फैशन डिज़ाइनर्स के नायाब और खूबसूरत कलेक्शन्स देखने हों तो मुंबई आएं जहां इन दिनों चल रहा है लैक्मे फैशन वीक 2019। 31 जनवरी से शुरू हुए फैशन वीक के पहले दिन डिज़ाइनर गौरव गुप्ता के नाम रहा। जिनके कलेक्शन का हिस्सा बनीं लखनऊ की चिकनकारी और बनारसी ब्रोकेड।एक्ट्रेस तब्बू और डॉयरेक्टर-प्रोड्यूसर करन जौहर बने उनके शो स्टॉपर्स। जहां करन रेड सीक्वन जैकेट और ब्लैक पेंट में नज़र आएं वहीं तब्बू स्टनिंग ग्रे एम्बेलिश्ड गाउन में। पार्टेड हेयरस्टाइल और रेड लिप्स न सिर्फ उनके लुक को पूरा कर रहे थे बल्कि इसमें वो लग रही थीं बहुत ही खूबसूरत।
कहां से आई चिकनकारी
खैर बात करेंगे गौरव गुप्ता के कलेक्शन में शामिल चिकनकारी की, जो नवाबों के शहर लखनऊ की खासियत है। ऐसा माना जाता है कि चिकनकारी का काम मुगल बादशाह जहांगीर की बेगम नूरजहां की देन है। जो आज भी उतना ही मशहूर है जितना उस जमाने में हुआ करता था। रॉयल लुक देने वाली इस एम्ब्रॉयडरी ने इंडिया में ही नहीं इंटरनेशनल मार्केट्स में भी अपनी पहचान कायम कर ली है। जिसकी एक झलक लैक्मे फैशन वीक में गौरव गुप्ता के कलेक्शन में देखने को मिली।
चिकनकारी काम नहीं है आसान
कपड़े पर सुई से की जाने वाली ये कढ़ाई कई तरीकों से की जाती है। और सबसे खास बात है कि इसमें बिल्कुल भी मशीन का इस्तेमाल नहीं होता। कॉटन से लेकर मसलिन, शिफॉन, जॉर्जेट और ऑर्गेंजा जैसे अलग-अलग फैब्रिक्स पर चिकनकारी वर्क वाले आउटफिट्स मार्केट में देखने को मिलते हैं। हर तरह के बजट में अवेलेबल चिकनकारी आउटफिट्स की सबसे बड़ी खासियत है कि इन्हें पार्टी-फंक्शन ही नहीं कैजुअली भी, हर एक सीज़न में कैरी किया जा सकता है।
इतने तरह की होती है चिकनकारी
मुर्री
सबसे मुश्किल चिकनकारी, जिसमें कच्चे के तीन या पांच तारों से बारीक सुई से टांके लगाए जाते हैं। जिस पर भी चिकनकारी करनी होती है इस पर बूटा लिखा जाता है। मतलब लकड़ी के छापे पर मनचाहे बेलबूटों के नमूने खोदकर कच्चे रंगों से कपड़े पर छाप लिया जाता है। चिकनकारी करने के बाद इन्हें धोबियों से धुलाया जाता है जो कच्चा रंग हटा देते हैं और काढ़ी गई कच्चे सूत की कलियों भी उभर कर नज़र आती हैं।
बखिया
इस तरह की स्टिच को खासतौर से अपने डबल बैक और शेडो वर्क के लिए जाना जाता है। जो कपड़े के उल्टे साइड पर किया जाता है जिसका शेडो कपड़े के सीधे साइड पर नजर आता है और यही इसे यूनिक लुक देता है। इसे सीधी और उल्टी बखिया भी कहा जाता है।
हूल
बहुत ही फाइन स्टिच होती है जो 6 धागों से हार्ट शेप फ्लावर के रूप में बनाए जाते हैं. जिसमें होल्स को फैब्रिक पर ऐसे उकेरा जाता है कि ये 6 धागे एक-दूसरे से अलग होकर एक डिज़ाइन बन जाते हैं।
जाली
ये बनाने वाले कारीगर इस कढ़ाई के महारथी होती हैं। इस डिज़ाइन की खूबसूरती होती है कि इसे किसी भी साइड से देखें डिज़ाइन्स एक जैसी ही लगती हैं। इसके अलावा बहुत सारे छोटे-छोटे बटनहोल्स भी डिज़ाइन्स के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।
राहेत
बखिया स्टिच का ही एक प्रकार है जिसे दोहरा बखिया के नाम से भी जाना जाता है। फैब्रिक पर बैक स्टिचिंग से सीधी एम्ब्रॉयडरी की जाती है। इसे डिज़ाइन की आउटलाइनिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
खटाऊ
राहेत की तरह ही खटाऊ भी बखिया का ही एक प्रकार है। जो बहुत ही फाइन वर्क होता है।
फांडा
मुर्री वर्क के साथ आमतौर पर किया जाने वाला स्टिच वर्क है फांडा। जो खासतौर से चिकनकारी डिज़ाइन मोटिफ्स में इस्तेमाल किए जाने वाले फूलों के बीचो-बीच किया जाता है। इन दोनों में बस इतना फर्क है जहां मुर्री चावल शेप वाली डिज़ाइन होती है वहीं फांडा जौ शेप।
तेपची
चिकनकारी में ये एम्ब्रॉयडरी सबसे सिंपल मानी जाती है। जो खासतौर से मोटिफ डिज़ाइन्स के आउटलाइनिंग के लिए इस्तेमाल की जाती है।
बनारसी
फैब्रिक के सीधी तरफ 6 धागों से की जाती है ये स्टिचिंग। सीधी तरफ 5 धागों की तरफ से की जाने वाली इस स्टिचिंग में 2 धागे वर्टिकली छोटी स्टिच से जुड़े होते हैं। इसके बाद सुई को दोबारा फैब्रिक में डालकर हॉर्रिजॉन्टल स्टिच किया जाता है।
जंजीरा
चेन जैसी डिज़ाइन वाले इस स्टिच को फैब्रिक के सीधे तरफ किया जाता है। ये खासतौर से फूलों और पत्तियों की आउटलाइनिंग के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।
तुरपाई
ये चिकनकारी का सबसे जरूरी पार्ट होता है। पतले धागे का इस्तेमाल इस स्टिच में किया जाता है।