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Stay Home Stay Empowered: क्या आपका मूड पल-पल बदलता है? आप हो सकते हैं बाईपोलर डिसऑर्डर के शिकार

बाईपोलर डिसऑर्डर पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित करता है। चूंकि यह दिमाग के फंक्शनों को प्रभावित करता है जिससे इसका असर लोगों के सोचने व्यवहार और महसूस करने में देखा आता है। इसकी वजह से अन्य लोगों का उनकी स्थिति को समझ पाना मुश्किल हो जाता है।

By Vineet SharanEdited By: Published: Sat, 13 Mar 2021 08:08 AM (IST)Updated: Sat, 13 Mar 2021 08:12 AM (IST)
Stay Home Stay Empowered: क्या आपका मूड पल-पल बदलता है? आप हो सकते हैं बाईपोलर डिसऑर्डर के शिकार
बाईपोलर डिसऑर्डर को चार श्रेणियों में बांटा जाता है- बाईपोलर1, बाईपोलर 2, साइक्लोथाइमिक डिसऑर्डर या बाईपोलर डिसऑर्डर।

नई दिल्ली, जेएनएन। कुछ दिनों पहले असम में कामिनी की मौत का मामला आया था। तफ्तीश के बाद सामने आया कि कामिनी की मौत की वजह बाईपोलर अफेक्टिव डिसऑर्डर (बीपीएडी) थी। देश में तकरीबन 2 से 4 प्रतिशत लोग इस बीमारी के शिकार हैं। इस मर्ज में व्यक्ति का मूड तेजी से बदलता है। कामिनी के माता-पिता का कहना था कि पिछले कुछ सालों से उनकी बेटी के व्यवहार में बदलाव दिख रहा था।

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उनका कहना था कि कामिनी एक होनहार छात्रा थी, लेकिन लंबे समय तक किसी एक गतिविधि में फोकस नहीं कर पाती थी। पढ़ाई में होशियार थी। बारहवीं के बोर्ड में उसके 94 प्रतिशत अंक थे। इसके बाद उसने दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में साइकोलॉजी (ऑनर्स) विषय में दाखिला लिया। उसका इस कोर्स में मन नहीं लगा और उसने इसे छोड़ दिया। अब उसकी इच्छा एयरहोस्टेस का कोर्स ज्वॉइन करने की थी। कुछ दिनों बाद उसका इससे भी रूझान कम हो गया। इस दौरान कामिनी के माता-पिता उसे मनोचिकित्सक के पास ले गए। परीक्षण के बाद मालूम चला कि कामिनी बीपीएडी की शिकार हैं। कुछ महीनों के बाद उसका रुझान होटल मैनेजमेंट की तरफ हो गया और उसने बेंगलुरू के एक संस्थान में दाखिला ले लिया। कोर्स खत्म होने के बाद उसे एक बड़े होटल में नौकरी मिल गई। और फिर ड्रग के ज्यादा सेवन की वजह से कामिनी की मौत हो गई। मौजूदा व्यस्त जीवनशैली में कई लोग बाईपोलर मूड डिसऑर्डर के शिकार होने लगे हैं, लेकिन परेशानी की बात है कि वे इसे पहचान नहीं पाते, जिसकी वजह से कई बार परेशानी ज्यादा बढ़ जाती है।

बाईपोलर डिसऑर्डर

बाईपोलर डिसऑर्डर के शिकार व्यक्ति का मूड जल्दी-जल्दी बदलता है। एकदम से खुश हो जाता है, तो एकदम से अवसाद की अवस्था में चला जाता है। खुशी और दुख दोनों ही अवस्थाएं सामान्य नहीं होती हैं। खुशी की इस अवस्था को ‘मेनिक’ कहा जाता है।

बाईपोलर डिसऑर्डर को चार श्रेणियों में बांटा जाता है- बाईपोलर1, बाईपोलर 2, साइक्लोथाइमिक डिसऑर्डर या बाईपोलर डिसऑर्डर।

बाईपोलर डिसऑर्डर पुरुषों और महिलाओं दोनों को प्रभावित करता है। चूंकि यह दिमाग के फंक्शनों को प्रभावित करता है, जिससे इसका असर लोगों के सोचने, व्यवहार और महसूस करने में देखा आता है। इसकी वजह से अन्य लोगों का उनकी स्थिति को समझ पाना मुश्किल हो जाता है।

