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Covid-19 Antibodies: क्या एंटीबॉडी विकसित होने पर प्लाज़मा डोनेट कर सकते हैं?

Covid-19 Antibodiesकोरोना वायरस महामारी जब से फैलनी शुरू हुई है तब से मेडिकल एक्सपर्ट्स और वैज्ञानिक भी इसके बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी जुटाने में लगे हुए हैं। भारत में भी स्थिति को बेहतर तरीके से समझने क लिए सीरो सर्वे भी किए जा रहे हैं।

By Ruhee ParvezEdited By: Published: Thu, 24 Sep 2020 12:00 PM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2020 12:00 PM (IST)
Covid-19 Antibodies: क्या एंटीबॉडी विकसित होने पर प्लाज़मा डोनेट कर सकते हैं?
भारत कोरोना वायरस संक्रमण के लिहाज़ से अमेरिका के बाद दूसरा सबसे ज़्यादा प्रभावित देश है।

नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Covid-19 Antibodies: पिछले साल दिसंबर में शुरू हुई कोरोना वायरस महामारी को लगभग 10 महीने होने जा रहे हैं, लेकिन अब भी इस ख़तरनाक वायरस का दुनियाभर में कहर जारी है। भारत कोरोना वायरस संक्रमण के लिहाज़ से अमेरिका के बाद दूसरा सबसे ज़्यादा प्रभावित देश है। भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या 56 लाख के पार पहुंच चुकी है। 

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एक तरफ देश में कोरोना के मरीज़ों की संख्या बढ़ ज़रूर रही है, लेकिन यहां इलाज के बाद लोग तेज़ी से ठीक भी हो रहे हैं। भारत में अभी तक करीब 47 लाख लोग कोरोना के बाद बिल्कुल स्वस्थ हो चुके हैं।

कोरोना वायरस महामारी जब से फैलनी शुरू हुई है, तब से मेडिकल एक्सपर्ट्स और वैज्ञानिक भी इसके बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी जुटाने में लगे हुए हैं। भारत में भी कोरोना की टेस्टिंग ज़ोरो से चल रही है, वहीं साथ ही स्थिति को बेहतर तरीके से समझने के लिए सीरो सर्वे भी किए जा रहे हैं। 

दिल्ली में भी लगातार सीरो सर्वे किए जा रहे हैं, लेटेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक, 33 प्रतिशत दिल्लीवासियों के शरीर में कोरोना वायरस के एंटीबॉडी पाई गई हैं। शरीर में एंटीबॉडी पाए जाने का मतलब यह हुआ कि इन लोगों को कोरोना संक्रमण हो चुका है और उनके शरीर ने उसके ख़िलाफ एंटीबॉडी विकसित कर ली हैं।

जिनमें एंटीबॉडी विकसित हो गई हैं, क्या वे प्लाज़मा डोनेट कर सकते हैं?

ज़्यादातर जानकार मानते हैं कि सर्वे के नतीजों से ये पता लगाना मुश्किल है कि जिन लोगों में एंटीबॉडी मिली हैं, वे प्लाज़्मा डोनेट कर सकते हैं या नहीं। असल में, इसके लिए अलग तरह का टेस्ट कराने होता है। आम तौर पर माना जाता है कि मॉडरेट या गंभीर कोरोना मरीज़ ही प्लाज़मा डोनेट कर सकते हैं।

हर व्यक्ति के शरीर की अपनी एक याददाश्त होती है, सीख होती है कि किस वायरस से किस तरह लड़ना है। साथ ही हर शरीर के रिस्पॉन्स का तरीका भी अलग होता है। तो यह ज़रूरी नहीं है कि अगर किसी व्यक्ति के शरीर में कोशाणु अच्छे से काम कर रहे हैं, तो वो कोशाणु दूसरे में भी अच्छे से काम करेंगे।

कैसे होती है एंडीबॉडी की पहचान?

एंडीबॉडी की पहचान के लिए सीरोलॉजिकल टेस्ट किया जाता है। ये एक तरीके का ब्लड टेस्ट होता है, जिसकी मदद से व्यक्ति के खून में मौजूद एंटीबॉडी की पहचान होती है। रक्त में से अगर लाल रक्त कोशिकाओं को निकाल दिया जाए, तो जो पीला पदार्थ बचता है उसे सीरम कहते हैं।

इस सीरम में मौजूद एंटीबॉडीज़ से अलग-अलग बीमारियों की पहचान के लिए अलग-अलग तरह के सेरोलॉजिक टेस्ट किए जाते हैं। सीरोलॉजिकल टेस्ट में एक बात कॉमन होती है और वो ये है कि ये सभी इम्यून सिस्टम द्वारा बनाए गए प्रोटीन पर फोकस करते हैं। शरीर की यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बाहरी तत्वों द्वारा शरीर पर किए जा रहे आक्रमण को रोक कर आपको बीमार पड़ने से बचाती है।


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