Jagran Dialogues: कोरोना से बच्चे कितने हैं सुरक्षित और क्या है बच्चों के वैक्सीन की तैयारी, जानें डॉ. राकेश अग्रवाल से
Jagran Dialogues के लेटेस्ट एपिसोड में जागरण न्यू मीडिया के Executive Editor Pratyush Ranjan ने कोरोना से हमारे बच्चे कितने हैं सुरक्षित क्या है बच्चों के वैक्सीन की तैयारी? इसी मुद्दे पर जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (JIPMER) पुडुचेरी के निदेशक Dr. Rakesh Aggarwal से बातचीत की।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Jagran Dialogues: कोरोना महामारी की तीसरी लहर को लेकर पूरी दुनिया आशंकित है। इस लहर को लेकर ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है कि बच्चों के लिए यह खतरनाक साबित हो सकती है। इसके लिए दुनिया के सभी देश बच्चों की वैक्सीन यानी टीके की तैयारी में जुटे हुए हैं। विशेषज्ञों की मानें तो आने वाले महीने बेहद अहम हैं। इस दौरान सरकार द्वारा जारी कोरोना गाइडलाइन्स का पालन करें। अनावश्यक घर से बाहर न निकलें, घर से बाहर निकलते समय मास्क जरूर पहनें, मास्क पहनने के दौरान अपने चेहरे, नाक और मुंह को अच्छी तरह से ढकें, शारीरिक दूरी और साफ-सफाई का ख्याल रखें। अपनी बारी आने पर कोरोना वैक्सीन जरूर लगवाएं। अपने आसपास के लोगों को भी वैक्सीन लेने के लिए जागरुक करें। वहीं, बच्चों को स्कूल भेजते समय विशेष ध्यान रखें। बच्चों को कोरोना वायरस से संबंधित सभी जानकारी दें। उन्हें लंच बॉक्स, पानी आदि चीजें शेयर न करने की सलाह दें। साथ ही घर से बाहर शारीरिक दूरी का सख्ती से पालन और अनावश्यक चीजों को न छूने की भी हिदायत दें। अगर अनचाही चीजों को छू लेता है, तो तुरंत साफ पानी से हाथ धोने के लिए बताएं। इसके लिए बच्चों को सैनिटाइजर भी दें, ताकि घर से बाहर बच्चे नियमित अंतराल पर अपने हाथों को सैनिटाइज कर सकें। वहीं, वर्तमान समय में बच्चों की वैक्सीन ट्रायल यानी परीक्षण में है, तो वैक्सीन आने के बाद बच्चों को टीका जरूर लगवाएं। इन नियमों का पालन करने से संक्रमण का खतरा कम हो जाता है। इससे आप और आपके बच्चे सुरक्षित रह सकते हैं। हालांकि, माता-पिता और बच्चों के मन में कोरोना की तीसरी लहर और वैक्सीन को लेकर कई तरह के सवाल हैं। बच्चों के लिए वैक्सीन कब आएगी, यह बड़ा सवाल है।
Jagran Dialogues के लेटेस्ट एपिसोड में जागरण न्यू मीडिया के Executive Editor Pratyush Ranjan ने "कोरोना से हमारे बच्चे कितने हैं सुरक्षित, क्या है बच्चों के वैक्सीन की तैयारी? "इसी मुद्दे पर जवाहर लाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (JIPMER), पुडुचेरी के निदेशक Dr. Rakesh Aggarwal से बातचीत की। डॉ. राकेश अग्रवाल इंडियन मेडिकल साइंस का एक जाना माना नाम है। Jagran Dialogues की Covid-19 से जुड़ी सीरीज का आयोजन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के साथ मिलकर किया जा रहा है। आइए, इस वर्चुअल वार्ता को विस्तार से जानते हैं-
