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यौन उत्पीड़न मामलों में मनोवैज्ञानिक इलाज भी है बेहद ज़रूरी, जानें एक्सपर्ट्स की राय

आज शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा जहां महिलाओं ने खुद को साबित न कर दिखाया हो। बावजूद इसके महिला (लिंगभेद) होने के कारण हर समय सामाजिक रुढ़िवादी सोच और भेदभाव का सामना रोज़मर्रा की ज़िंदगी में करती हैं।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Tue, 08 Dec 2020 04:10 PM (IST)Updated: Tue, 08 Dec 2020 04:10 PM (IST)
यौन उत्पीड़न मामलों में मनोवैज्ञानिक इलाज भी है बेहद ज़रूरी, जानें एक्सपर्ट्स की राय
यौन उत्पीड़न मामलों में मनोवैज्ञानिक इलाज भी है बेहद ज़रूरी, जानें एक्सपर्ट्स की राय

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Physical Assault & Psychological Impact: महिलाएं ईश्वर की बनाई हुईं सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती हैं। वे न केवल सुंदर हैं, बल्कि दूसरों के प्रति सहृदय और फिक्रमंद भी होती हैं। दुर्भाग्य से, महिलाओं को समाज से वही सम्मान और प्यार नहीं मिलता, जो उन्होंने दूसरों में बांटा है। मानव इस दुनिया की सबसे विकसित प्रजाति है और इसलिए उनसे समाज में आदर और सद्भाव से रहने की उम्मीद की जाती है, लेकिन इस कसौटी पर भी हम खरे नहीं उतरते। आधुनिक युग की महिलाएं अपने लक्ष्य खुद तय करने और उन्हें पूरा करने में सक्षम और दृढ़ है़ं। फिर चाहे वह खगोल विज्ञान हो या वर्दी में देश की सीमाओं की रक्षा करना हो। आज शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा, जहां महिलाओं ने खुद को साबित न कर दिखाया हो। बावजूद इसके, महिला (लिंगभेद) होने के कारण वे हर समय सामाजिक रुढ़िवादी सोच और भेदभाव का रोज सामना करती हैं। छेड़छाड़, ईव टीजिंग, एसिड अटैक और यौन हिंसा की खबरें हर दिन अखबारों की सुर्खियां बनी रहती हैं।

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अक्सर यह देखने में आया है कि ऐसे जघन्य अपराधों की शिकार पीड़िताओं की स्वास्थ्य संबंधी देखभाल पर तो पूरा ध्यान दिया जाता है लेकिन, उनके मानसिक स्वास्थ्य को दरकिनार कर दिया जाता है। जबकि ऐसे सदमे से उबरने के लिए मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाना भी शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्वपूर्ण है। दुनिया के जाने-माने मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि यौन उत्पीड़न और एसिड अटैक जैसे गंभीर हादसों से आहत ऐसे किसी भी महिला के मन-मस्तिष्क पर इस घटना का शारीरिक घावों से भी गहरा असर होता है जो शायद जीवन भर उन्हें इस सदमे से उबरने नहीं देता। इसलिए मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज करना एक बड़ी भूल है।

यौन हिंसा और महिलाओं पर उसका प्रभाव

महिलाओं को उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में नरमदिल और कमजोर समझा जाता है, लेकिन इससे किसी को भी उन्हें शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक रूप से हावी होने का अधिकार नहीं मिल जाता है। एक समाज के रूप में हम इस सीमा रेखा को न लांघने की व्यवस्था बनाए रख पाने में लगातार विफल हो रहे हैं। हाल ही में हुआ हाथरस मामला, फरीदाबाद और इसी तरह की अन्य घटनाओं में यौन उत्पीड़न के अपराध महिलाओं के विरुद्ध नहीं बल्कि पूरी मानवता के साथ किया गया है। अलग-अलग लोग महिलाओं के खिलाफ अपराधों की बढ़ती संख्या के अलग-अलग कारण गिनाते हैं। इनमें प्रमुख रूप से पॉर्नोग्राफी के दुष्प्रभाव, पीड़िताओं का कपड़े पहनने का ढंग और इसी तरह की अन्य गतिविधियां शामिल हैं। हालांकि, सच्चाई यह है कि हमलावर कभी भी उम्र और कपड़े को ध्यान में रखकर अपने 'शिकार' का चुनाव नहीं करता। अगर ऐसा होता तो मासूम बच्चियों और बूढ़ी महिलाओं को ऐसे अपराधियों से कोई खतरा नहीं होता।

हर महिला पर यौन उत्पीडऩ का अलग प्रभाव

यहां ध्यान देने योग्य है कि यौन उत्पीड़न, ईव टीज़िंग जैसे अपराधों का असर हर महिला के दिल-ओ-दिमाग पर अलग तरह से नजर आता है। यह उस महिला की अंदरूनी हिम्मत और पूर्व के अनुभवों पर भी निर्भर करता है कि वह ऐसी परिस्थितियों में कैसे पेश आएगी। लेकिन इतना स्पष्ट है कि, किसी भी महिला के लिए यौन हमले के आघात से उबरना एक श्रमसाध्य अनुभव हो सकता है क्योंकि इसमें भावनात्मक उथल-पुथल व्यक्ति को स्थिर नहीं रहने देती। कुछ पीड़िताएं अचानक हॉर्न के बजने या लाइट को देखकर कोई प्रतिक्रिया नहीं करतीं। वहीं कुछ, अपने साथ हुए जघन्य अपराध पर खुलकर बोलती हैं। उनके अंदर भय, चिंता, दर्द आदि बहुत-सी भावनाएं होती हैं। 

