बदलते मौसम में इन 7 बातों का रखें ध्यान, रहेंगे बीमारियों और इंफेक्शन से दूर
बदलते मौसम के साथ होने वाली कई तरह की बीमारियों और इंफेक्शन से बचे रहने के लिए खानपान और लाइफस्टाइल में करें ये जरूर बदलाव।
साल भर में 6 ऋतुएं होती है। हर एक मौसम के अपने अपने विशेष लक्षण होते है और वह पृथ्वी पर रहने वाले जीव जंतुओं से लेकर वनस्पतियों तक पर अपना प्रभाव डालते हैं। अगर हम अपने खानपान और लाइफस्टाइल में आवश्यकतानुसार थोड़े-बहुत बदलाव कर लें तो बदलते मौसम के साथ होने वाली कई तरह की बीमारियों और इंफेक्शन से काफी हद तक बचे रह सकते हैं। आयुर्वेद मे हर एक ऋतु में खास आहार विहार के बारे में बताया गया है। आयुर्वेद में सूर्य की गति के अनुसार दो अयन होते है उत्तरायण तथा दक्षिणायन। प्रत्येक अयन में 3 ऋतुएं होती है जैसे -उत्तरायण में शिशिर, बसंत और ग्रीष्म तथा दक्षिणायन में वर्षा ,शरद और हेमंत। वर्तमान मे बसंत ऋतु चल रही है जिस पर हम चर्चा करेंगे।
बसंत ऋतु बसंत पंचमी के 40 दिनों के बाद होली के प्रथम दिवस को मार्च माह में आरम्भ हो कर मई माह तक चलती है। बसंत ऋतु अपने साथ नए-नए फूलों के साथ-साथ नए नए पत्ते भी लेकर आती है। जो वनस्पतियों की शोभा बढ़ाते हैं। जिसके कारण बसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा भी कहते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार इस समय सूर्य की तेज किरणों के कारण शरीर में संचित कफ दोष प्रकुपित हो जाते हैं जिससे शरीर की अग्नि मंद होने के कारण शरीर में अनेक रोग जैसे भूख कम लगना, सर्दी, जुकाम, पाचन शक्ति कम होना, एलर्जी, आदि हो सकते है। ऐसे में अपनी लाइफस्टाइल में इन चीज़ों को जरूर शामिल करें..
1. बसंत ऋतु में ज्यादातर आसानी से पचने वाले द्रव्यों का प्रयोग करना चाहिए। जैसे जौ ,गेहूं, चावल आदि से बने खाद्य पदार्थ, दालों मे मटर-मूंग की दाल, सब्जियों मे करेला, बैंगन, मूली, सहजन आदि खाएं।
2. खाना बनाने में तिल या सरसों के तेल का प्रयोग करें। अदरक, धनिया, प्याज, लहसुन ,तुलसी ,नीम ,जीरा आदि का प्रयोग विशेष रूप से करें।
3. कफ को कम करने के लिए शहद का प्रयोग करें।
4. ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन कम करें जो देर से पचने वाले हो। ठंडे, चिकनाई युक्त, तले-भुने,खट्टे-मीठे पदार्थों ,दही आदि का सेवन कम करें।
5. नहाने में गुनगुने पानी का प्रयोग करें।
6. नियमित रूप से व्यायाम करें और चन्दन के चूर्ण से शरीर पर उद्वर्तन करें।
7. बसंत ऋतु में दिन में सोना पूर्णतया वर्जित है।
डॉ.अरविन्द कुमार, आयुर्वेद फैकल्टी (S.G.T. यूनिवर्सिटी, गुरुग्राम)