1. सवाल:- इंडियन काउंसिल फ़ॉर मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर ने फ़रवरी 2021 की अपनी सीरो रिपोर्ट में कहा था कि 25.3 फ़ीसद बच्चों में वायरस के एंटीबॉडी मौजूद थे। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो 25.3 फ़ीसद बच्चों को कोरोना संक्रमण हो चुका है। अगर पहली और दूसरी लहर के दौरान कोरोना संक्रमण के आंकड़ों और सीरो सर्वे के आंकड़ों को मिला कर देखा जाए तो कहा जा सकता है कि भारत में 40 फ़ीसद बच्चे कोरोना वायरस के संपर्क में आ चुके हैं। क्या इसका मतलब ये हुआ कि 60 फ़ीसद बच्चों को कोरोना संक्रमण का ख़तरा हो सकता है। क्या हम इस खतरे के लिए तैयार हैं-
जवाब:- डॉक्टर अग्रवाल ने आभार प्रकट करते हुए कहा कि जहां तक मेरी जानकारी है अगर हम नए सीरो सर्वे रिपोर्टों को देखें तो पता चलता है कि 40 प्रतिशत से बढ़कर से 65 प्रतिशत हो गया है। अगर हम मान लेते हैं कि 40 प्रतिशत बच्चे कोरोना संक्रमित हैं, और जिन 40 प्रतिशत बच्चों को कोरोना हो गया है। उनमें कितने बच्चों को गंभीर बीमारी हुई है, उनमें कितने बच्चों को आईसीयू में भर्ती होना पड़ा और उनमें कितने बच्चों को हमने खो दिया? अगर 40 प्रतिशत बच्चों में केवल उतनों को गंभीर बीमारी हुई, तो बाकी 60 प्रतिशत बच्चों को अगर संक्रमण हो भी, तो भी उनमें गंभीर बीमारी का खतरा बहुत कम है। उनमें से बहुत कम बच्चों को आईसीयू की जरूरत पड़ेगी। कोरोना महामारी का बुजुर्गों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अगर बुजुर्ग संक्रमित हो जाते हैं, तो यह गंभीर रूप अख्तियार कर लेती है। वहीं, बच्चों को होने पर यह खास बीमारी नहीं बनती है। इसकी संभावना कम है कि आगे चलकर कोरोना जल्दी से बदलेगा। इसके लिए मेरे हिसाब से बच्चों के लिए कोरोना वायरस से बहुत ज्यादा आशंकित होने की जरूरत नहीं है।
2. सवाल:- अगला सवाल अस्पतालों की सुविधा पर है-अगर इसकी जरूरत पड़ी, भारत में लगभग 30 करोड़ बच्चों में से लगभग 18 करोड़ के कोरोना से संक्रमित होने का डर है। इन 18 करोड़ में से अगर ये मान लिया जाए कि इन में से एक प्रतिशत को भी अगर अस्पताल में इलाज की ज़रूरत पड़ी, तो क्या इसके लिए हम तैयार हैं, क्योंकि बड़े शहरों को छोड़कर दूसरे शहरों में पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीआईसीयू) यानी बच्चों के आईसीयू नहीं हैं। और पीआईसीयू बेड, बड़ों की आईसीयू बेड से अलग होते हैं और बड़ों के आईसीयू बेड को कम समय में बच्चों के लायक़ बनाना आसान नहीं है। उदाहरण के तौर पर जो ऑक्सीजन मास्क बड़ों के लिए काम करता है, बच्चों में वो काम नहीं करेगा क्योंकि वो उनके मुंह के लिए फ़िट नहीं होगा-
