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मेनोपॉज़ के दौरान होने वाले शारीरिक और मानसिक बदलावों का इस तरह से करें इलाज

अधिकतर स्त्रियां मेनापॉज़ को युवावस्था का अंत समझ कर उदासी से घिर जाती हैं। खास उम्र के बाद शरीर में आने वाला यह बदलाव स्वाभाविक है। इसके बारे में पूरी जानकारी के लिए पढ़ें यह लेख।

By Priyanka SinghEdited By: Published: Thu, 07 Nov 2019 08:41 AM (IST)Updated: Thu, 07 Nov 2019 08:41 AM (IST)
मेनोपॉज़ के दौरान होने वाले शारीरिक और मानसिक बदलावों का इस तरह से करें इलाज
मेनोपॉज़ के दौरान होने वाले शारीरिक और मानसिक बदलावों का इस तरह से करें इलाज

उम्र के चौथे दशक में प्रवेश करने बाद अधिकतर स्त्रियां मेनोपॉज़ के बारे में सोच कर चिंतित और सशंकित रहने लगती हैं। भारत में मेनापॉज़ की औसत आयु लगभग 48 से 50 वर्ष के बीच मानी जाती है। हालांकि आज की तनावग्रस्त जीवनशैली की वजह से युवतियों में अर्ली मेनापॉज़ के भी लक्षण नज़र आने लगे हैं अगर किसी स्त्री को 40 से पहले ही मासिक आना बंद हो जाएं या 52 वर्ष के बाद भी उसे पीरियड्स आते रहें तो यह असामान्य स्थिति मानी जाती है। ऐसे में स्त्री-रोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।

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क्या हैं लक्षण

मेनोपॉज़ के लगभग एक साल पहले से ही पीरियड्स में अनियमितता जैसे लक्षण नज़र आने लगते हैं। खास उम्र के बाद स्त्री के शरीर में ओवरी की कार्यक्षमता कमज़ोर होने लगती है। साथ ही उसके शरीर मेें एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन नामक फीमेल हॉर्मोन के स्राव में कमी आने लगती है। इससे मासिक चक्र की अवधि घटने लगती है और ब्लीडिंग भी कम हो जाती है। आमतौर अगर किसी स्त्री को एक वर्ष तक पीरियड्स न आएं तो यह इस बात का संकेत है कि मेनोपॉज़ आ चुका है। मेनोपॉज़ के दौरान आमतौर पर स्त्रियों में जो शारीरिक-मानसिक बदलाव नज़र आते हैं, वे इस प्रकार हैंः- 

1. हॉट फ्लैशेज़

शरीर के तापमान में असामान्य बदलाव यानी सर्दी के मौसम में भी पसीना आना या बुखार जैसे लक्षण दिखाई देना। इस समस्या को हॉट फ्लैशेज़ कहा जाता है।

क्या करें: अपने कमरे का तापमान हमेशा ठंडा रखें। खानपान में गर्म और मसालेदार चीज़ों का इस्तेमाल न करें। चाय-कॉफी का सेवन सीमित मात्रा में करें। अधिक मात्रा में ठंडा पानी पीएं और सूती कपड़े पहनें।      

2. यूटीआई

मेनोपॉज़ के बाद स्त्रियों के यूरिनरी ट्रैक में शिथिलता आ जाती है। इससे उन्हें यूटीआई और यूरिनरी इनकॉन्टिजेंस यानी यूरिन के प्रेशर पर नियंत्रण न होना, खांसने पर यूरिन डिस्चार्ज होना जैसी समस्याएं परेशान करने लगती हैं।        

क्या करें: यूटीआई से बचाव के लिए पर्सनल हाईजीन का विशेष ध्यान रखें। डॉक्टर की सलाह पर किसी अच्छी कंपनी के इंटीमेट वॉश का इस्तेमाल करें। पब्लिक टॉयलेट के इस्तेमाल से पहले भी फ्लश ज़रूर चलाएं। ज्य़ादा से ज्य़ादा पानी पीएं। यूरिनरी इनकॉन्टिजेंस की समस्या से निबटने के लिए विशेषज्ञ से सीख कर केगल एक्सरसाइज़ करें। इससे वजाइना की मांसपेशियों में मज़बूती आती है। इससे यूरिन के प्रेशर को नियंत्रित करना आसान हो जाता है।        

