने को मिलता है। गर्मियों में इसके कुछ ही मामले सामने आते हैं।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Wed, 18 Nov 2020 07:00 AM (IST)Updated: Wed, 18 Nov 2020 07:06 AM (IST)
बदलते मौसम में बॉडी क्लॉक बिगड़ने की वजह से हो सकता है सीज़नल अफेक्टिव डिसॉर्डर, जानें कैसे बचें इससे
बेडरूम में अकेला बैठा बेहद परेशान युवक

बदलते मौसम में जब हर वक्त थकान व चिड़चिड़ाहट महसूस हो। सोने-खाने के ढंग में बदलाव नज़र आए। आत्मविश्वास डगमगाने और कार्यक्षमता घटने लगे, तो यह सीजनल अफेक्टिव डिसॉर्डर का संकेत हो सकता है। क्या है यह? कैसे बचा जा सकता है, जानिए।

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कैसे पहचानें

जि़ंदगी से निराशा, चिड़चिड़ापन,खुद को नाकाबिल महसूस करना, बार-बार रोने का मन होना, थकान, भूख न लगना या ओवरइटिंग, किसी काम में मन न लगना, नींद न आना या ज़्यादा नींद आना, तनाव व चिंता महसूस करना, कार्यक्षमता में कमी आना इसके प्रमुख लक्षण हैं।

क्या हैं कारण

सैड के सही-सही कारणों को जानना थोड़ा मुश्किल होता है। मोटे तौर पर बदलते मौसम में जब बॉडी क्लॉक गड़बड़ाने लगता है, पर्याप्त मात्रा में सूर्य की रोशनी नहीं मिलती, तब यह समस्या सामने आती है। इसका असर व्यक्ति की मानसिक सेहत पर पड़ता है। ब्रेन में सेरोटोनिन यानी न्यूरोट्रांसमीटर के रेगुलेशन में किसी भी असंतुलन से भी समस्या उभर सकती है। कुछ मामलों में यह आनुवंशिक, जैविक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक  कारणों से भी हो सकता है। आधुनिक जीवनशैली भी मूड को प्रभावित कर सकती है। जैसे दिनभर भागदौड़ की वजह से खुद पर ध्यान न दे पाना, परिवारों का सीमित होना, सपोर्ट सिस्टम का अभाव, टेक्नोलॉजी पर निर्भरता और बढ़ता अकेलापन।

यूं करें अपना बचाव

समस्या के निदान के लिए कई बार दवाओं की ज़रूरत पड़ती है। समस्या बहुत गंभीर न हो तो खानपान और लाइफस्टाइल में बदलाव से भी ठीक की जा सकती है। कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) को भी इसके इलाज़ में कारगर माना जाता है। सामान्य स्थिति में कुछ बातों का ध्यान रखकर इससे निज़ात पाई जा सकती है: 

व्यायाम करें

नियमित व्यायाम से फील गुड हॉर्मोन्स यानी सेरोटोनिन और एंडोर्फिन का स्राव अधिक होता है, जिससे मूड ठीक रहता है। इसलिए तमाम व्यस्तताओं के बावज़ूद व्यायाम ज़रूर करें। बाहर जाने का समय न हो तो घर पर ही व्यायाम किया जा सकता है। ट्रेडमिल, साइक्लिंग के अलावा ध्यान और योग भी इसमें लाभकारी हैं।

न हो विटमिन-डी की कमी

प्रतिदिन कम से कम आधा घंटा धूप में बैठें। इससे पर्याप्त विटमिन-डी मिलेगा। मूड ठीक रहेगा और सकारात्मकता बढ़ेगी। धूप में बैठना संभव न हो तो डॉक्टर की राय से विटमिन-डी सप्लिमेंट्स भी ले सकते हैं।

अरोमा थेरेपी भी मददगार

अरोमा थेरेपी भी सैड के प्रभाव को कम करने में कारगर है। एसेंशियल ऑयल्स शरीर की इंटर्नल क्लॉक को ठीक करने में मदद करते हैं, जिससे स्लीपिंग और इटिंग डिसॉर्डर दूर होता है। बाथ टब में कुछ बूंदें एसेंशियल ऑयल की डालें। दिन भर तरोताज़ा रहेंगे।

हंसने के बहाने तलाशें

उदासी होने पर परिवार के साथ मिल कर टेनिस, कैरम या लूडो आदि इंडोर गेम खेलें। इससे मन खुश रहता है। साथ ही हंसने का कोई मौ$का न छोड़ें। कॉमिडी फिल्म, जोक्स, बच्चों की मज़ेदार बातें इसमें मदद कर सकती हैं।

अच्छा खाएं

मूड को संवारने वाली चीज़ें जैसे सामन फिश, चिया सीड्स, मशरूम, केला, अंडा, बादाम, ओटमील, डार्क चॉकलेट, बेरीज़ आदि ज़्यादा से ज़्यादा खाएं।

व्यस्त रहें

खुद को व्यस्त रखें। खाली समय में अच्छी किताबें पढ़ें, फिल्में देखें, म्यूजि़क सुनें, दोस्तों से बातें करें और प्रकृति के बीच वक्त बिताएं। छुट्टी वाले दिन घर पर रहने के बजाय कहीं घूमने जाएं। मन में नकारात्मक विचार नहीं आएंगे।

सामाजिकता न हो कम

अपना सामाजिक दायरा बढ़ाएं। कभी दोस्तों-रिश्तेदारों को अपने घर बुलाएं, कभी उनके घर जाएं। सामाजिक कार्यक्रमों में शिरकत करें। लोगों से मिलने-जुलने से बेहतर महसूस होगा।

(डॉ. श्वेता शर्मा, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट, कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, पालम विहार, गुरुग्राम से बातचीत पर आधारित)

Pic credit- https://www.freepik.com/premium-photo/stress-asian-young-man-sitting-alone-bed-crying-with-tear-cover-face-by-both-hands_6141639.htm#page=1&query=mood%20disorder&position=19


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