DATA STORY: वैक्सीन ने दुनियाभर की कई कितनी बीमारियों का किया खात्मा
पहली वैक्सीन बनाने का श्रेय डॉ एडवर्ड जेनर को जाता है जिन्होंने स्मॉल पॉक्स के लिए वैक्सीन 14 मई 1796 को बनाई थी। जेनर ने वैक्सीन बनाने से पहले दूध दोहने वाले उन लोगों पर जांच की जिनको काऊपॉक्स के बाद चेचक नहीं हुआ था।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/पीयूष अग्रवाल। दुनिया के हर आदमी को इस वक्त वैक्सीन को लेकर चिंता और उत्सुकता है। कोरोना वायरस की प्रभावी वैक्सीन बनाने के लिए 8 बिलियन डॉलर विश्व के 40 देशों में खर्च हो रहे हैं। अच्छी बात यह है कि दुनियाभर से वैक्सीन को लेकर आ रही खबरें राहत देने वाली हैं। माना जा रहा है कि 2021 के शुरुआती महीनों में भारत में भी वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी। वैक्सीन को लेकर लोगों में ललक यह बताने को पर्याप्त है कि वैक्सीन किस तरह से हमारे लिए जीवनरक्षक साबित हो सकती है। फाइजर, ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका और मॉडर्ना वैक्सीन के तीसरे ट्रायल की रिपोर्ट्स आ गई हैं। वहीं, भारत में बायोटेक कंपनी की कोवैक्सीन के तीसरे फेज का ट्रायल भी शुरू हो चुका है और आने वाले समय में उसका डाटा भी सामने आ जाएगा।
वैक्सीन लंबे समय से हमारे जीवन का हिस्सा रही है। पहली वैक्सीन बनाने का श्रेय डॉ एडवर्ड जेनर को जाता है, जिन्होंने स्मॉल पॉक्स के लिए वैक्सीन 14 मई, 1796 को बनाई थी। जेनर ने वैक्सीन बनाने से पहले दूध दोहने वाले उन लोगों पर जांच की, जिनको काऊपॉक्स के बाद चेचक नहीं हुआ था। इस जांच में एडवर्ड जेनर ने पाया कि काऊपॉक्स के कुछ वायरस चेचक से बचाव में प्रभावी रूप से काम करते हैं।
भारत ने 16 साल तक अथक प्रयास करके पोलियो टीकाकरण अभियान चलाया और पोलियो पर जीत हासिल की। तब दुनिया ने समझा और जाना कि भारत ने कितनी बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है। भारत में पोलियो वायरस पर निगरानी पूरे वैक्सीनेशन कार्यक्रम की रीढ़ थी।
रूस के रहने वाले हाफ्किन ने भारत में 22 साल बिताए थे और उन्होंने सरकारी ग्रांट मेडिकल कॉलेज एवं सर जे जे अस्पताल की इमारत में ‘बुबोनिक प्लेग’ के टीके पर अनुसंधान किया था। इस टीके ने लाखों लोगों की जिंदगी बचाई। उन्हें हैजा (कॉलरा) का टीका बनाने का भी श्रेय जाता है।
इस तरह से बनती हैं वैक्सीन
जब रोगाणु शरीर में प्रवेश करता है तो शरीर उनसे लड़ने के लिए एंटी-बॉडीज बनाता है। स्वस्थ होने के बाद भी कुछ एंटीबॉडी शरीर में बनी रहती है और भविष्य में वह रोगाणु आने पर उसका मुकाबला करती है। शरीर की इसी खासियत के आधार पर वैक्सीन बनाई जाती है। शरीर में मरे हुए बैक्टीरिया या वायरस डालने से उनमें एंटीबॉडी तैयार हो जाती है और यह एंटीबॉडी संबंधित रोग के रोगाणु आने पर उन्हें नष्ट कर देती है।