लक्षण

मैनिया की स्थिति

- तेजी से बोलना और विचारों का आना

- ऊर्जा का स्तर तेजी से बढ़ना

- नींद कम आना

-मूड का उठना और ज्यादा आशावादी होना

-शारीरिक और मानसिक गतिविधियों में सक्रियता

-आक्रामक व्यवहार

-चिड़चिड़ा स्वभाव हो जाना

-ध्यान केंद्रित करने में मुश्किल आना

-गलत फैसले लेना, खराब ड्राइविंग करना

-खुद को सीमा से अधिक तवज्जो देने लगना

-डिप्रेशन की स्थिति

-सामान्य गतिविधियों में कमी होना

-आलसी होना और ऊर्जा में कमी

-लंबे समय तक उदासी की अवस्था

-ज्यादा नींद आना या बेचैनी के कारण नींद नहीं आना

-ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत

-किसी कार्य में खुशी महसूस न होना

-भूख में कमी या ज्यादा खाना

-गुस्सा, चिंता और बेचैनी

-विचार शून्यता या आत्महत्या

सामान्यत: वयस्कों में ये स्थिति एक हफ्ते से लेकर और एक महीने तक रहती है। हालांकि यह इससे कम भी हो सकती है। मेनिक और डिप्रेशन की स्थिति अनियमित होती है और इसका पैटर्न भी समान नहीं होता। कहने का आशय ये है कि हमेशा इसके लक्षण समान नहीं होते हैं।

साइड इफेक्ट

बाईपोलर डिसऑर्डर की वजह से कुछ लोगों में ड्रग्स और अल्कोहल की लत लग जाती है, लेकिन बाईपोलर डिसऑर्डर से ग्रसित लोगों के लिए शराब और ड्रग्स जहर साबित होते हैं और उनसे व्यक्ति की स्थिति को ज्यादा खराब हो जाती है, जिससे डॉक्टर के लिए उनका उपचार करना अधिक मुश्किल भरा हो जाता है।

बाईपोलर डिसऑर्डर का वैज्ञानिक पक्ष

हालांकि, बाईपोलर मूड डिसऑर्डर का अब तक कोई सर्वमान्य वैज्ञानिक हल नहीं दिया गया है। लेकिन ज्यादातर वैज्ञानिक इसके लिए बायोकेमिकल, जेनेटिक और माहौल को जिम्मेदार मानते हैं। ऐसा दिमाग के रसायनों (न्यूरोट्रांसमीटर) में असंतुलन की वजह से होता है। न्यूरोट्रांसमीटर में असंतुलन की वजह से मूड को नियंत्रित करने वाला सिस्टम गड़बड़ा जाता है। वहीं इसके लिए जीन भी प्रमुख कारक होते हैं। अगर किसी नजदीकी को बाईपोलर डिसऑर्डर है तो किसी व्यक्ति को ये होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है। इसका मतलब ये भी नहीं निकालना चाहिए कि अगर आपके नजदीकी को बाईपोलर डिसऑर्डर है तो आपको भी ये हो जाएगा, ऐसा नहीं है। वहीं माहौल को भी मनोवैज्ञानिक मूड डिसऑर्डर के लिए जिम्मेदार मानते हैं। परिवार में किसी व्यक्ति की मौत, माता-पिता का तलाक और कई अन्य दर्दनाक हादसों की वजह से व्यक्ति इसका शिकार हो जाता है। ब्रेन की संरचना में डिफेक्ट की वजह से बाईपोलर डिसऑर्डर होता है। कुछ अध्ययनों में ये सामने आया है कि मेंडुला, प्रीफ्रंटल कार्टेक्स और हिप्पोकैंपस में गड़बड़ी की वजह से ऐसी समस्या होती है।

उपचार

बाईपोलर मूड डिसऑर्डर को पहचान कर इसका उपचार किया जा सकता है। वयस्कों में इस डिसऑर्डर के लक्षण पता करना ज्यादा मुश्किल नहीं है। बच्चों और टीएनजर्स में इसके लक्षण वयस्कों की तरह नहीं होते हैं, ऐसे में इनमें लक्षण पहचानने में दिक्कत आती है। उपचार करने से पहले टीएनएजर्स की वर्तमान और भूतकाल के अनुभवों की पड़ताल की जाती है। इसके अलावा परिवार के सदस्य और दोस्तों से भी व्यक्ति के व्यवहार के बारे में जानकारी ली जाती है। कई बार टीएनजर्स में इसे पोस्ट ट्राउमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर, अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर जैसा समझ लिया जाता है, जिससे इसके ईलाज में मुश्किलें आती है। उपचार मुख्यत: व्यावहारिक लक्षणों और संकेतों के आधार पर किया जाता है। बाद में टेस्ट किए जाते हैं।

सीटी स्कैन ब्रेन बेंट्रीसिल्स (जहां सेरेब्रोस्पाइनल द्रव्य एकत्रित होता है) का बड़ा रूप दिखाता है।

