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Stay Home Stay Empowered: जानें, गुस्से का मनोविज्ञान, कारण और असर

क्रोध एक प्राकृतिक भावना है। ईसा पूर्व 200 वर्षों से 200 ईसवी तक के काल के बीच लिखे गए नाट्य शास्त्र में क्रोध को एक ‘रस’या नैसर्गिक भाव कहा गया है।

By Vineet SharanEdited By: Published: Tue, 18 Aug 2020 08:40 AM (IST)Updated: Tue, 18 Aug 2020 08:42 AM (IST)
Stay Home Stay Empowered: जानें, गुस्से का मनोविज्ञान, कारण और असर
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नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। क्रोध एक प्राकृतिक भावना है। ईसा पूर्व 200 वर्षों से 200 ईसवी तक के काल के बीच लिखे गए नाट्य शास्त्र में क्रोध को एक ‘रस’या नैसर्गिक भाव कहा गया है। अमेरिकन फिजियोलॉजिकल एसोसिएशन ने ‘गुस्से को विपरीत परिस्थितियों के प्रति एक सहज अभिव्यक्ति कहा है। इस उग्र प्रदर्शन वाले भाव से हम अपने ऊपर लगे आरोपों से अपनी रक्षा करते हैं। लिहाजा अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए क्रोध भी जरूरी होता है।

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आधुनिक जीवनशैली किसी भी व्यक्ति को तनाव में धकेल सकती है। अब जबकि हजारों लोगों को अपने रोजगार और घरों से हाथ धोना पड़ रहा है और यहां तक कि सेवानिवृत्त लोगों की सुरक्षित राशियां भी उथल-पुथल के कारण गायब होती जा रही हैं, इस लिहाज से इस काल को ‘ऐज ऑफ एंग्जाइटी’ या व्यग्रता का युग कहा जा सकता है। इसके विपरीत, यह भी सच है कि कुछ लोग चाहे उनकी आर्थिक या पारिवारिक स्थिति कैसी भी हो, हमेशा तनाव में रहते हैं। दरअसल, वे पैदाइशी तनावग्रस्त होते हैं।

हार्वर्ड के मनोविज्ञान के एक प्रोफेसर जेरोम कगान और उनके सहयोगियों ने गत बीस वर्षों से बचपन से लेकर ऐसे हजारों लोगों का अध्ययन किया है। इस दिशा में चार विस्तृत शोध नतीजे सामने आ रहे हैं, जिनमें कगान की तरफदारी में दो हार्वर्ड से और दो मैरीलैंड यूनिवर्सिटी से हैं, जो कगान के ही एक पूर्व विद्यार्थी नेथन फॉक्स की तरफदारी भी करते हैं। मामूली बदलावों के अतिरिक्त दोनों अध्ययन एक ही नतीजे पर पहुंचे हैं। नतीजा यह है कि बच्चों में अपना पैदाइशी स्वभाव होता है और 15 से 20 प्रतिशत बच्चे नए लोगों और परिस्थितियों के प्रति अलग व्यवहार करते हैं। ऐसा व्यवहार करने वाले बच्चे अधिक तनावग्रस्त रहते हैं।

इन अध्ययनों में ये भी पाया गया कि बच्चों में स्वभाव बेशक एक सा हो, लेकिन उनका बर्ताव अलग हो सकता है। कोई व्यक्ति किसी अन्य के तेज-तर्रार व्यवहार को बेशक तनावग्रस्त होने की संज्ञा दे, लेकिन दूसरे के लिए यह व्यवहार रोचक हो सकता है। कुछ व्यक्ति अपनी बुरी आदतों को दबाकर आराम से रहते हैं, लेकिन अन्य इसकी परवाह नहीं करते।

बेचैनी और तनाव भी बढ़ाते हैं क्रोध

तनाव डर से अलग होता है। इनसान या किसी अन्य जीवित प्राणी को डर उसके सामने मौजूद किसी चीज से लगता है। इसके विपरीत तनाव में व्यक्ति अपनी निर्णय करने की क्षमता को लेकर उलझा रहता है। व्यक्ति इस दौरान ‘तब क्या होगा’के भंवर में फंसकर रह जाता है। लेकिन जब डर कामकाज से उलझने लगता है, तो तनाव ‘क्लीनिकल एनग्जाइटी डिसॉर्डर’का रूप ले लेता है, जिसके अपने कई रूप हैं, जिनमें पैनिक, सोशल एंग्जाइटी, फोबिया, ऑब्सेसिव-कम्पलसिव डिसऑर्डर, पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस और सबसे ऊपर एंग्जाइटी डिसॉर्डर हैं। चिंता दिमाग में एमिग्डला में अत्यधिक हलचल के कारण उत्पन्न होता है, जो दिमाग के बीच का हिस्सा होता है। दिमाग का यह हिस्सा नएपन और किसी खतरे का सामना होने की सूरत में सजग होता है। अपने साधारण कामकाज के दौरान एमिग्डला नए वातावरण के प्रति शारीरिक क्रियात्मक उत्तर देता है। इस क्रिया में भावनात्मक अनुभवों की स्पष्ट यादें होती हैं। लेकिन कगान के अध्ययनों के मुताबिक, विशिष्ट मानसिक बनावट वाले लोगों में एमिग्डला अतिक्रियात्मक होता है।

