देश में आईवीएफ ट्रीटमेंट के लिए एम्ब्रेयोलॉजी विशेषज्ञों का कमी: नितिज मुर्डिया
इंजीनियर से एम्ब्रेयोलॉजिस्ट बने इंदिरा आईवीएफ संस्थान में एम्ब्रेयोलॉजी लैब डायरेक्टर नितिज मुर्डिया से जानें आईवीएफ से जुड़ी कुछ जरूरी बातें।
देश में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक तेजी से लोकप्रिय हो रही है। निसंतान दंपत्तियों के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है। बावजूद इसके देश में इससे जुड़े विशेषज्ञों का अभाव है। आईवीएफ के जरिए संतान सुख मिल सके इसमें एम्ब्रेयोलॉजी की भी बड़ी भूमिका होती है। इंजीनियर से एम्ब्रेयोलॉजिस्ट बने इंदिरा आईवीएफ संस्थान में एम्ब्रेयोलॉजी लैब डायरेक्टर नितिज मुर्डिया ने इस बारे में अधिक जानकारी दी।
विशेषज्ञों की कमी
साल 2003 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) खड़गपुर से इंडस्ट्रीयल कैमिस्ट्री में इंजीनियरिंग करने वाले मुर्डिया ने सिंगापुर की एनएचयूएस यूनिवर्सिटी से एम्ब्रेयोलॉजी की पढ़ाई की है। उन्होंने अपने पिता डॉ. अजय मुर्डिया जो इंदिरा आईवीएफ के संस्थापक भी हैं से प्रेरित होकर इस फील्ड को चुना। मुर्डिया बताते हैं कि निसंतानता झेलने वाले लोगों को आईवीएफ के ज़रिये संतान सुख दिया जाए, जिसके लिए देश में विशेषज्ञों की बड़ी तादाद होनी चाहिए। जबकि अभी ऐसा नहीं है।
इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका
आईवीएफ ट्रीटमेंट की सफलता के लिए योग्य व कुशल एम्ब्रेयोलॉजिस्ट का होना जरूरी है। जिसके लिए वर्षों के अनुभव की आवश्यकता होती है। वही आईवीएफ लैब में भ्रूण के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियां सुनिश्चित करता है। फर्टिलाइजेशन के लिए अंडों की जांच, समय-समय पर भ्रूण की जांच और उसका स्थानांतरण, क्रोमोसोम असामान्यताओं के लिए एंब्रियो बायोप्सी जैसे महत्वपूर्ण दायित्व उसी के जिम्मे होते हैं।
लगातार सीखने की ललक जरूरी
मुर्डिया बताते हैं कि भारत में एम्ब्रेयोलॉजी के प्रशिक्षण की शुरुआत एक दशक पहले ही हुई है। यहां अभी सिर्फ़ किताबी ज्ञान ही दिया जाता है। अच्छे प्रशिक्षण के लिए उन्हें खुद सिंगापुर जाना पड़ा था। नए एम्ब्रेयोलॉजिस्ट्स को अच्छे संस्थानों में अध्ययन कर प्रख्यात संस्थानों में सेवा देनी चाहिए। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और वो दिन प्रतिदिन बेहतर हो पाएंगे। अच्छा एम्ब्रेयोलॉजिस्ट बनने के लिए मेहनत व लगन की जरूरत होती है।
वीडियो गेम खेलने सरीखा
लेबोरेटरी में एम्ब्रेयोलॉजी का काम बिल्कुल किसी वीडियो गेम खेलने जैसा ही है। जब भी आप कोई कोई नया गेम खेलते हैं तो शुरुआत में उसे समझना मुश्किल होता है। ऐसे में आपको हाई स्कोर करने के लिए बेहतर अभ्यास की ज़रूरत होती है। ठीक उसी तरह एम्ब्रेयोलॉजी में भी शिखर तक पहुंचने के लिए अच्छी प्रेक्टिस की ज़रूरत होती है।
सही फॉलोअप जरूरी
निसंतान दंपत्तियों के लिए आईवीएफ तकनीक एक वरदान की तरह है। लेकिन आईवीएफ के लिए सबसे ज़रूरी है कि आप सही सेंटर और संस्थान का चुनाव करें। ख़ासतौर पर ऐसे सेंटरों का चुनाव बिल्कुल न करें जिनके पास खुद स्थायी एम्ब्रेयोलॉजिस्ट न हों। क्योंकि, जिस संस्थान में एम्ब्रेयोलॉजिस्ट ऑन-कॉल आते हैं, वहां सही से फॉलोअप नहीं हो पाते हैं। साथ ही कई बार मरीज़ को खुद एम्ब्रेयोलॉजिस्ट के दिए पते पर जाना पड़ता है।