लकड़ी के धुएं से डैमेज हो रहे भारतीयों के फेफड़े, अमेरिका में रेडियोलॉजिकल सोसाइटी ने की रिसर्च
अमेरिका में रेडियोलॉजिकल सोसायटी की मीटिंग में पेश की गई फेफड़ों पर रिपोर्ट। जिसमें बताया गया कि लकड़ी जलाकर खाना बनाने वाले भारतीयों के फेफड़े जल्द डैमेज होते हैं। ऐसे लोगों के फेफड़ों में हवा भर जाती है जिसे ट्रैपिंग कहते हैं।
लकड़ी और दूसरे अधिक धुआं पैदा करने वाले ईंधन को जलाते हैं तो आप फेफड़े डैमेज कर रहे हैं। यह अलर्ट वैज्ञानिकों ने जारी किया है।
नॉर्थ अमेरिका में रेडियोलॉजिकल सोसायटी की एनुअल मीटिंग में वैज्ञानिकों ने कहा, सांस के जरिए बड़ी मात्रा में धुएं में मौजूद प्रदूषण फैलाने वाले तत्व और बैक्टीरियाल टॉक्सिन सीधे तौर पर फेफड़ों में पहुंच रहे हैं और डैमेज कर रहे हैं। भारतीयों पर हुई रिसर्च में यह बात सामने आई है।
40 लाख लोगों की हुई मौत
मीटिंग में फेफड़ों पर रिपोर्ट पेश की गई और बताया गया कि हर साल ऐसे बायोमास स्कूल फ्यूल के जलने से दुनियाभर में 40 लाख मौतें हो रही हैं। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अभिलाष किजकि कहते हैं। ऐसे मामले सामने आने की दो वजह हैं, पहली, लोग आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं और दूसरी, धुएं से डैमेज होते फेफड़ों की जानकारी से बेखबर है। दुनियाभर में 300 करोड़ लोग इसी तरह खाना बनाते हैं।
23 भारतीयों पर की रिसर्च
लोवा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एरिक ए. हॉफमैन कहते हैं, हमने इसका पता लगाने के लिए 23 ऐसे भारतीयों को चुना जो लकड़ी जलाकर खाना बनाते हैं। इनमें घर में पॉल्यूशन का लेवल क्या है और इनके फेफड़ें की क्षमता जानने के लिए स्पाइरोमेट्री टेस्ट किया गया। एडवांस सीटी स्कैन के साथ रिसर्च में शामिल भारतीयों की सांस लेने और छोड़ने की क्षमता भी जांची गई।
कुछ इस तरह धुएं का होता है साइड एफेक्ट
- एलपीजी गैस का प्रयोग करने से मुकाबले जो लोग लकड़ी के धुएं के संपर्क में थे, उनमें प्रदूषण के खतरनाक तत्व काफी ज्यादा थे।
- ऐसे लोगों के फेफड़ों में हवा भरी हुई थी। इसे एयर ट्रैपिंग कहते हैं।
- ऐसा होने पर फेफड़ों में हवा जाना और बाहर निकलना आसान नहीं होता।
- डॉक्टर्स के मुताबिक, लगातार दूषित हवा से फेफड़े डैमेज हो जाते हैं।
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