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खानपान की गलत आदतें और लाइफस्टाइल कर सकती हैं आपका लिवर खराब, ऐसे रखें इसे फिट

अगर आप अपने शरीर को कुछ गंभीर बीमारियों से बचाना चाहते हैं तो इसके लिए यह बहुत ज़रूरी है कि आपका लिवर पूर्णत दुरुस्त और एक्टिव रहे। ऐसा क्यों हैं जानने के लिए जरूर पढ़ें यह...

By Priyanka SinghEdited By: Published: Mon, 10 Feb 2020 12:53 PM (IST)Updated: Tue, 11 Feb 2020 08:05 AM (IST)
खानपान की गलत आदतें और लाइफस्टाइल कर सकती हैं आपका लिवर खराब, ऐसे रखें इसे फिट
खानपान की गलत आदतें और लाइफस्टाइल कर सकती हैं आपका लिवर खराब, ऐसे रखें इसे फिट

दिल और किडनी की बीमारियों के अलावा भारत में लोगों को लिवर से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं भी सबसे ज्य़ादा परेशान कर रही हैं क्योंकि हमारे खानपान की आदतों और जीवनशैली से इसका गहरा संबंध है। इससे जुड़ी डिज़ीज़ के बारे में जानने से पहले यह समझना बहुत ज़रूरी है कि हमारे शरीर का यह महत्वपूर्ण अंग काम कैसे करता है? 

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बॉडी का सेंट्रल कंट्रोलर

लिवर हमारे शरीर के लिए 500 से भी अधिक कार्य करता है। इसीलिए इसे बॉडी का सेंट्रल कंट्रोलर भी कहा जाता है और इसमें होने वाली मामूली सी गड़बड़ी से कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होती हैं। त्वचा के बाद यह शरीर दूसरा सबसे बड़ा अंग है। सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में इसका वज़न लगभग 1.5 से 2 किलोग्राम के बीच होता है। हमें स्वस्थ और सक्रिय बनाए रखने के लिए यह कई छोटे-बड़े काम करता है। सरल ढंग से इसकी कार्य प्रणाली को कुछ इस तरह समझा जा सकता है कि हम जो कुछ भी खाते हैं, वह पहले आंतों में जाता है। वहां मौज़ूद एंजाइम्स भोजन को बारीक कणों में परिवर्तित कर देते हैं। इसके बाद आंतों से यह आधा पचा हुआ भोजन लिवर में जाकर स्टोर होता है। लिवर का स्थान हमारे शरीर में उस केमिकल फैक्ट्री की तरह होता है, जो अधपचे भोजन के बारीक कणों में से पोषक तत्वों को छांटकर अलग करता है और रक्त प्रवाह के साथ ये सभी विटामिंस और माइक्रोन्यूट्रीएंट्स हमारे उन अंगों तक पहुंचते हैं, जहां उनकी ज़रूरत होती है। इसके अलावा यह उन विषैले तत्वों को अलग करता है, जो पानी में घुलनशील होते हैं। फिर उन्हें यह किडनी में भेज देता है और वहां से ये तत्व यूरिन के साथ शरीर से बाहर निकल जाते हैं। इसके अलावा जो अवशेष पानी में घुलने के योग्य नहीं होते, वह लिवर से मलाशय में चला जाता है और स्टूल के रूप में शरीर से बाहर निकल जाता है। इसके अलावा हम जो भी दवाएं खाते हैं लिवर उसके विषैले तत्वों को निष्क्रिय करने का भी काम करता है। यह कार्बोहाइड्रेट को ग्लाइकोजेन में परिवर्तित करके सुरक्षित रखता है। जब भी शरीर को ज़रूरत होती है, लिवर उसे ग्लूकोज़ के बदल कर तुरंत रक्त में प्रवाहित कर देता है।

प्रमुख स्वास्थ्य समस्याएं

शरीर का जो अंग हमारे लिए इतने सारे काम करता है, ज़ाहिर है कि उसके बीमार होने से हमें बहुत सारी परेशानियां होंगी। इसलिए लिवर को स्वस्थ रखना बहुत ज़रूरी है। आमतौर पर लिवर से संबंधित तीन समस्याएं सबसे ज़्यादा देखने को मिलती हैं-फैटी लिवर, हेपेटाइटिस और सिरोसिस। फैटी लिवर की समस्या में वसा की बूंदें लिवर में जमा होकर उसकी कार्यप्रणाली में बाधा पहुंचाती हैं। यह समस्या घी-तेल, एल्कोहॉल और रेड मीट के अधिक सेवन से हो सकती है। हेपेटाइटिस होने पर लिवर में सूजन आ जाती है। यह समस्या खानपान से संक्रमण, असुरक्षित यौन संबंध या ब्लड ट्रांसफ्यूज़न की वजह से भी होती है। हेपेटाइटिस ए और बी की समस्या ज़्यादातर लोगों में देखने को मिलती है। अगर सही समय पर उपचार न किया जाए तो यह समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है। इससे बचाव के लिए अपने परिवार के सभी सदस्यों को हेपेटाइटिस का वैक्सीन ज़रूर लगवाएं। आजकल यह टीका प्राय: सभी अस्पतालों में उपलब्ध होता है।

लिवर से संबंधित सभी बीमारियों में सिरोसिस सबसे घातक है। इसमें कई समस्याओं के लक्षण एक साथ देखने को मिलते हैं। यह लिवर संबंधी रोगों की सबसे गंभीर और अंतिम अवस्था मानी जाती है। इसमें लिवर की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होने लगती हैं। आमतौर पर क्षतिग्रस्त होने के बाद अन्य अंगों में नई कोशिकाएं भी बनती रहती हैं, पर सिरोसिस की अवस्था में लिवर की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं का दोबारा निर्माण संभव नहीं हो पाता। आमतौर पर ज्य़ादा एल्कोहॉल के सेवन, खानपान में वसायुक्त चीज़ों, नॉनवेज का अत्यधिक मात्रा में सेवन और दवाओं के  साइड इफेक्ट की वजह से भी यह समस्या हो जाती है, जिसे नैश सिरोसिस यानी नॉन एल्कोहॉलिक सिएटो हेपेटाइटिस कहा जाता है। 

तीन प्रमुख अवस्थाएं

ए अवस्था:  सिरोसिस के प्रारंभिक यानी ए अवस्था में अक्सर थकान महसूस होना, वज़न का लगातार घटना और पाचन संबंधी गड़बडिय़ां देखने को मिलती हैं।

बी अवस्था: इसमें चक्कर और उल्टियां आना, भोजन में अरुचि और बुखार जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं।

सी अवस्था: इसमें सामान्यत: ऊपर बताए गए लक्षण ही देखने को मिलते, पर उनकी गंभीरता बढ़ जाती है। इसमें उल्टियों के साथ खून आना, बेहोशी के दौरे पडऩा और मामूली सी चोट लगने पर ब्लीडिंग का न रुकना जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। अंतिम अवस्था में दवाओं का असर बहुत कम हो जाता है और ऐसी स्थिति में ट्रांसप्लांट की ही एकमात्र सहारा होता है और यह प्रक्रिया काफी खर्चीली होती है। इसलिए बेहतर यही होगा कि हम अपने शरीर के इस महत्वपूर्ण अंग का  इसका पूरा खयाल रखें। 

 डॉ.राखी माइवाल, सीनियर कंसल्टेंट (इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज़, दिल्ली) से बातचीत पर आधारित  


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