जवाब:- इस सवाल के जबाव में डॉक्टर अग्रवाल ने कहा-अगर हम 40 प्रतिशत के आंकड़ों को देखते हैं, तो पता चलता है कि बहुत कम बच्चों को आईसीयू की जरूरत पड़ी है। अगर बाकी 60 प्रतिशत बच्चों को संक्रमण होता है, तो जितने बच्चों को आईसीयू में भर्ती करने की जरूरत पड़ेगी। उसके लिए हमारे पास पर्याप्त सुविधाएं हैं। उससे अधिक हमारे पास अस्पतालों में पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीआईसीयू) है। दूसरी लहर में भी आपने देखा होगा कि बच्चों के लिए आईसीयू की कमी महसूस नहीं हुई। बुजुर्गों की आईसीयू के लिए कमी महसूस हुई थी। जैसा कि मैंने आपको पहले भी बोला है कि नए सीरो सर्वे रिपोर्टों में यह आंकड़ा 65 प्रतिशत हो गया है। इसके लिए हमें बच्चों की पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीआईसीयू) के लिए परेशान नहीं होना चाहिए।
3. सवाल:- मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम क्या होता है और इसका खतरा बच्चों में कोरोना के दौर में ज्यादा बढ़ जाता है। इस बारे में बताएं-
जवाब:- ऐसे कई संक्रमण हैं, जिनमें संक्रमित होने के बाद शरीर के अंदर वायरस के खिलाफ इम्यून प्रतिक्रिया की वजह से शरीर के कुछ हिस्से या अंग को क्षति होती है। बात करें मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम की, तो संक्रमण से ठीक होने के बाद शरीर के कई अंग प्रभावित होते हैं। यह बीमारी ज्यादातर बच्चों में होती है, क्योंकि उनका इम्यून सिस्टम ज्यादा स्ट्रांग यानी मजबूत होता है। यह भी देखा गया है कि जिन बच्चों में यह बीमारी होती है। उनमें 90 प्रतिशत बच्चों में यह मामूली होती है। हमारे पास इसके लिए दवाइयां हैं। ये दवाइयां बेहद प्रभावी हैं, जो कम समय में बेहतर काम करती हैं। यह बीमारी कोरोना संक्रमित बच्चों में बहुत कम को होने की संभावना रहती है। अगर हो भी जाए, तो आसानी से इलाज किया जा सकता है। इसकी दवाइयां आसानी से मिल जाती हैं। कुछ लोगों में परिणाम सकारात्मक नहीं रहता है, बाकी अधिक लोगों में परिणाम पॉजिटिव रहता है। इसके लिए मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम से बहुत ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है।
4. सवाल:-अगर कोई बच्चा कोरोना संक्रमित हो जाता है या कोरोना के लक्षण पाए जाते हैं। ऐसे मामलों में कैसे उनका ख्याल रखें-
जवाब:-डॉक्टर अग्रवाल ने कहा-कोरोना संक्रमण होने पर हर किसी को अस्पताल जाने की जरूरत नहीं होती है। हर किसी में कोरोना की बीमारी गंभीर नहीं होती है और हर किसी को भर्ती होने की जरूरत नहीं है। बच्चों में भर्ती यानी अस्पताल में एडमिट होने की संभावना बहुत ही कम है। इसके लिए जरूरी है कि बच्चों को घर में बाकी लोगों से अलग रखें। यह थोड़ा मुश्किल है कि बच्चों को अलग रखा जाए, लेकिन कोशिश करें। इससे बाकी लोगों को संकम्रण का खतरा कम रहेगा। अगर बच्चे को बुखार है, तो बुखार की दवाई दें। यह भी ध्यान दें कि बच्चे को सांस लेने में कोई तकलीफ नहीं हो रही है, या कोई नए लक्षण तो नहीं दिख रहे हैं। परिवार के डॉक्टर की संपर्क में रहें। इससे बच्चों की सेहत को नजदीकी से मॉनिटर करने में सहायता मिल सकती है। अगर बच्चा जिद कर रहा है और आइसोलेट नहीं हो रहा है, तो घर के वृद्ध लोगों को आइसोलेट कर दें। जैसा कि आपको पहले भी बताया है कि बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराने का खतरा बहुत कम रहता है। अगर बच्चे को सांस लेने में तकलीफ होती है, तो अस्पताल ले जाएं। अगर बुखार 7 दिनों से अधिक रहता है, तो अस्पताल ले जाने की जरूरत है। अगर अजीब तरह के लक्षण देखते हैं, जिनके बारे में आपने नहीं सुने हैं, तो आप तत्काल डॉक्टर से संपर्क करें।
