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Stay Home Stay Empowered: कहीं आप भी इंटरनेट की बीमारी डिस्कोमगूगोलेशन के शिकार तो नहीं!

आज के दौर में इंटरनेट लोगों की जरूरत बन गया है। इसके बिना ऐसा लगता है कि जिंदगी अधूरी रह गई हो। किसी कारणवश ऑनलाइन न हो पाना कई लोगों के लिए हताशा सा बन जाता है।

By Vineet SharanEdited By: Published: Sun, 02 Aug 2020 08:43 AM (IST)Updated: Sun, 02 Aug 2020 08:44 AM (IST)
Stay Home Stay Empowered: कहीं आप भी इंटरनेट की बीमारी डिस्कोमगूगोलेशन के शिकार तो नहीं!
Stay Home Stay Empowered: कहीं आप भी इंटरनेट की बीमारी डिस्कोमगूगोलेशन के शिकार तो नहीं!

नई दिल्ली, जेएनएन। आज के दौर में इंटरनेट लोगों की जरूरत बन गया है। इसके बिना ऐसा लगता है कि जिंदगी अधूरी रह गई हो। किसी कारणवश ऑनलाइन न हो पाना कई लोगों के लिए हताशा सा बन जाता है। अगर आपको भी ऑनलाइन न हो पाने के कारण हताशा होती है, तो यह परेशानी की बात हो सकती है। एक अध्ययन के मुताबिक, ऑनलाइन न होने के कारण स्ट्रेस अनुभव करने वाले लोग डिस्कोमगूगोलेशन की समस्या से पीड़ित हो सकते हैं। ब्रॉडबैंड के बढ़ते प्रसार ने हमें इंस्टेंट आंसर की दुनिया में पहुंचा दिया है, जहां सूचनाएं लोगों से एक माउस क्लिक दूर होती हैं। इनकी वजह से लोग वेब के आदी हो गए हैं। वेब उनके सारे सवालों के जवाब और उनके अकेलेपन का साथी बन चुका है। ऐसे में जब वो ऑनलाइन एक्सेस नहीं कर पाते, तो इसी छटपटाहट में वे धीरे-धीरे डिस्कोमगूगोलेशन के शिकार होते जाते हैं। यह शब्द डिस्कोमबोबुलेट और गूगल से मिलकर बनाया गया है। डिस्कोमबोबुलेट का मतलब हताशा या असमंजस होता है।

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क्या है डिस्कोमगूगोलेशन: मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, डिस्कोमगूगोलेशन एक तरह का अहसास है। जब कोई व्यक्ति सूचनाओं के संसार यानी इंटरनेट को एक्सेस नहीं कर पाता है, तो उसके दिमाग की गतिविधि असाधारण हो जाती है। यह एक नए तरह का सिंड्रोम है, जो कि किसी समस्या का तुरंत उत्तर न ढूंढ पाने और इंटरनेट पास न होने के कारण किसी समस्या का समाधान न हो पाने के कारण होता है। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि यह मीटिंग में देर से पहुंचने, किसी महत्वपूर्ण एग्जाम को देने के समय होने वाले तनाव के बराबर होता है। इस सर्वे को वैज्ञानिकों ने 2000 लोगों के ऊपर किया।

वैज्ञानिकों के दल ने जब लोगों के ह्दय और दिमाग को मॉनिटर के द्वारा नापा तो उन्होंने पाया कि पुरुष की बैचेनी महिलाओं की तुलना में ज्यादा थी। उन्होंने देखा कि नेट एक्सेस न कर पाने के कारण पुरुषों में स्ट्रेस की समस्या ज्यादा होती है। सर्वे में यह भी देखा गया कि इंटरनेट कनेक्शन काट देने के बाद लोगों के दिमाग और ब्लड प्रेशर में एकदम से तेजी आ गई।

एम्स के मनोवैज्ञानिक राजेश सागर कहते हैं कि कुछ लोगों की इंटरनेट पर निर्भरता काफी अधिक हो जाती है। इसके हानिकारक प्रभाव भी होते हैं। आपकी अंगुलियां, गर्दन और शरीर के अन्य हिस्सों पर प्रभाव पड़ता है। इसका असर नींद और आपके मन पर भी पड़ता है। इसके लिए जरूरी है कि बीच-बीच में ब्रेक लेते रहें और शारीरिक गतिविधियां बढ़ाएं। इसका प्रभाव आपके स्वभाव पर भी देखने को मिलता है। इसके लिए सबसे आवश्यक यह है कि आप इंटरनेट के आदी न हों। डॉ सागर कहते हैं कि इंटरनेट फास्टिंग का फैसला बेहतर है। इसमें वे इसका इस्तेमाल बंद कर दूसरी चीजों का अनुभव लेते हैं। जब भी गेमिंग या स्ट्रीमिंग के भयंकर आदी लोग हमारे पास आते हैं, तो हम उन्हें हर गेम या शो के बाद एक छोटा ब्रेक लेने की सलाह देते हैं। इससे उन्हें मदद मिलती है, क्योंकि ब्रेक लेने से उनकी दिलचस्पी घटती है।

हर दिन 3 घंटे से ज्यादा इंटरनेट पर समय बिताते हैं

निमहांस की स्टडी के मुताबिक, इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स में 27.1 पर्सेंट में इंटरनेट एडिक्शन की हल्की-फुल्की, 9.7 पर्सेंट में ठीकठाक और 0.4 पर्सेंट में गंभीर समस्या देखी गई थी। छात्राओं के मुकाबले छात्रों में इसकी लत अधिक है। रेंट पर रहने वाले भी इंटरनेट का अधिक इस्तेमाल करते हैं। वे प्रतिदिन 3 घंटे से अधिक समय इंटरनेट पर बिताते हैं। इससे इनको साइकोलॉजिकल परेशानियां होती हैं।

गौर करें:

इंटरनेट पर पूरी तरह से निर्भरता न बनाएं। जिससे उसका इस्तेमाल न कर पाने के कारण आप हताशा के शिकार नहीं होंगे।

किसी नियमित समय पर रोज इंटरनेट न करें।

ऑनलाइन होने के दौरना बीच-बीच में ब्रेक लेते रहें, ताकि अनावश्यक दबाव से बचा जा सके। 


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