ब्राइट स्पॉट को दिमाग के एमआरआई द्वारा देखा जा सकता है। मिशीगन विश्वविद्यालय में हुए एक अध्ययन में सामने आया कि बाईपोलर मूड डिसऑर्डर वाले लोगों में रसायन का स्राव करने वाली दिमागी कोशिकाओं की संख्या आम लोगों की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा होती है।

इसके अलावा उनके दिमाग में कैल्शियम या कॉर्टीसोल (एड्रीनल ग्रंथि द्वारा स्रावित स्ट्रेस हार्मोन) की अधिकता होती है। दिमाग के सेल रिसेप्टर में असामान्यता देखने में आती है।

ऐसे होता है ईलाज

मूड स्टेबलाइजर का चयन करते वक्त व्यक्ति की उम्र, उसका वजन, डेमोग्राफिक प्रोफाइल, पारिवारिक हिस्ट्री, दवाई का प्रभाव और मेटाबोलिक, एंडोक्राइन और कार्डियोवॉस्कुलर प्रोफाइल देखा जाता है। खुराक की मात्रा निश्चित करने से पहले व्यक्ति का मेडिकल प्रोफाइल जांचा जाता है। दवाई का प्रभाव जांचने के लिए व्यक्ति का ईसीजी, डायबिटीज और थॉयरायड टेस्ट कराया जाता है। मूड को स्थिर रखने के लिए दो से तीन साल तक दवाई की जाती है। तकरीबन आधा आराम शुरुआती छह महीनों में मिल जाता है। बाईपोलर डिसऑर्डर और थॉयरायड आपस में जुड़े होते हैं।

जीवनशैली है जिम्मेदार

ज्यादातर स्थितियों में इसके लक्षणों को पहचाना नहीं जाता है। नौकरी में व्यस्तता, परेशानी, वैवाहिक समस्याओं, स्टॉक मार्केट में हताशा, प्रॉपर्टी के झगड़ों और बच्चों से विवाद जैसी परेशानियों की वजह से बाईपोलर डिसऑर्डर की समस्याएं होती हैं।

मशहूर हस्तियों भी रही हैं इस बीमारी के शिकार

बॉक्सर माइक टायसन, अभिनेता रॉबर्ट डाउनी और वेन डेमे, लेखक विर्जीनिया वोल्फ भी बाईपोलर डिसऑर्डर के शिकार थे।

मल्टीपल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर

मल्टीपल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर मुख्यत: किसी सदमे या बचपन में हुई किसी दुर्घटना की वजह से होता है। जब लोग लंबे समय से सदमे से उबर नहीं पाते हैं, तो यह इस बीमारी की वजह बनता है। अक्सर लोग इस बीमारी को सिजोफ्रेनिया से जोड़कर देखते हैं। ध्यान रखने वाली बात है कि ये दोनों बीमारियां पूरी तरह अलग हैं। फिल्म और कहानियों में मल्टीपल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर के मरीजों को खूंखार किस्म का दिखाया जाता है, जबकि वास्तविकता इससे पूरी तरह अलग होती है।

लक्षण : मल्टीपल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर में लोगों को समय का ज्ञान नहीं होता है, उन्हें ये एहसास तक नहीं होता है कि समय बीत चुका है। इसके अलावा इस बीमारी के प्रमुख लक्षण डिप्रेशन, फोबिया, संशय में पड़ना, बेचैनी, आत्महत्या करने, नशे के लती बन जाते हैं। इसके अतिरिक्त मल्टीपल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर के शिकार लोग अपनी त्वचा काट लेते हैं। उन्हें शरीर में तेज दर्द की शिकायत होती है, साथ ही इटिंग डिसऑर्डर और सिरदर्द होने की दिक्कतें भी होती है।

इलाज : मल्टीपल पर्सनैलिटी डिसऑर्डर के इलाज की प्राथमिक चिकित्सा थैरेपी है। इस बीमारी के ट्रीटमेंट के लिए प्ले थैरेपी, टॉक थैरेपी, हिप्नोसिस थैरेपी का प्रयोग किया जाता है। सामान्यत: मनोचिकित्सक इस रोग के इलाज के लिए मेडिकेशन को तरजीह नहीं देते है। इलाज के दौरान ये कोशिश की जाती है, कि व्यक्ति वास्तविक जीवन को सदमे से जोड़कर न देखें। थैरेपी एक लंबी प्रक्रिया है, ऐसे में इस बीमारी के इलाज में लंबा समय लग जाता है। क्लीनिकल रिसर्च से जुड़े लोग भी ये ताकीद करते हैं कि अगर लगातार थैरेपी कराई जाए, तो इस बीमारी को सही किया जा सकता है। 


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