5. सवाल:-कोविड-19 महामारी के प्रसार में बच्चों की क्या भूमिका है? इसका कोई प्रमाण मिला है? आप इस बारे में हमारे दर्शकों और पाठकों को बताएं-
जवाब:- इस सवाल पर जबाव देते हुए डॉक्टर अग्रवाल ने कहा कि आपका यह सवाल बहुत सही है। लोगों के मन में बहुत तरह की गलतफहमी फैली हुई है। संक्रमण उम्र को नहीं देखती है। चाहे मैं बच्चा हूं, वयस्क हूं और चाहे मैं वृद्ध हूं-अगर मैं संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आता हूं, तो मुझे संक्रमण हो सकती है। सभी उम्र के लोगों में सीरो पॉजिटिविटी दर एक समान है। वयस्कों में एंटीबाडी वैक्सीन के चलते बढ़ी है। इसके लिए बच्चे भी संक्रमण के वाहक हैं। वर्तमान समय में भी बच्चे से संक्रमण पहले की तरह फैलने का खतरा है। आसान शब्दों में कहें तो जैसा पहले था, वैसा ही आगे होगा। हमारे देश में अन्य देशों की तुलना में सीरो पॉजिटिविटी दर अधिक है। तकरीबन 65 प्रतिशत बच्चे कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। इसके लिए कोरोना संक्रमण के प्रसार का खतरा कम है। अगर घर के बच्चे स्कूल जा रहे हैं, तो वयस्कों को टीका लेना अनिवार्य है। इस स्थिति में अगर बच्चा संक्रमित भी हो जाता है और घर के लोग वक्सीनेटेड (टीका ले चुके हैं) हैं, तो उन्हें दिक्कत नहीं होगी। फ़िलहाल वैक्सीन की उपलब्धता में कोई कमी नहीं है। इसके लिए हर एक व्यक्ति कोरोना वैक्सीन जरूर लगवाएं। साथ ही कोरोना गाइड लाइन्स का पालन करें। फिर कोई खतरा नहीं है।
6. सवाल:- हम देख रहे हैं कि स्कूल खुलने की शुरुआत हो चुकी है, ऐसे में आप माता-पिता और शिक्षकों को कोरोना महामारी के दौर में क्या संदेश देना चाहते हैं-
जवाब:- स्कूल खुलना बहुत जरूरी है। स्कूल न खुलने की वजह से बच्चों को बहुत नुकसान हो रहा है। एक समय ऐसा था कि जब स्कूल खोलने में नुकसान ज्यादा था, फायदा कम था। अब जबकि टीकाकरण अभियान तेज हो गई है और 75 करोड़ से अधिक लोगों को टीका लग चुका है। इसके लिए स्कूल खोलना बहुत जरूरी है। मैं स्कूल के टीचर्स को कहना चाहूंगा कि आप टीका जरूर लगवा लें। अगर एक भी डोज नहीं लिया है, तो पहली डोज जरूर लें। वहीं, पहली डोज ले चुके टीचर्स दूसरी डोज जरूर लें। स्कूल में जितना हो सके, सभी लोग मास्क पहनें और शारीरिक दूरी का ख्याल रखें। अगर ओपन क्लासेस ( खुले में पढ़ाना) ले सकते हैं, तो जरूर लें। माता पिता के लिए भी यह जरूरी है कि घर में सभी लोग वैक्सीन लगवाएं। खासकर डायबिटीज और उच्च रक्तचाप के मरीजों को वैक्सीन अनिवार्य है। उन्हें वैक्सीन जरूर लगवाएं।
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