क्या आपको गुस्से की समस्या है?

गुस्से को पहचानने की जरूरत है। लोगों को टाइप ए और टाइप बी पर्सनैलिटी के आधार पर पहचानें। टाइप ए पर्सनैलिटी के लोग वे होते हैं, जिनकी किसी वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा ज्यादा तीव्र होती है। ऐसे लोगों को गुस्सा बहुत जल्दी आता है, वे जल्द ही धैर्य खो बैठते हैं। आप भी इस श्रेणी में आ सकते हैं, अगर आपमें ये बातें हैं-

-धैर्य की कमी

- खाना जल्दी खाना

- बेचैनी

- काम-काज के दौरान चिड़चिड़ापन

-गुस्से के दौरान खुद को नुकसान पहुंचाना

ये हैं गुस्से के प्रमुख कारण

नींद

सोना अचेतन की अवस्था होती है। सोने से शरीर के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। सोने के दौरान लगातार इस्तेमाल होने वाले मांसपेशियां और जोड़ रिकवर होते हैं। रक्तचाप कम होता है और हृदय गति कम होती है। उसी दौरान शरीर में ग्रोथ हार्मोन का स्राव होता है। इस दौरान ही दिमाग रोजमर्रा की सूचनाओं को एकत्रित करने का काम करता है। तनाव, लंबे समय तक कार्य, जीवनशैली के कारण सोने की समस्याएं होती हैं। बिना पूरी नींद के दिमाग और शरीर सही तरीके से फंक्शन नहीं कर पाता। पर्याप्त नींद न लेने से कई तरह की बीमारियां होती हैं। स्वस्थ रहने के लिए पर्याप्त नींद और आराम आवश्यक है।

पूरी नींद लें

- कॉफी, चाय, कोला, चॉकलेट का सेवन सीमा में करें। निकोटीन, अल्कोहल और कैफीन से आपकी नींद पूरी नहीं हो पाती।

- अपने दिमाग और शरीर को रिलैक्स होने का समय दें।

- मेडिटेशन करें, किताब पढ़ें, संगीत सुनें और एरोमाथैरेपी करें।

- सोने और जागने की दिनचर्या बनाएं।

शारीरिक अवस्था- कुछ स्थितियां जैसे कि एडीडी (एडिशन डेफिसिट डिअसॉर्डर)की वजह से लोग चिड़चिड़े और गुस्सैल हो जाते हैं। हार्मोनल असुंतलन और हृदय रोगों की वजह से भी लोग जल्दी आपा खो बैठते हैं।

अकेलापन

किसी नई जगह पर अकेले रहना गुस्से का एक कारण होता है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जिन लोगों के दोस्त कम होते हैं, सामान्यत: उन्हें गुस्सा जल्दी आता है। ऐसे बच्चे जो कि न्यूक्लियर फैमिली में पैदा होते हैं और उनके माता या पिता में से कोई एक मानसिक रूप से पीड़ित होता है। मानसिक अनियमितता की वजह से वे गुस्सैल हो जाते हैं। वे गाली देने लगते हैं, भाई-बहन से मारपीट करने लगते हैं और चीजों को तोड़ते हैं। मनोचिकित्सकों का कहना है कि अगर आपका बच्चा गुस्सा ज्यादा करता है, मतलब वह कहीं न कहीं हताश है।

ज्यादा टीवी देखना

हिंसक प्रोगाम देखना, क्राइम शो आदि बच्चों के मन-मस्तिष्क को पूरी तरह प्रभावित करते हैं। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि कई बार युवा हिंसा के प्रति संवेदनशील नहीं रहते और उन्हें किसी कार्य का प्रतिरोध करने के लिए गुस्सा नाजायज नहीं लगता।