कुछ महिलाओं के लिए ऐसे हादसों के बुरे सपने और फ्लैशबैक से बाहर ला पाना लगभग नामुमकिन सा हो जाता है। आमतौर पर ऐसे अपराधों की शिकार महिलाओं को सदमे से उबरने और शारीरिक-मानसिक रूप से स्थिर होने में 6 महीने से एक साल तक का समय लग जाता है। लेकिन ऐसे मामले भी हैं जहां अपने साथ हुई हैवानियत को भूलकर सामान्य जिंदगी में लौट आने को पूरा जीवन कम पड़ जाता है। ऐसे पीड़ित अपने परिवार और आस-पास के लोगों से प्यार, हिम्मत, सहानुभूति, देखभाल और सुरक्षा चाहते हैं। बावजूद इसके, ऐसी बहुत सी जरूरतें हैं, जो पीड़ित के परिवारों के लिए जुटाना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि उन पर सामाजिक दबाव बहुत ज़्यादा होता है। ऐसी परिस्थितियों में केवल एक पेशेवर ही पीड़िताओं और परिवार की सहायता कर सकता है।

यौन उत्पीड़न में प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक की भूमिका

भारत में मनोवैज्ञानिक को समाज अब भी अलग-अलग नजरिए से देखता है। जैसे ही पता चलता है कि कोई व्यक्ति मनोवैज्ञानिक से अपना इलाज करवा रहा है, लोग ये कहने में ज़रा देर नहीं करते कि उसका दिमागी संतुलन अस्थिर हो गया है। लेकिन असलियत यह है कि ऐसी बुहत-सी मानसिक परिस्थितियां हैं, जहां केवल एक पेशेवर कुशल मनोवैज्ञानिक ही दवाओं और परामर्श के जरिए पीड़िता की मदद कर सकता है। यह ऐसे महत्वपूर्ण काम हैं, जो किसी यौन उत्पीड़न की शिकार महिला को दवा देने या उसकी काउंसलिंग करने से भी कहीं ज्यादा ज़रूरी हैं। 

भारत में प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिकों ने बड़ी संख्या में ऐसे लोगों की मदद की है, जो बचपन में या वयस्क होने पर यौन उत्पीड़न से गुज़रे हैं। हालांकि, हमारे देश में मनोवैज्ञानिक इलाज की क्षमता को अभी तक ठीक से पहचाना और परखा नहीं गया है। सबसे महत्वपूर्ण, बात जो वे किसी यौन उत्पीडऩ की शिकार महिला के इलाज के दौरान मन-मस्तिष्क में स्थापित करते हैं वह यह कि जो कुछ भी उनके साथ हुआ उसमें उनकी कोई गलती नहीं है और इसके लिए वे खुद को कभी देाष न दें।

ऐसे कर सकते हैं उबरने की कोशिश

ऐसे हादसों से गुज़रे लोगों के परिजनों, दोस्तों और निकट संबंधियों को गंभीर और निरंतर प्रयास करना चाहिए उन्हें यह अहसास दिलाने के लिए जैसे कि उनके साथ कोई अनहोनी नहीं हुई है और सब कुछ सामान्य है। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि यह पीड़ितों को आगे बढ़ने में मदद करता है। इसके अलावा, विशेषज्ञों द्वारा योग और ध्यान लगाने पर बहुत ज़ोर दिया जाता है क्योंकि वे किसी व्यक्ति को अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने में मदद करते हैं और विभिन्न प्रकार की बाधाओं और नकारात्मक चीजों को दूर रखने के लिए मन में इच्छा शक्ति को बढ़ाने में मदद करते हैं।

अंत में, एक कुशल मनोवैज्ञानिक, यह बात अच्छी तरह से समझता है कि कोई भी दो मरीजों का इलाज, मानसिक संतुलन और हादसे का उन पर पड़ा प्रभाव एक सामान नहीं होता है। इसलिए, वह ऐसे तमाम मामलों में एक निर्धारित पैटर्न का अनुसरण करते हैं। इसका कोई तय फॉर्मूला नहीं बना है कि हम ऐसे लोगों के आस-पास के परिदृश्य को एक पल में बदल सकें। लेकिन किसी भी तरह के यौन आघात से गुजरने वाले व्यक्ति के लिए मनोवैज्ञानिक उपचार के महत्व को समझना ही इससे उबरने की पहली सीढ़ी है। जब हम यह स्वीकार कर लेते हैं और उस व्यक्ति को ऐसी परिस्थितियों से निपटने में मदद करते हैं, तो ही वह व्यक्ति अतीत को छोड़ कर जीवन में आगे बढ़ पाएगा।

प्रवेश गौर, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और संस्थापक एवं सीईओ, 'स्रोटा वैलनेस'


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