खानपान की गलत आदतों की वजह से बढ़ रही है गॉल ब्लैडर स्टोन की समस्या, जानें लक्षण व उपचार
खानपान की गलत आदतों की वजह से आजकल लोगों के गॉल ब्लैडर में स्टोन की समस्या तेजी से बढ़ रही है। क्यों होती है यह समस्या और इससे बचाव के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए आइए जानते हैं इसके बारे में।
अपने आसपास आपने भी लोगों से यह सुना होगा कि अमुक व्यक्ति के गॉल ब्लैडर में स्टोन हो गया था। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में लगभग 8 प्रतिशत लोग गॉल ब्लैडर से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं से त्रस्त हैं। क्यों होता है ऐसा, जानने से पहले यह समझना जरूरी है कि हमारे शरीर का यह महत्वपूर्ण अंग काम कैसे करता करता है?
एंजाइम का स्टोर
गॉल ब्लैडर लिवर और छोटी आंत के बीच पुल की तरह काम करता है। यह छोटी थैली के आकार वाला यह ऑर्गन लिवर के पिछले हिस्से में नीचे की ओर स्थित होता है। लिवर से भोजन को पचाने वाले आवश्यक एंजाइम वाइल (पित्त) का सिक्रीशन होता है। एक स्वस्थ व्यक्ति का लिवर पूरे 24 घंटे में लगभग 800 ग्राम बाइल का निर्माण करता है। लिवर और गॉल ब्लैडर के बीच बाइल डक्ट नामक एक छोटी सी नली होती है, जिसके माध्यम से यह पित्त को गॉल ब्लैडर तक पहुंचता है। पाचन क्रिया के दौरान जब व्यक्ति के शरीर में भोजन जाता है तो यह ब्लैडर पित्त को पिचकारी की तरह खींचकर उसे छोटी आंत के ऊपरी हिस्से में भेज देता है, जिसे ड्यूनेनियम कहा जाता है। यह बाइल भोजन को पचाने में मददगार होता है।
कब होती है समस्या
दरअसल गॉल ब्लैडर में तरल पदार्थ की मात्रा सूखने लगती है तो उसमें मौजूद चीनी-नमक और अन्य माइक्रोन्यूट्रिएंट तत्व एक साथ जमा होकर छोटे-छोटे पत्थर टुकड़ों जैसा रूप धारण कर लेते हैं, जिन्हें गॉलस्टोन्स कहा जाता है। ये दो तरह के होते हैं- कोलेस्ट्रॉल और पिग्मेंट। कोलेस्ट्रॉल स्टोन पीले-हरे रंग के होते हैं। ऐसी स्थिति में लोगों को पेट के ऊपरी हिस्से की दांयी तरफ दर्द, गैस की फार्मेशन, भारीपन, वॉमिटिंग, पसीना आना जैसे लक्षण नजर आते हैं।
क्या है वजह
एक्सरसाइज की कमी
अधिक मात्रा में घी-तेल और मिर्च-मसाले के सेवन से इस समस्या के लिए जिम्मेदार माना जाता है।
लंबे समय तक गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करने या हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी लेने वाली स्त्रियों में भी इसका आशंका बढ़ जाती है।
क्या है उपचार
अगर शुरुआती दौर में इस समस्या को दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है। गंभीर स्थिति में सर्जरी की जरूरत पड़ती है। लेप्रोस्कोपी द्वारा इसकी सर्जरी की जाती है, जिसके महीने भर बाद पूर्णतः स्वस्थ हो जाता है।
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