नई दिल्ली, विनीत शरण। क्या तकनीक आपको बेहतर खानपान में मदद कर सकती है? जवाब है हां। अब कई डिजिटल हेल्थ कंपनियां ऐसी डिवाइस बना रही हैं, जो पर्सन्लाइज्ड न्यूट्रिशिन पर आधारित हैं। यानी ये गैजेट हर व्यक्ति को उनकी सेहत के हिसाब से बताती हैं कि उन्हें कब क्या खाना चाहिए और क्या नहीं। वर्क फ्रॉम होम और कोरोना महामारी के इस दौर में जब एक बहुत बड़ी आबादी घर से काम कर रही है, ऐसे में यह तकनीक लोगों के खानपान और सेहत को सुधारने में मददगार साबित हो सकती है। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि जो लोग घर से काम नहीं भी कर रहे हैं, उनका बाहर आना-जाना या शारीरिक सक्रियता कम हुई है।
विशेषज्ञों का दावा है कि जल्द ही यह इंडस्ट्री अरबों डॉलर की हो जाएगी। ये नए गैजेट्स लोगों के खानपान को पूरी तरह बदल देंगे। इससे मेटाबोलिज्म की गुणवत्ता और शरीर की ऊर्जा का स्तर दोनों बेहतर होंगे।
रियल टाइम में ब्लड शुगर लेवल पर नजर
ये गैजेट्स उपयोगकर्ता के ब्लड शुगर लेवल को मॉनिटर करते हैं और इस डाटा को आपके स्मार्टफोन पर भेज देते हैं। इस तरह आप रियल टाइम में देख पाते हैं कि आपकी डाइट, नींद, व्यायाम और तनाव का आपके शुगर लेवर पर क्या प्रभाव पड़ता है। यूजर रियल टाइम में जान पाते हैं कि उनके पसंदीदा खाने और नाश्ते का प्रभाव शुगर लेवर पर क्या पड़ रहा है। वह बढ़ रहा है या गिर रहा है। खाना खाने के बाद उन्हें थकान या सुस्ती तो नहीं लग रही है। वहीं इन डिवाइस से यूजर को यह भी पता चलेगा कि उनके लिए कितना व्यायाम या टहलना अच्छा है। कुछ यूजर्स को यह भी पता चलेगा कि उनमें कहीं टाइप-2 डाइबिटीज तो नहीं हो रही है या मेटाबोलिज्म से संबंधित कोई अन्य बीमारी का खतरा तो नहीं है।
एक तरह का खाना हर व्यक्ति पर अलग-अलग असर करता है
ज्यादातर लोग जानते हैं कि शुगर वाले जंक फूड जैसे कूकीज, केक और सोडा ब्लड शुगर लेवल को बढ़ा देते हैं। पर शोध से पता चलता है कि लोगों पर इसका अलग-अलग और कई रेंज में प्रभाव पड़ता है। इजराइल में 2015 में 800 लोगों पर हुए एक शोध में पाया गया कि एक जैसा खाना जैसे ब्रेड-बटर या चॉकलेट खाने पर कुछ लोगों का शुगर लेवल एकाएक बढ़ गया, लेकिन कुछ लोगों पर इसका खास प्रभाव नहीं पड़ा। शोधकर्ताओं ने पाया कि लोगों का अलग-अलग वजन, जीन, पेट के जीवाणु, जीवनशैली और इंसुलिन संवेदनशीलता इसके कारण हैं। इसके चलते ही लोग एक जैसा खाते हैं, लेकिन उन पर प्रभाव अलग-अलग पड़ता है।
कैसे काम करती है यह तकनीक
इस तकनीक में एक डिवाइस (एक छोटा सा पैंच) होता है, जिसमें छोटा सा सेंसर लगा होता है। यह सेंसर मानव के बाल के आकार का होता है। इस पैंच को बांह में पीछे की ओर लगा दिया जाता है। यह सेंसर स्कीन के नीचे मौजूद तरल की जांच करता है और ब्लड शुगर का स्तर बताता है।
नए दौर की तकनीक
कई दशक पहले ग्लूकोज मॉनिटर का आविष्कार इसलिए हुआ था कि डायबिटीज के मरीजों के ब्लड शुगर लेवल को सामान्य रखा जा सके। इसके तहत दिन में कई बार उंगलियों से सैंपल लेकर शुगर की जांच की जाती है। लेकिन नई तकनीक में डिजिटल कंपनियां पर्सन्लाइज्ड न्यूट्रिशन की बढ़ती मांग को पूरा करने की कोशिश कर रही हैं। पर्सन्लाइज्ड न्यूट्रिशन कंपनी लेवल की सह-संस्थापक डॉ कैसी मिंस बताती हैं कि ग्लूकोज मॉनिटर बायोमार्कर पर नजर रखता है। यह हाथ पर बंधी छोटी लैबोरेट्री (प्रयोगशाला) की तरह काम करता है। पहली बार इस तकनीक का इस्तेमाल मुख्य आबादी पर किया जा रहा है, ताकि वह जीवनशैली के बेहतर फैसले ले सकें।
बीमारियों की रोकथाम में भी मदद मिलेगी
शोधकर्ताओं के मुताबिक, शुगर लेवल की लगातार जांच से टाइप-3 डाइबिटीज के अलावा दिल की बीमारियों और क्रॉनिक इन्फ्लेमेशन रोकथाम में मदद मिलेगी, क्योंकि इन बीमारियों में भी शुगर लेवल में लगातार स्विंग होता रहता है। वहीं गठिया, डिप्रेशन, कैंसर और डिमेंशिया की रोकथाम भी की जा सकेगी।