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साइंस का हो पैशन

अगर साइंस फील्ड में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं, तो इसके लिए पागलपन बहुत जरूरी है, कैसे? जानें, देश की जानी-मानी साइंस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन 'टिफैकÓ के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. प्रभात रंजन से...

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 26 Nov 2014 11:21 AM (IST)Updated: Wed, 26 Nov 2014 11:31 AM (IST)
साइंस का हो पैशन

मैं लोगों को बोलता हूं कि मैं पागल हूं। एकदम पागल हूं अपने काम के लिए। एकदम पागल हूं ऐसा हर काम करने के लिए जो मैंने ठान लिया और पागल हूं साइंस के लिए, जिसे मैंने अपनी जिंदगी मानी है।

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फिजिक्स के लिए जुनून

मेरी इनिशियल एजुकेशन नेतरहाट से हुई है। वहां के बाद मैं आइआइटी खड्गपुर गया। वहां मैनुअल काउंसलिंग थी। मैंने कहा, मुझे फिजिक्स चाहिए, लेकिन वे बोले, नहीं आपको इंजीनियरिंग करनी होगी। मैं बार-बार बोलता रहा कि नहीं, मुझे तो फिजिक्स ही पढऩी है। तो उन्होंने कहा, अच्छा चलो अभी इंजीनियरिंग कर लो, बाद में बदलना होगा, तो बदल लेंगे। मैंने एडमिशन ले लिया, लेकिन मुझे बहुत खराब लग रहा था कि मुझे फिजिक्स की बजाय इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की स्ट्रीम में जाना पड़ रहा है। 15 दिनों तक लगातार मैं इसके लिए संघर्ष करता रहा और आखिरकार फिजिक्स लेकर ही माना।

देश के लिए जज्बा

पीएचडी करने के बाद मैं अमेरिका की बर्कले यूनिवर्सिटी गया। वहां से पीएचडी पूरी होते ही पांच दिनों में मैं वापस इंडिया आ गया, जबकि आमतौर पर लोग अमेरिका जाने के बाद वहीं बस जाना चाहते हैं, लेकिन मुझे यह गवारा नहीं था। मुझे अपने देश में ही काम करना था। टिकट भी मैंने पहले ही बुक कर लिया था और एक्जामिनर से बोला था कि सर, टाइम से सब कर दीजिए, मुझे अपने देश जाने की जल्दी है।

साइंटिस्ट बनने का सपना

नेतरहाट का रिकॉर्ड रहा है कि वहां से बहुत से स्टूडेंट यूपीएससी में सलेक्ट हुए हैं। मेरे साथ के ज्यादातर स्टूडेंट सिविल सर्विसेज एग्जाम की ही तैयारी करते थे, लेकिन मेरा मन हमेशा से ही साइंटिस्ट बनने का रहा। मेरा टारगेट क्लियर था। मैं कहीं और नहीं देखता था। बस साइंटिस्ट बनना है, तो बनना है, और बना भी।

भीड़ से अलग

भीड़ जिस ओर जा रही है, यह देखकर आप भी उस ओर चले जाएं, यह ठीक नहीं है। कई बार ऐसा होता है कि स्टूडेंट्स पहले बीटेक करते हैं, एमबीए करते हैं और उसके बाद फिर सिविल सर्विसेज की तैयारी करने लगते हैं। आजकल तो यह क्रेज हो गया है कि पहले इंजीनियरिंग करो, फिर मैनेजमेंट में डिग्री और उसके बाद सिविल सर्विसेज के लिए अप्लाई कर दो। इससे कहीं न कहीं यह जरूर लगता है कि आप जो करना चाहते हैं, वह आपको क्लियर नहीं है। यहीं पर आप मात खा जाते हैं। सफलता के लिए बहुत जरूरी है कि आप भीड़ से कुछ अलग करें और आपको पता हो कि आप क्या कर सकते हैं।

सीखने की भूख

2010 की बात है, मैं इसरो की टीम का हिस्सा नहीं था। फिर भी मैं चंद्रयान मिशन पार्ट टू पर काम कर रहा था। काफी चैलेंजिंग टास्क था। मिशन का प्लान कई बार चेंज हुआ। 2010 की ही बात है, चंद्रयान चंद्रमा पर लैंडिंग के बाद वैज्ञानिकों को काफी दिक्कत आई। लैंड करने के बाद एक मशीन ऐसी थी, जिसके जरिए ही बाकी सारे इंस्ट्रूमेंट काम करने थे। उसे चंद्रमा की धरती पर ड्रिल करके स्थापित करना था, लेकिन यह काम नहीं हो पा रहा था। इसरो से कहा गया कि आप करेंगे। मुझे पहले तो बड़ा अजीब लगा कि इतने सारे स्पेस साइंटिस्ट्स हैं, ऐसे में मुझ प्रोफेसर को यह काम क्यों दिया जा रहा है। मुझे लगा कि लोग मजाक कर रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं था। फिर मैंने टेलीकॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मिशन के डायरेक्टर से बातचीत की। उन्होंने बताया कि हम 15-20 दिनों से परेशान है, अब यह काम आपके हवाले है। आपको जिसकी मदद चाहिए, मिल जाएगी। संयोग से मेरा एक फ्रेंड?जो रूममेट भी रहा था, वह उन दिनों नासा में नैनो-टेक्नोलॉजी साइंटिस्ट था और उसका एक फ्रेंड मार्स मिशन पर काम कर रहा था। उसने एक नैनो सेंसर भी डेवलप किया था। मैंने उसकी हेल्प ली। फिर एक महीने में टेक्नोलॉजी काफी हद तक डेवलप कर ली। हालांकि, आगे कुछ प्रशासनिक वजहों से टेक्नोलॉजी पर काम नहीं हो सका, लेकिन यह घटना हमें बताती है कि साइंस अनगिनत संभावनाओं से भरा पड़ा है। कौन जाने कब, किस प्रोजेक्ट के लिए, किस तरह के नॉलेज की जरूरत पड़ जाए। आप कुछ भी सीखें, कभी न कभी वह काम जरूर आता है।

स्टूडेंट में हो सीखने का जुनून

एक बार मैं गया के एक बड़े से स्कूल में गया। करीब 6000 गार्जियंस थे उस फंक्शन में। मैं घबरा गया कि मैं क्या बोलूं। वहां मैंने इसी स्टेटमेंट से अपना व्याख्यान शुरू किया कि मैं पागल हूं और मैंने बताया कि आपके बच्चों को भी पागल क्यों होना चाहिए। हर बच्चे को अपने पैशन को फॉलो करना चाहिए। अपने सपने को पूरा करने के लिए पागल होना चाहिए।

-स्कूलिंग: नेतरहाट, रांची (झारखंड)

-बी. टेक. : आइआइटी, खड्गपुर

-एम. टेक. : दिल्ली यूनिवर्सिटी

-पीएचडी : यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले

-प्रोजेक्ट लीडर : आदित्य टोकामैक ऐंड

एसएसटी-1 टोकामैक ऑपरेशन

-प्रोफेसर: धीरुभाई अंबानी इंस्टीट्यूट ऑफ

इंफॉर्मेशन ऐंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी, गांधीनगर

-अवॉड्र्स : एचपी इनोवेट 2009 अवार्ड, यूनिवर्सल

डिजाइन अवॉर्ड 2012, बिहार गौरव सम्मान 2012

इंटरैक्शन : मिथिलेश श्रीवास्तव


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