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बन सकते हैं साइंस के सिरमौर..

मंगल यान को अपने पहले ही प्रयास में मार्स की कक्षा में स्थापित कर भारतीय वैज्ञानिकों ने न सिर्फ दुनिया के विकसित और ताकतवर समझे जाने वाले देशों के समक्ष अपने टैलेंट का लोहा मनवाया, बल्कि इससे भी बड़ी बात तो यह रही कि इसने देश के लोगों खासकर युवाओं और बच्चों में विज्ञान और तकनीक के प्रति नए सिरे से दिलचस्

By Edited By: Published: Wed, 29 Oct 2014 11:16 AM (IST)Updated: Wed, 29 Oct 2014 11:16 AM (IST)
बन सकते हैं साइंस के सिरमौर..

मंगल यान को अपने पहले ही प्रयास में मार्स की कक्षा में स्थापित कर भारतीय वैज्ञानिकों ने न सिर्फ दुनिया के विकसित और ताकतवर समझे जाने वाले देशों के समक्ष अपने टैलेंट का लोहा मनवाया, बल्कि इससे भी बड़ी बात तो यह रही कि इसने देश के लोगों खासकर युवाओं और बच्चों में विज्ञान और तकनीक के प्रति नए सिरे से दिलचस्पी भी जगा दी है। अब एक तरफ जहां मंगल मिशन की पहली वर्षगांठ पर हमारे वैज्ञानिकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती मार्स ऑर्बिटर मिशन (मॉम) को मंगल की धरती पर कामयाबी के साथ उतारना है, तो वहीं दूसरी तरफ देश के स्कूलों-कॉलेजों में विज्ञान को लोकप्रिय बनाने की चुनौती भी है। यह गौरव की बात है कि इसरो, डीआरडीओ, टिफैक और आइआइटीज जैसे संगठन साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में देश को आगे ले जाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह भी सच है कि जिस अनुपात में देश को साइंटिस्ट मिलने चाहिए, वे फिलहाल नहीं मिल पा रहे हैं। हमारे देश के ज्यादातर स्कूलों-कॉलेजों में साइंस स्ट्रीम से पढ़ने वालों की संख्या वैसे तो करोड़ों में होती है, लेकिन इनमें से गिने-चुने स्टूडेंट ही साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी को अपना पैशन बनाकर साइंटिस्ट बनने की राह पर आगे बढ़ पाते हैं। ज्यादातर स्टूडेंट महज एग्जामिनेशन पास करने और रटन्त विद्या से अधिक से अधिक मा‌र्क्स जुटाकर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं।

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जाहिर है कि इसमें उन स्टूडेंट्स का कोई दोष नहीं। दोष अभिभावकों और उनसे भी ज्यादा टीचर्स का है, जो साइंस के प्रति स्टूडेंट्स में पर्याप्त दिलचस्पी नहीं जगा पाते। दरअसल, ज्यादातर टीचर पारंपरिक तरीके से पढ़ाते रहते हैं और उनका जोर इनोवेशन की बजाय महज कोर्स पूरा कराने पर होता है। सबसे पहले तो इस माइंड सेट को बदलना होगा। अगर हमें आईटी की तरह दुनिया में साइंस में भी सिरमौर बनना है, तो अपने बच्चों में विज्ञान के प्रति भरपूर दिलचस्पी जगानी होगी। इस काम की नींव घर और खासकर स्कूलों से ही डालनी होगी। बच्चों की हर जिज्ञासा का किस्से-कहानियों और उदाहरणों के साथ समाधान करना होगा। क्लासरूम में पढ़ाते समय अध्यापकों को खुद विषय में डूबना होगा और रुचिकर तरीके से स्टूडेंट्स को बताना होगा। थ्योरी रटाने की बजाय प्रैक्टिकल तरीके से समझाना होगा, ताकि कोई भी कॉन्सेप्ट उनके दिलो-दिमाग में अच्छी तरह बैठ जाए। रुचि जगाकर ही विज्ञान में स्टूडेंट्स की दिलचस्पी बढ़ाई जा सकती है। इसके लिए सरकार को भी पाठ्यक्रमों में यथाशीघ्र जरूरी बदलाव लाने की कारगर पहल करनी चाहिए। भारत को विकास की राह पर दौड़ाते हुए हर घर-परिवार को खुशहाल बनाना है, तो देश के बच्चों को साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी में भविष्य बनाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा..

संपादक

दिलीप अवस्थी


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