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Embryology: एक सफल IVF प्रक्रिया के लिए ज़रूरी है एम्ब्र्योलॉजी को समझना!

Embryology एक एम्ब्र्योलॉजिस्ट की जिम्मेदारी में एम्ब्रॉयोस (भ्रूण) बनाने में जेनेटिक फैब्रिक के इस्तेमाल को मैनेज करना और उसे बनाए रखना भी शामिल होता है। वे एम्ब्रॉयोस यानी भ्रूण के विकास की बहुत ही ध्यान से देखभाल करते हैं।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Thu, 26 Nov 2020 04:29 PM (IST)Updated: Thu, 26 Nov 2020 04:29 PM (IST)
Embryology: एक सफल IVF प्रक्रिया के लिए ज़रूरी है एम्ब्र्योलॉजी को समझना!
एक सफल IVF प्रक्रिया के लिए ज़रूरी है एम्ब्र्योलॉजी को समझना

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Embryology: आईवीएफ या अन्य किसी भी असिस्टेड रिप्रोडक्शन प्रक्रिया की सफलता में अक्सर एम्ब्र्योलॉजिस्ट के योगदान को नज़रअंदाज कर दिया जाता है। अधिकांश लोग अपने मां-बाप बनने की यात्रा में ऐसे एम्ब्र्योलॉजिस्ट की मौजूदगी से अनजान रहते हैं। इसके बावजूद हमें इस बात की अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि ये एम्ब्र्योलॉजिस्ट बहुत ही अनिवार्य वैज्ञानिक होते हैं, जो एडवांस असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी से लोगों को संतान का सुख देते हैं।

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एक एम्ब्र्योलॉजिस्ट किसी भी वैज्ञानिक से कम नहीं होता है। वह आईवीएफ प्रक्रिया या एम्ब्रॉयोस फ्रीजिंग में इस्तेमाल किए जाने वाले विएबल एम्ब्रॉयोस (व्यवहार्य भ्रूण) को बनाने में मदद करते हैं। एम्ब्र्योलॉजिस्ट की जिम्मेदारी में एम्ब्रॉयोस बनाने में जेनेटिक फैब्रिक के इस्तेमाल को मैनेज करना और मेन्टेन करना भी शामिल होता है। वे एम्ब्रॉयोस के विकास की बहुत ही ध्यान से देखभाल करते हैं। इसके लिए मानव शरीर के बाहर अंडेए शुक्राणु और एम्ब्रॉयोस के पोषण के पीछे विज्ञान की गहरी समझ की जरूरत होती है। क्लिनिकल मेथड्स और टेक्नोलॉजिकल बैकअप्स से सक्सेस रेट की गारंटी रहती है। विश्व स्तर पर इन्फर्टिलिटी की समस्या बढ़ रही है। लगभग 7 में से 1 रिप्रोडक्टिव उम्र में इनफर्टिलिटी से डायग्नोज किए जा रहे हैं। बीते कुछ सालों में एम्ब्र्योलॉजिस्ट की भूमिका महत्वपूर्ण रूप से बढ़ी है। पूरी दुनिया में हर साल 5 मिलियन एआरटी बच्चे एआरटी ट्रीटमेंट के जरिए पैदा होते हैं।

अगर हम भारत की बात करें, तो आईवीएफ इंडस्ट्री 28% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) तक बढ़ने की उम्मीद है, और 2022 तक लगभग 775 मिलियन अमरीकी डॉलर (495 करोड़ रुपये) तक जाने की आशा है।

एम्ब्र्योलॉजिस्ट की भूमिका को समझना

एम्ब्र्योलॉजिस्ट के बारे में पढ़ने से पहले पूरी आईवीएफ प्रक्रिया को समझना अनिवार्य है। यह अंडे निकालने से शुरू होता है, स्पर्म के सैम्पल को सुधारने, और फिर स्पर्म को एक इंजेक्शन लगाकर उन्हें मैन्युअल रूप से लैब में एक डिश पर अंडे से निषेचित करना होता है। इसके बाद एम्ब्रियो को यूटरस में ट्रांसफर किया जाता है। इसके बाद अंडे को फिर से प्राप्त करके इसे एक टीम को सौंपा जाता है जिसमें बहुत ट्रेंड एम्ब्र्योलॉजिस्ट होते हैं, जो इस प्रक्रिया को बहुत ही अच्छे तरीके से और नियंत्रित वातावरण में अंजाम देते हैं।

एम्ब्र्योलॉजिस्ट क्लिनिकल एम्ब्र्योलॉजी के एक्सपर्ट होते हैं। जीव विज्ञान की एक शाखा में अंडों का निषेचन और भ्रूण के विकास का अध्ययन किया जाता है। एम्ब्र्योलॉजिस्ट वह वैज्ञानिक होते हैं, जो स्पर्म और अंडे का उपयोग गर्भ के बाहर करके एम्ब्र्योस (भ्रूण) बनाने में मदद करते हैं।

एम्ब्र्योलॉजिस्ट का भविष्य

जब एक शादीशुदा जोड़ा प्राकृतिक रूप से मां-बाप बनने में असफल रहता है, तब वह आईवीएफ प्रक्रिया से गुज़रने का फैसला करता है। इससे अंदाज़ा लगता है कि आने वाले समय में एआरटी ट्रीटमेंट के लिए डिमांड बढ़ने वाली है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि इसके लिए ट्रेंड एम्ब्र्योलॉजिस्ट की डिमांड बढ़ेगी। एम्ब्र्योलॉजिस्ट की मांग बढ़ने पर निकट भविष्य में उभरती टेक्नोलॉजी के प्रयोग में गहन जानकारी की जरूरत होगी क्योंकि इसमें कोई शक नहीं है कि टेक्नोलॉजी आईवीएफ इंडस्ट्री पर राज करने वाली है।

एम्ब्र्योलॉजिस्ट प्राइवेट हॉस्पिटल और गवर्नमेंट हॉस्पिटल में असिस्टेड रिप्रोडक्टिव क्लिनिक्स द्वारा नियुक्त किए जा सकते हैं। धीरे-धीरे उन्हें लैब मैनेजर या लैब डायरेक्टर से और ज्यादा जिम्मेदारी का पद मिलता जाता है। लेकिन एम्ब्र्योलॉजिस्ट ऐसी जॉब है, जिसमें लैबोरेटरी स्किल, मैनेजमेंट में बहुत ही गहन ट्रेनिंग की जरूरत होती है। इसके अलावा उन्हें लेटेस्ट टेक्नोलोजी से अपडेट भी रहना पड़ता है। ट्रेंड को देखते हुए कई एजुकेशनल इंस्टीटयूट ने एम्ब्र्योलॉजी का कोर्स अपने मॉड्यूल में शुरू किया है। कोई भी इन इंस्टीटयूट में अपना कोर्स पूरा करने के बाद उस स्कूल के फैकल्टी ऑफ़ एम्ब्र्योलॉजिस्ट का हिस्सा भी बन सकता है।

- डॉ. सुजाता रामाकृष्णन (नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी के एम्ब्र्योलॉजी हेड) द्वारा इनपुट


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