Covid Effects On Kids: कोविड-19 महामारी की वजह से घर बैठे बच्चों में बढ़ रहे हैं मायोपिया के मामले!
Covid Affects On Kids अब बच्चे घरों में रहने पर मजबूर हैं इसलिए ऑनलाइन क्लासेज़ के अलावा वे टीवी लैपटॉप टैब और मोबाइल का इस्तेमाल ज़्यादा कर रहे हैं। यही वजह है कि मानसिक स्वास्थ्य के साथ बच्चों की आंखों के स्वास्थ्य पर भी गहरा असर पड़ रहा है।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Covid Affects On Kids: कोरोना वायरस महामारी को डेढ़ साल से ज़्यादा का वक्त हो चुका है। इस बीमारी ने हमारी ज़िंदगी को कई तरह से प्रभावित किया है। लोग घर पर रहने को मजबूर हैं, कई लोगों ने नौकरियां गंवाई, अपनों को खोया। इन सबके बीच बच्चों पर भी बुरा असर पड़ा है। वे पिछले डेढ़ साल से स्कूल नहीं जा पाए हैं, अपने दोस्तों से दूर हैं, इसके अलावा परिवार के लोगों में बेचैनी और डर से वे भी प्रभावित हुए हैं।
बच्चों की आंखों पर भी पड़ रहा असर
क्योंकि अब बच्चे घरों में रहने पर मजबूर हैं, इसलिए ऑनलाइन क्लासेज़ के अलावा वे टीवी, लैपटॉप, टैब और मोबाइल का इस्तेमाल ज़्यादा कर रहे हैं। यही वजह है कि मानसिक स्वास्थ्य के साथ बच्चों की आंखों के स्वास्थ्य पर भी गहरा असर पड़ रहा है। कोरोना के इस दौर में बच्चों में मायोपिया के मामले बढ़े हैं।
अमेरिकी रिसर्च और WHO के अध्ययन और चीन से मिले अहम डेटा के अनुसार, दुनिया भर में 6-9 साल की उम्र के बच्चों में मायोपिया के मामलों की बढ़ती संख्या में इज़ाफा हुआ है। रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रारंभिक और प्री-स्कूल के बच्चों में मायोपिया की संख्या 1.3 गुना से बढ़कर 3 गुना हो गई है। इस निर्दिष्ट आयु वर्ग के बच्चों में रिपोर्ट किए गए मामलों की कुल संख्या में 30% -200% की वृद्धि दर्ज की गई।
यह देखा गया है कि जिन बच्चों में पहले से ही आंखों से जुड़ी दिक्कतें थीं, वे पिछले डाटा से तीन गुना ज़्यादा बढ़ गईं। इसके अलावा जो बच्चे डॉक्टर से एक या डेढ़ साल में कंसल्ट करते थे, उन्हें अब कम समय में ही कंसल्टेशन की ज़रूरत पड़ रही है। इसी तरह ताज़ा मामले भी 1.3 गुना बढ़े हैं। इस समस्या का प्रमुख कारण है कि बच्चों की आउटडोर एक्टिविटी जैसी महत्वपूर्ण गतिविधी में गिरावट आई है।
शार्प साईट आई हॉस्पिटल्स के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. कमल बी. कपूर ने इस मुद्दे को संबोधित करते हुए बताया कि हमारी आंख कैसे काम करती है। उन्होने कहा, "हमारी मस्तिष्क कोशिकाएं हमारे आंखों के उपयोग की अच्छी तरह से निगरानी कर सकती हैं, इसलिए प्रोग्रेमिंग कर हमारे समायोज्य मायोपिया को अस्थायीता से हमेशा के लिए नुकसान पहुंचाती हैं।
लंबे समय तक और बार-बार आंखों के बिल्कुल पास लैपटॉप या मोबाइल के उपयोग से आंखों पर प्रमुख रूप से तनाव बढ़ता है और कमज़ोर भी करता है। इस समस्या को तभी टाला जा सकेगा जब बच्चे मोबाइल या लैपटॉप स्क्रीन की जगब ब्लैकबोर्ड का इस्तेमाल करेंगे।
इस वक्त छोटे बच्चों में जो कमज़ोर आंखों की स्थिति पैदा हो रही है, वो कंप्यूटर स्क्रीन, मोबाइल फोन, उनके छोटे फोंट, और काफी हद तक किताबों भी ज़िम्मेदार हैं। इसके अलावा लंबे समय तक लगातार लैपटॉप पर क्लासेज़ अटेंड करने के साथ झुक्कर बैठे रहना।
शार्प साईट आई हॉस्पिटल्स के सीनियर कंसलटेंट डॉ. विनीत सेहगल ने कहा, "शॉर्ट-साइटेडनेस का निर्धारण कम उम्र में जितना जल्दी हो जाए सुधारा जा सकता है, वरना यह दृष्टि को हमेशा के लिए नुकसान पहुंचाता है, जिसे एंबीलोपिया कहा जाता है। गंभीर अदूरदर्शिता से रेटिनल डिटेचमेंट, परमाणु मोतियाबिंद और ग्लूकोमा जैसी गंभीर बीमारी का ख़तरा भी बढ़ जाता है। इसलिए कोरोना की स्थिति जैसे ही ठीक हो, हमें अपने बच्चों को बताया चाहिए कि इस वक्त कम्यूटर, स्मार्टफोन और टैबलेट जैसे गैजेट्स का ग़ैर-ज़रूरी उपयोग कम करें और बाहरी गतिविधियों को बढ़ाएं ताकि आने वाले समय में उनकी आंखें सेहतमंद रहें। इसके अलावा ऑनलाइन क्लास या फिर मोबाइल के इस्तेमाल के वक्त अपनी आंखों को लगातार न थकाएं, इससे आंखों में रूखापन बढ़ता है।"