महत्वाकांक्षा

कॉरपोरेट दुनिया ने प्रगति के दो पैमाने बना दिए हैं- पहला प्रदर्शन और दूसरा कम समय में काम को बेहतर तरीके से कर सकने की क्षमता। इस पैरामीटर पर खरा उतरने की कोशिश में कई बार लोग हताश और गुस्सैल प्रवृत्ति के हो जाते हैं। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि दूसरों की भावनाओं की कद्र न करना, लोगों के अभिवादनों के प्रति संवदेनशीलता कम होना, भौतिक सुख-साधनों को पाने का लालच ज्यादा बढ़ना हमेशा गुस्से के कारण बनते हैं। आज के दौर में कई प्रोफेशन ऐसे हो गए हैं, जिनमें कई बार उपभोक्ताओं के गुस्से का सामना करना पड़ता है और उनकी सही-गलत बातों को मुस्कुराकर सुनना पड़ता है। ऐसे में कई बार कुछ न कह सकने की हताशा गुस्से में परिणति हो जाती है।

गुस्सा बिगाड़ता है सेहत

गुस्सा वातावरण को तो खराब करता ही है, यह आपकी सेहत को भी नुकसान पहुंचाता है। गुस्सैल लोगों के फेफड़ों का फंक्शन खराब हो जाता है, साथ ही इम्यून सिस्टम पर भी बुरा असर पड़ता है। इसकी वजह से आप तनाव से होने वाली बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। गुस्सैल व्यक्ति खुद को तो नुकसान पहुंचाता ही है, अपने आसपास के माहौल को भी बिगाड़ता है। एक बुरा पहलू ये है कि गुस्सा करने वाले व्यक्ति को इस बात का इल्म तक नहीं होता कि वह गुस्से में है, लेकिन सुखद पक्ष ये है कि गुस्से को नियंत्रित और मैनेज किया जा सकता है।

गुस्से पर करें काबू

- गुस्से पर नियंत्रण रखने के लिए बेहतर है कि आप सकारात्मक और क्रिएटिव काम करें

-गुस्सा होने पर किसी म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट को बजाएं

-कमरे को साफ करें, पिक्चर देखने जाएं, थोड़ा घूम आएं

- कुछ भी ऐसा करें, जिससे आपका ध्यान कुछ देर के लिए बंट जाएं

-मजाक तनाव दूर करने का सबसे बेहतर तरीका है।

-शोध दर्शाते हैं कि तनाव को दूर करने के लिए पानी पीना चाहिए। यह तनाव को दूर करता है

- समय पर खाना खाने से, कसरत करने से और पर्याप्त आराम करने से गुस्सा कम आता है

- योगा, मेडिटेशन और कांगनेटिव तकनीक भी तनाव और गुस्से को दूर करने में कारगर है

दिमाग को ठंडा रखें

अक्सर गुस्से के दौरान किसी को समझाने के लिए कहा जाता है कि अपने दिमाग को ठंडा रखो। हाल ही एक शोध में एक बात सामने आई है कि अगर दिमाग को ठंडा रखा जा सके तो हृदय और पक्षाघात के खतरों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। ब्रिटेन के एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के पीएचडी छात्र हैरिस ऐसे ही शोध में लगे हुए हैं। उन्होंने ऐसा कूल हेलमेट डिजाइन किया है, जो कि हाइपरथैमिया को प्रेरित करने के काम आता है। आप भी इस बात से वाकिफ होंगे कि माथे पर ठंडा कपड़ा रखने से सिरदर्द में आराम मिलता है।

शोध में कहा गया है कि 4 डिग्री सेंटीग्रेट से 33 डिग्री सेंटीग्रेट तक दिमाग को ठंडा रखने से दिमागी कोशिकाओं के मेटाबॉलिज्म का स्तर कम हो जाता है, ऐसे में जब खून की सप्लाई कम हो रही होती है तो उन मौकों पर ये दिमागी कोशिकाओं की ऑक्सीजन की पूर्ति करने की मांग को कम करता है।

हैरिस ने अपनी टीम के साथ ऐसा हेलमेट डिजाइन किया है, जो दिमाग को ठंडा रखता है। इस हेलमेट में नायलॉन की दो शीट लगी हुई है, जो कि पूरे सिर को कवर रखती है। दिमाग को ठंडा रखने के लिए और कई तकनीक ईजाद की गई है। इन सभी तकनीकों का फायदा ये है कि ये बेहद आसान हैं। एडिनबर्ग के मनोचिकित्सक रिचर्ड लॉयन कहते हैं कि इस बारे में अभी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि यह तकनीक फायदेमंद है, लेकिन इस तकनीक के सकारात्मक परिणाम देखने में आए हैं। 


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