3. ऑस्टियोपोरोसिस

खास उम्र के बाद बोन डेंसिटी कम होने की वजह से मामूली चोट लगने पर भी हड्डियों के टूटने की आशंका बढ़ जाती है। मेनोपॉज़ से पहले तक ऐस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन हॉर्मोन हड्डियों के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं लेकिन बाद में इनकी कमी से स्त्रियों की हड्डियां कमज़ोर पडऩे लगती हैं, जिससे अकसर उन्हें घुटनों और कमर में दर्द की समस्या होती है।

क्या करें: लो फैट मिल्क, पनीर और दही को अपनी डाइट में प्रमुखता से शामिल करें। इस उम्र में मांसपेशियों की मज़बूती के लिए प्रोटीन का सेवन भी ज़रूरी है। दाल, सोयाबीन और स्प्राउट्स का नियमित रूप से सेवन करें। अगर नॉन वेजटेरियन हैं तो चिकेन और अंडे की सफेदी का सेवन भी फायदेमंद साबित होगा। नियमित एक्सरसाइज़ और मॉर्निंग वॉक करें। अपनी क्षमता को ध्यान में रखते हुए साइक्लिंग और जॉगिंग भी कर सकती हैं।         

4. दिल का रखें खयाल

मेनोपॉज़ के बाद एस्ट्रोजेन के अभाव में स्त्रियों के ब्लड में कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड की मात्रा अधिक हो जाती है, जिसका असर ब्लड वेसेल्स पर पड़ता है। खासतौर पर हार्ट की ब्लड वेसेल्स के सिकुडऩे से एंजाइना पेन और हार्ट अटैक की आशंका हो सकती है।    

क्या करें: अपने भोजन में घी-तेल, मक्खन, मैदा, चीनी, नमक और मिर्च-मसालों का इस्तेमाल कम से कम करें। एल्कोहॉल और स्मोकिंग से दूर रहें। अपनी डाइट में हरी सब्जि़यों और फलों को प्रमुखता से शामिल करें। नियमित रूप से ब्लड प्रेशर और शुगर लेवल भी चेक करवाती रहें क्योंकि डायबिटीज़ और हाई ब्लडप्रेशर की समस्या अंतत: हार्ट अटैक के लिए जि़म्मेदार होती है।   

5. मन पर गहरा असर

मेनोपॉज़ के बाद ब्रेन की ब्लड वेसेल्स सिकुडऩे लगती हैं। इससे कमज़ोर याददाश्त, चिड़चिड़ापन और अनिद्रा जैसी समस्याएं भी देखने को मिलती हैं। मेनोपॉज़ के बाद ज्य़ादातर स्त्रियों को ऐसा लगता है कि यौन संबंध के मामले में अब वे पहले की तरह सक्रिय भूमिका नहीं निभा सकतीं। दरअसल इस दौरान एस्ट्रोजेन हॉर्मोन की कमी के कारण वजाइना में स्वाभाविक ल्यूब्रिकेशन ख़त्म हो जाता है। इससे इंटरकोर्स की प्रक्रिया थोड़ी तकलीफदेह हो जाती है। 

क्या करें: हमेशा पॉजि़टिव नज़रिया अपनाएं और उदासी दूर करने के लिए अपनी रुचि से जुड़े कार्यों में स्वयं को व्यस्त रखें। इसके अलावा सेक्स संबंधी समस्याओं से बचने के लिए सहवास से पहले वाटर बेस्ड जेली का इस्तेमाल करें, फोरप्ले में ज्य़ादा वक्त बिताएं।   

6. सौंदर्य संबंधी समस्याएं

एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन हॉर्मोन की कमी के कारण कुछ स्त्रियों की त्वचा पतली और रूखी होने लगती है। इससे चेहरे और हाथों पर झुर्रियां नज़्रर आने लगती हैं, बाल झडऩे लगते हैं, कुछ स्त्रियों को चेहरे पर अवांछित बालों की भी समस्या झेलनी पड़ती है।    

क्या करें: आजकल कई ऐसे तरीके मौज़ूद हैं, जो झुर्रियों और अवांछित बालों की समस्या से छुटकारा दिला सकते हैं।   

अंत में सबसे ज़रूरी बात साल में एक बार ब्रेस्ट की मेमोग्राफी, पेल्विक अल्ट्रासाउंड, पेपस्मीयर टेस्ट ज़रूर करवाएं। यह बात हमेशा याद रखें कि मेनोपॉज़ युवावस्था का अंत नहीं बल्कि प्रौढ़ावस्था का आरंभ है।

डॉ. साधना काला (वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ, अपोलो क्रेडिल हॉस्पिटल, दिल्ली) 


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